आज मै आप को परमात्मा के इस रहस्य के बारे में समझा रहा हूँ की हमारे मन में विचार कहाँ से आते है . कब कोनसा विचार आप के मन में आ जाये आप को इसकी भनक तब तक नहीं लगती जब तक आप परमात्मा से पूर्ण एकता स्थापित नहीं कर लेते है . क्यों की विचार का अलग से कोई अस्तित्व ही नहीं होता है . परमात्मा ने कहाँ धूप हो तो सूरज को तेज धूप करनी होती ही है . अर्थात सूर्य , चन्द्रमा , पृथ्वी , जल , आकाश , हम सब परमात्मा के हुक्म का पालन कर रहे है . हम दुःख पाते ही इसलिए है की हम हमारा अलग अस्तित्व मानकर परमात्मा के हुक्म का विरोध करते है . और संसार में विरोध की स्थिति नहीं है . आप सब जगह है . आप सर्वव्यापी है . विज्ञानं कभी पता नहीं लगा पायेगा की मेडुला की सरंचना कैसे बनती है . हमारे सिर के पीछे वाले भाग को मेडुला कहते है यह प्रभु से जुड़ने का एंटीना है . अर्थात जो साधक निरंतर परमात्मा में ही लीन रहता है यानी भूमध्य और मेडुला पर खुद के मन को एकाग्र रखकर वहा ध्यान करते हुए जीवन की सभी क्रियाये करता है तो उसको धीरे धीरे अनुभव होने लगता है की इलेक्ट्रान का भी अस्तित्व नहीं होता है . जबकि विज्ञानं परमाणु और इलेक्ट्रान पर रात दिन मेहनत कर रहा है .
तो क्या विज्ञानं को विचारों के ऊपर अनुसंधान
नहीं करना चाहिए ?
करना चाहिए, क्यों नहीं करना
चाहिए ?
दरअसल होता क्या है की जब आप खुद के साथ समय बिताते है तो
आप को पता चलने लगता है की आप की कई जगह गलतियाँ है पर आप अहंकार के कारण अपनी
गलती स्वीकार नहीं करते है . और यह एक प्राकृतिक क्रिया है . तो क्या आप को अपनी
गलती स्वीकार नहीं करनी चाहिए ?.
यदि आप हर पल खुश रहना चाहते है तो आप को आप की गलती
स्वीकार करनी ही पड़ेगी . गलती स्वीकार करने का अर्थ है अपने आप को परमात्मा को
समर्पित करना . आप की हरपल देखभाल करने के लिए परमात्मा है ना आप क्यों बेवजह
चिंता करते हो ?.
परमात्मा अपनी शक्ति से विचार को प्रकट करते
है और फिर विचार ही मन को प्रकट करता है . मन भी एक ऐसा विचार है जो विचारकर्ता की
तरह कार्य करता है अर्थात विचार और विचारकर्ता दोनों एक ही होते है . अर्थात विचार
जो बार बार दोहराने से दृश्य बन जाता है और यही विचार यह विचार करने लगता है की जो
मेरे पहले विचार से दृश्य प्रकट हुआ है उसे मै देखू . इस प्रकार यही विचार द्रष्टा
बन जाता है . पर यह सब क्रियाये इतनी तीव्र होती है की हमे सब अलग अलग दिखाई देती
है .
तो अब हम क्या करे की इन विचारों के प्रदूषण
से मुक्त हो जाये ?
क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग के साथ नियमित अभ्यास . अर्थात
सबसे पहले यह विश्वास करने का अभ्यास करे की कण कण में केवल परमात्मा का ही
अस्तित्व है . सम्पूर्ण जगत परमात्मा के विचार का साकार रूप है अर्थात माया है .
जब आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करते है तो आप
भीतर से जाग्रत होने लगते है और आप के मन से अपने आप निंदा , बुराई , घृणा , लड़ाई , झगडे के भाव धीरे
धीरे प्रेम में रूपांतरित होने लगते है . क्यों की आप को इस अभ्यास से इस सत्य की
अनुभूति होने लगती है की जिस व्यक्ति की आप शिकायत कर रहे है वह व्यक्ति तो आप खुद
ही है . अर्थात इस अभ्यास से सभी जीवों से आप को जिस दूरी का अनुभव होता है वह
दूरी धीरे धीरे घटने लगती है . इसका मतलब यह नहीं है
की जंगली शेर को आप अपने पलंग पर लेकर सोने लगेंगे . इसका मतलब यह है की आप सत्य
और अहिंसा के मार्ग पर चलने लगेंगे . जिससे आप परमात्मा के इस हुक्म को पकड़ पाएंगे
की किस प्रकार वन्य जीवों के रहने के स्थानों को अर्थात जंगलो को आप के माध्यम से
यदि समाप्त किया जा रहा है तो प्रकृति इसकी सजा आप को ही किसी ना किसी रूप में
अवश्य देती है . तभी तो हम कहते है की परमात्मा के घर देर है अंधेर नहीं है
.
यदि इस पुरे जगत में कोई भी व्यक्ति चाहे वह अपने आप को
सबसे बड़ा महान और ज्ञानी व्यक्ति समझता हो विचारों को जानने , समझने , या तर्क वितर्क
से सही गलत विचार साबित करने की कोशिश करेगा या मै सही तुम गलत हो यह सिद्ध करने
की जिद्द करेगा तो वह अनंत काल तक इस कार्य में कभी भी सफल नहीं होगा . यही
परमात्मा का हुक्म है . ऐसे व्यक्ति को अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए
परमात्मा के हुक्म को पकड़ने का अभ्यास करना चाहिए . जिसे क्रियायोग का अभ्यास कहते
है .
क्रियायोग का अभ्यास का अर्थ है परमात्मा के हुक्म को पकड़ने
का अभ्यास . इसलिए हमारे इस सेवा मिशन का
एक ही लक्ष्य है सिर्फ सेवा करना . सबसे पहले खुद की सेवा करे , फिर परिवार की , फिर जीव जन्तुओं
की , नदी पहाड़ों की
इत्यादि . आप क्रियायोग के अभ्यास से पूर्ण रूप से जुड़ने के लिए शुरू में किसी भी
प्रकार के आलंभन का सहारा ले सकते है जो आप की प्रकृति को भाता हो . जैसे मंत्र
जाप , नाम जप , मूर्ति पूजा , देव दर्शन , माला फेरना , कोई टोटका , कोई कर्म काण्ड , कोई तंत्र मन्त्र
साधना , प्राणायाम , अस्टांग योग , विपस्सना ध्यान , ब्रह्मा कुमारी
ध्यान इत्यादि कुछ भी पर भीतर से और बाहर से पूर्ण एकाग्र होकर सिर से लेकर पाँव
तक में एकाग्र होकर जब आप इन आलंभनो का सहारा लेकर परमात्मा से जुड़ने का अर्थात
हरपल खुश रहने का अभ्यास करेंगे तो आप धीरे धीरे इन सभी प्रकार के आलंभनो से मुक्त
होने लगेंगे और आप के भीतर परमात्मा का प्रकाश जगने लगेगा और एक समय आएगा जब आप पूर्ण रूप से सत्य और अहिन्सा के मार्ग पर
चलते हुए खुद का और सभी जीवों का कल्याण करने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देते
हुए हरपल आनंदित रहने लगेंगे . प्रभु का यह लेख
यदि आपको फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को
ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर
प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है