आज मै आप को परमात्मा की कृपा से प्रभु का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप ने विश्वास कर लिया और फिर अभ्यास शुरू कर दिया तो आप हर समय शांत रहने लगेंगे .
आप के दिमाग में इतने सारे आलतू-फालतू के
विचार आते ही इसलिए है की आप भीतर से अभी यह अनुभव नहीं कर रहे है की केवल
परमात्मा का ही अस्तित्व है . कण कण में केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . आप किसी भी महान
दार्शनिक की बात को सुनते तो है पर उसे गहराई से समझ नहीं पाते है . जैसे आज आप ने
किसी किताब या यूट्यूब पर लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन के बारे में सुन लिया , देख लिया और अब
आप किसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए यह
लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन की तकनीक को आजमाते है . और ज्यादातर मामलों में आप के लिए यह
कार्य नहीं करती है . और आप हताश होकर फिर दूसरी किताब पढ़ते है या कोई दूसरा
वीडियो जैसे महान दार्शनिक ओशो का देख लेते है . फिर इनके बताये अनुसार आप किसी
वस्तु को प्राप्त करने के लिए या अपने अवचेतन मन को बदलने के लिए तकनीक का
इस्तेमाल करते है . जैसे ओशो ने एक जगह कहा है की यदि आप अपने अवचेतन मन में प्रवेश
करके कुछ भी फलित करना चाहते है तो आप निम्न प्रयोग करे :
किसी शांत स्थान पर बैठकर अपनी श्वास को पूरा बाहर निकाल दे
और तब तक रुके जब तक शरीर का रोया रोया जीने के लिए नहीं तड़प उठे . अर्थात आप का
दम घुटने लगेगा . ऐसी परिस्थिति में आप का अवचेतन मन कहेगा मुझे श्वास लेने दो
वरना मै मर जाऊंगा . तो आप कहेंगे की मुझे यह वस्तु लाकर दो तभी श्वास मिलेगी . तो
आप का अवचेतन मन कहता है की ठीक है मै ला दूंगा पर मुझे श्वास लेने दो . ऐसा
अभ्यास बार बार करने से आप का अवचेतन मन उस अमुक वस्तु को श्वास के माध्यम से आप
के सामने लाकर ही दम लेता है . क्यों की अवचेतन मन के पास खुद का कोई विज्ञानं
नहीं होता है . वह केवल आप की कल्पना को साकार रूप देना जानता है .
पर जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप
को इसके पीछे के सच का पता चलने लगता है . आप को समझ में आने लगता है की ओशो की यह
बात आंशिक रूप से ही सत्य है . क्यों की सभी व्यक्ति इस तकनीक को नहीं अपना सकते .
जैसे कोई ह्रदय का मरीज यह क्रिया नहीं कर सकता . जैसे आप विपस्सना वाले साधक से
बात करेंगे तो वह ओशो की बात में कमीया बताएगा और आप यदि ओशो का अनुसरण करने वाले
से बात करेंगे तो वह विपस्सना में कमी बताएगा . ऐसा क्यों ?. क्यों
की यह सब क्रियाये आंशिक रूप से ही सत्य है . केवल क्रियायोग(केवल
परमात्मा ही सत्य है बाकी सब धोखा है) ही वह साधना है जो इन सभी तकनीकों को खुद
में समेटे हुए है और इन सभी तकनीकों का
बराबर सम्मान करती है .कैसे ?.
जब आप श्वास रोक देते है और अवचेतन मन से कहते है की मुझे
अमुक वस्तु लाकर दो नई तो मै आप को श्वास नहीं लेने दूंगा . इसका मतलब यह है की आप
अवचेतन मन को डराकर इससे काम कराना चाहते है . पर याद रखे हर काम आप डराकर नहीं
करा सकते है . या आप देखाकरो जब किसी व्यक्ति
के गर्दन में दर्द होता है तो वह सुबह अपने किसी परिचित से गर्दन में धागा बंधवाने
के लिए पहले दिन ही कहकर जाता है और यह भी कहता है की हम दोनों को ही सुबह बोलना
नहीं है . इसका मतलब यह होता है की धागा बांधने की क्रिया के माध्यम से एक व्यक्ति
दूसरे व्यक्ति के अवचेतन मन में यह विचार प्रवेश करा रहा है की अब आप का गर्दन का
दर्द ठीक हो गया है . अर्थात जैसे ही इस व्यक्ति के गर्दन में धागा बंध जाता है तो
यह विचार बार बार दिमाग में चलता है की अब मेरा गर्दन का दर्द ठीक हो रहा है . पर यदि इस अमुक व्यक्ति को इस टोटके पर विश्वास नहीं है तो फिर
इसकी गर्दन का दर्द इस टोटके से ठीक नहीं होगा . अब यदि आप को क्रियायोग पर
विश्वास नहीं है और इस टोटके पर विश्वास है तो आप की गर्दन का दर्द ठीक हो जायेगा
. पर शायद आप अब परमात्मा के इस चमत्कार को नहीं समझे . यह टोटका भी क्रियायोग का
ही अभ्यास है . अर्थात कोई व्यक्ति गोली को गुड़ में लपेटकर ले रहा है और कोई
व्यक्ति सब्जी में मिलाकर गोली ले रहा है . पर भीतर गोली ही ले रहा है . इसलिए सभी
महानुभाव अपने अपने अनुभव साझा कर रहे है जो वास्तविक रूप में क्रियायोग ही है .
पर अपने अहंकार के कारण ये सभी इनके अनुभवों को अलग अलग नाम दे रहे है . यही तो
परमात्मा की लीला है . अर्थात जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से
अभ्यास करते है तो आप जाग्रत होने लगते है और विचारों के ये पंछी आप के दिमाग में
से हमेशा के लिए उड़ने लगते है . क्रियायोग आप को यह स्वतंत्रता देता है की किस
विचार को आप अपने दिमाग में रखना चाहते है और किसे नहीं . क्यों की जब आप परमात्मा
से ही जुड़ जाते है तो आप खुद परमात्मा बन जाते है और संसार के इस रहस्य को जान
जाते है . पर याद रखे इस अवस्था में आने के बाद आप को परमात्मा के हुक्म का पालन
करने का सही अर्थ समझ में आ जाता है और आप को यह पता चल जाता है की इस शरीर योनि
में आप को संसार में रहकर क्या क्या कार्य करने है . इसलिए आप का दिमाग हर समय तभी
शांत रहेगा जब आप हर समय क्रियायोग का अभ्यास करेंगे . वरना आप को आज यह
मेनिफेस्टेशन तो कल दूसरा मेनिफेस्टेशन इस विचारों के जाल में फॅसाये रखेगा और आप
कभी भी पूर्ण रूप से शांत नहीं रह पाएंगे . इसलिए सबकुछ परमात्मा को समर्पित करदे
और केवल परमात्मा के हुक्म का पालन करे अर्थात क्रियायोग का हर समय अभ्यास करे .
एक समय आएगा जब आप अपने स्वरुप के दर्शन कर लेंगे . प्रभु का यह लेख यदि आप को
लाभ पहुँचाता है तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से
ज्यादा लोगों तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में आप अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु
के श्री चरणों में अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है