Friday, October 4, 2024

क्रियायोग - हर पल परमात्मा से कैसे जुड़े रहे ?

आज मै आप को परमात्मा के इस रहस्य को समझाने जा रहा हूँ जिसे यदि आप ने विश्वास करके समझकर भीतर उतार लिया तो फिर आप धीरे धीरे हरपल परमात्मा से जुड़े रहेंगे और इसी जीवन काल में आप को यह सफलता शत प्रतिशत मिलेगी यदि आप को खुद पर शत प्रतिशत विश्वास है तो .

जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से अभ्यास करते है तो आप को आप के इस लक्ष्य को हांसिल करने में सफलता मिलती ही मिलती है . क्यों ?. क्यों की जैसे ही आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने की शुरुआत करते है तो इसका अर्थ है की अब आप अपने आप को शरीर नहीं मान रहे हो. बल्कि जो अहसास आप को अनुभव हो रहा है उसे ही आप ने परमात्मा का अनुभव स्वीकार कर लिया है . अब मान लीजिये आप अपना उधार वसूल करने किसी व्यक्ति के पास गए है और उसने पैसे वापस देने से मना कर दिया है . तो यदि आप यह अभ्यास कर रहे है तो आप को अनुभव होगा की आप ऐसी क्या गलती कर रहे है जिसके कारण यह अमुक व्यक्ति आप के पैसे देने से मना कर रहा है . आप को अवश्य ही आप की गलती का अहसास हो जायेगा की यातो आप ने इस व्यक्ति से कभी अभद्रता का व्यवहार किया है या इसके प्रति गलत भावों को पनपने का आप ने अवसर प्रदान किया है . आप संचित कर्मो के वशीभूत होकर या अपने अहंकार के कारण आप इसे सबके सामने नीचा दिखाना चाहते है या आप अपना धैर्य खो रहे है या आप पैसे अपनी ताकत के बलबूते पर लेना चाहते है . वैसे ये सभी बाते एक ही है . पर मुझे सभी साधकों को अलग अलग तरीके से समझाना होता है .

जब आप हर समय सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर हर एक क्रिया पर ध्यान रखते हुए उसे संपन्न करने का अभ्यास करते है तो आपको अनुभव होने लगता है की आप यह कार्य खुद कर ही नहीं रहे है . बल्कि किसी अदृश्य शक्ति के माध्यम से आप यह कार्य करने में सफल हो रहे है . यह अदृश्य शक्ति ही परमात्मा है . पर इसकी तीव्रता और स्वरुप अलग अलग होने के कारण कोई हमे मित्र नज़र आता है तो कोई हमे दुश्मन नज़र आता है .

आप एक प्रयोग करके देखे की जब आप को पेट में दर्द हो तो उस दर्द में एकाग्र होकर उस पर बहुत खुश होकर ध्यान करना आप को भीतर से चमत्कारिक जवाब मिलने लगेंगे . जैसे आप को पता चलने लगेगा की आप को पेट में दर्द क्यों हो रहा है . आप को भीतर से जवाब मिलने लगेगा की आप को किस प्रकार की चिकित्सा करवानी चाहिए . आप को पता चल जायेगा की यदि किसी गलत आदत के कारण यदि आप को पेट में दर्द होता है तो नियमित क्रियायोग के अभ्यास से आप को उस अमुक आदत की गुलामी से हमेशा के लिए मुक्ति मिलने लगेगी .

जैसे आप चाहते है की किसी काम को करने के दौरान परमात्मा से कैसे जुड़े रहे ?

