आज मै आप को परमात्मा का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप विश्वास करके अभ्यास शुरू कर दे तो फिर हर काम आप के मन मुताबिक होने लगेगा . जब सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होने का अभ्यास करते है तो आप को धीरे धीरे सर्वव्यापकता का अनुभव होने लगता है . अर्थात जब आप श्वास के साथ एकता स्थापित करने में सफल होने लगते है तो आप को धीरे धीरे यह समझमे आने लगता है की आप की यह श्वास ही इस दृश्य जगत के रूप में प्रकट हो रही है . आप के लगातार भूमध्य पर एकाग्र होकर ध्यान करने से और सिर के पीछे वाले भाग मेडुला में एकाग्र होने से और फिर धीरे धीरे शरीर के हर एक अंग में एकाग्र होकर ध्यान करने से आप को दूसरे के विचार पढ़ने में मदद मिलने लगती है . और धीरे धीरे आप को यह अनुभव होने लगता है की जो विचार आप के मन में लगातार चल रहा है वही विचार आप के सामने किसी व्यक्ति के माध्यम से प्रकट कर दिया जाता है .
अर्थात आप जब क्रियायोग का गहरा अभ्यास करते
है तो आप को यह अनुभव होने लगता है की आप के सामने जितने भी लोग आ रहे है या जीव
जंतु आप को दिखाई दे रहे है ये सब आप के अवचेतन मन के विचार ही है जो लगातार कई
जन्मों से चलने के कारण अब आप के सामने घनीभूत होकर आप की आँखों के माध्यम से आप
को दिखाई दे रहे है .
इसे मै आप को और आसान करके समझाने का प्रयास करता हूँ . जब
आप क्रियायोग का गहरा अभ्यास करते है तो आप को यह साफ़ साफ़ दिखाई देने लगता है की
पुरे ब्रह्माण्ड में प्रकाश है और यही प्रकाश आप के सिर के पीछे से प्रवेश करता है
और शरीर रूप में गोल गोल घूमता हुआ घनीभूत हो रहा है और फिर इसी शरीर से चारो और
विभिन्न रचनाओं के रूप में घनीभूत हो रहा है . अर्थात आप पुरे ब्रह्माण्ड के इस
प्रकाश से इस तरह से जुड़े हो जैसे सागर से बूँद या समुद्र से लहर.
अब यदि आप चाहते है की आप के पास बंगला, गाड़ी, बड़ी खुद की कंपनी
, अच्छा स्वास्थ्य , सुकून भरा परिवार
, पूरी दुनिया में
आप भ्रमण करे इत्यादि हो .
क्रियायोग से आप उपरोक्त इच्छा को निम्न प्रकार से पूरी कर
सकते हो :
सबसे पहले आप आज से ही यह विश्वास करना शुरू करे की मै सब
चीजे पढूंगा , सबकी बात सुनुँगा
, सब दृश्य देखूंगा
, सभी प्रकार के
व्यंजनो का स्वाद लूंगा अर्थात एक बहुत ही साधारण मासूम बच्चे की तरह जीवन जीना
शुरू करूँगा बिना किसी तर्क वितर्क के , बिना किसी सोच विचार के , बिना किसी वहम के इत्यादि पर शर्त यह है की हर
क्रिया मै, सिर से लेकर पाँव
तक में एकाग्र होकर करूँगा .
जब
आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर गीता पढ़ेंगे , कुरान पढ़ेंगे , बाइबिल पढ़ेंगे , महाभारत देखेंगे , रामायण पढ़ेंगे तो आप को इन सबके पीछे जो
सत्य छिपा है उसका ज्ञान होने लगेगा . फिर आप को जैसे किसी ने कहा की राम ने रावण
को मारा था तो इसका सही अर्थ समझ जायेंगे की इसका सही अर्थ है की मुझे मेरे भीतर
के रावण से एकता स्थापित करनी है . आप को यह सच पता चल जायेगा की ये सभी ग्रन्थ
मेरे भीतर से प्रकट हो रहे है .
अब आप किसी भी विचार को साकार रूप देने में सफल होने लगेंगे
. क्यों की क्रियायोग से आप जाग्रत होने लगते है जिससे आप के मन , बुद्धि विकसित
होने लगते है और आप अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने में धीरे धीरे कामयाब होने
लगते है . आप को यह समझ आने लगता है की जब आप बंगले की इच्छा को पूरी करने में
मेहनत कर रहे हो तो इसी दरमियान गाड़ी की इच्छा को पूरी कब और कैसे करना है .
अर्थात अलग अलग इच्छाओं के विचार आप को परेशान नहीं कर पायेंगे. क्यों की अब आप की
दृष्टि उज्जवल होने लग गयी है . आप को पहले ही पता चल जाएगा की अमुक इच्छा के साथ
साथ दूसरी कोन कोन सी इच्छाओं को फलित किया जा सकता है .
क्रियायोग के गहरे अभ्यास से आप को यह अनुभव
होने लगता है की जैसे आज आप को कंपनी में जाकर कोई बड़ा निर्णय लेना है पर अचानक आप
के पेट में तेज दर्द शुरू होकर यह संकेत दे देता है अभी आप कंपनी ना जाए क्यों की
अभी परमात्मा की इच्छा नहीं है . और आप को कुछ समय बाद पता चल जायेगा की उस दिन
कंपनी नहीं आये तो बहुत अच्छा रहा .
क्रियायोग का गहरा अभ्यास आप को इस सच का अनुभव करा देता है
की आप के और परमात्मा के बीच दूरी शून्य है और आप की सभी इच्छाये परमात्मा की
इच्छाये ही होती है . अर्थात आप को यह क्षमता मिली ही नहीं है की आप प्रभु की
इच्छा से अलग कोई अन्य इच्छा जाहिर कर सके . इसलिए क्रियायोग कहता है की
ब्रह्मांडीय गतिविधियाँ प्रभु की इच्छा से ही चलती है .
प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है
तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों
तक भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में अपना अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में
अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
No comments:
Post a Comment
परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है