आप को इसके लिए उस अमुक काम को निम्न प्रकार से करने का अभ्यास करना चाहिए :

सबसे पहले अपने शरीर की स्थिति को याद करे . याद करके अनुभव करे की उस समय आप के पैर कहाँ है , हाथ कहाँ है , सिर कहाँ है , पेट कहाँ है , मन को भूमध्य पर लाकर वहाँ एकाग्र होकर ध्यान करे , सिर के भीतर पीछे वाले भाग अर्थात मेडुला को याद करते हुए अनुभव करे और शर्त यह है की सभी अनुभवों को परमात्मिक अनुभव ख़ुशी के साथ स्वीकार करने की कोशिस करे. यदि कोई परिवर्तन सहन नहीं हो रहा है तो अमुक काम के करने के तरीके को बदल दे ताकि आप परिवर्तनों को सहन कर सके . यह क्रिया आप को बहुत ही धैर्य के साथ करनी होती है . क्यों की इस क्रिया के अभ्यास से आप के मस्तिष्क के भीतर कोशिकाओं में परिवर्तन होने लगता है और साथ ही धीरे धीरे पुरे शरीर की सरंचना में परिवर्तन होने लगता है . अर्थात आप के मन के रूपांतरित होने से आप के भौतिक शरीर में रूपांतरण शुरू होने लगता है . जब आप इन रूपांतरणों का विरोध करते है तो इसका मतलब आप परमात्मा से दूरी कायम कर रहे है . जबकि सत्य यह है की आप के और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है , पर आप के कर्मो के कारण आप को इस दूरी का अनुभव होता है . और यह दूरी ही अलग अलग रूपों में प्रकट हो रही है .

दूसरी शर्त यह है की आप को इस दूरी का सम्मान भी करना अनिवार्य है यदि आप अपने मन का अस्तित्व रखना चाहते है तो(जैसे किसी भी व्यक्ति से भीतर से उसे आत्मा के रूप में(ब्रह्म रूप) देखे और बाहर से आप जैसा आप का उससे रिश्ता है वैसा व्यवहार करे (माया रूप)) . अर्थात आप पहले यह सुनिश्चित करे की आप इस संसार में रहकर हरपल  परमात्मा से जुड़े रहना चाहते है या अपने मन को मिटाकर अर्थात भौतिक शरीर को नष्ट करके निराकार में विलीन होना चाहते है . परमात्मा ने आप को जीवन और मृत्यु में से कोई एक चुनने का अधिकार दिया है . जब आप पूर्ण रूप से इन्द्रियों की क्रियाविधि से परिचित हो जाते है तो आप के लिए जन्म और मृत्यु होता ही नहीं है . पर आप का मन आप से हमेशा यही कहता रहेगा की जन्म और मृत्यु दो है . जबकि केवल एक परमात्मा का अस्तित्व है दूसरी तो माया है . अब यह आप ही तय करे की आप को रोटी में नमक कितना खाना है . ज्यादा नमक खाकर अपने शरीर को समाप्त करदे या उचित मात्रा में नमक खाकर नमक खाने की आदत को जीवित रखे . अर्थात किसी भी आदत को मारिये मत . जब आप क्रियायोग का अभ्यास करेंगे तो नयी नयी आदते जन्म लेगी और आप को उनका पोषण इस प्रकार से करना है की जिससे उस आदत की हत्या ना हो . जैसे आप ने बहुत शारीरिक मेहनत की है और आप को प्यास लगने लग गयी है . अर्थात प्यास लगने की आदत का जन्म हुआ है . तो आप को इतना पानी पीना है की आप की प्यास मरे नहीं . अर्थात हमेशा थोड़ा प्यासा रहे . आप का शरीर परमात्मा की छाया है , जब आप इस छाया को पकड़ने में कामयाब होने लगेंगे तो आप धीरे धीरे परमात्मा को पकड़ने में कामयाब होने लगेंगे . क्यों की ब्रह्म और माया अर्थात परमात्मा और उसकी छाया हमेशा साथ साथ रहते है . वस्तु से छाया को अलग नहीं कर सकते . किसी वस्तु की छाया तभी समाप्त होती है जब वह वस्तु पूर्ण प्रकाश की उपस्थिति में विराजमान हो . ठीक इसी प्रकार जब आप पूर्ण ज्ञानी हो जाते है तो आप के (आत्मा) ऊपर से यह माया रुपी छाया हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है . फिर आप माया को प्रकट कर सकते है , वापस गायब कर सकते है . पर यह सब कार्य आप प्रकृति के नियमों के अधीन रहकर ही कर सकते है . अर्थात परमात्मा के हुक्म के विरुद्ध आप एक कदम भी नहीं चल सकते है .

प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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