आज मै आपको परमात्मा का वह राज बताने जा रहा हूँ जिस पर यदि आप ने विश्वास कर लिया तो फिर आप का मन आप के वश में होकर ही मानेगा .
सबसे पहले मै यह समझाता हूँ की मन क्या है ?.
इस प्रश्न का उत्तर मै आप को कई प्रकार से दूंगा ताकि आप मन
को सही से समझ सके . यह पूरा संसार मन का साकार रूप है . आप का शरीर मन का साकार
रूप है . इसके अलावा मन के सूक्ष्म रूप जैसे हमारी भावनाएँ, विचार , स्वाद , गंध , स्पर्श , सुख दुःख की
अनुभूति ऐसे अनेक अदृश्य रूप भी मन के ही है .
मन परमात्मा की छाया है . सच तो यह है की मन होता ही नहीं
है . फिर हम मन के बारे में इतनी बाते क्यों करते है ?.
परमात्मा की माया के कारण. मन माया है . मन ही कर्ता है और
मन ही भोक्ता है . मन ही स्वाद लेता है , मन ही देखता है , मन ही सुनता है , मन ही सबकुछ अनुभव करता है .
हमारा मन इतना चंचल क्यों होता है और यह
स्वतंत्र क्यों होना चाहता है या मन को बंधन पसंद क्यों नहीं होते है ?.
क्यों की मन परमात्मा की छाया है और परमात्मा कण कण में
द्रश्य और अदृश्य रूप में व्याप्त है . अब आप ही बताइये जो वस्तु कण कण में अर्थात
सर्वयापी है तो उसकी छाया किस जगह नहीं होगी ?.
अर्थात हमारा मन भी सर्वव्यापी है . जब मन ही सर्वव्यापी है
तो फिर यह मन किसी एक जगह पर कैसे उपस्थित रह सकता है . अर्थात हम यह चाहते है की हमारा मन जब हम ऑफिस में हो तो यह घर
पर नहीं होना चाहिए . ऐसा तभी संभव होता जब मन सर्वव्यापी नहीं होता और हमारा घर
से कोई कर्म बंधन नहीं होता . आप इसे ऐसे समझे की आप का मन जब ऑफिस में
होता है तो यह किसी अनजान व्यक्ति के घर पर नहीं होता है . यह उन उन जगहों पर ही
होता है जिन जिन जगहों से आप ने जाने अनजाने में कर्म बंधन बाँध रखे है (अर्थात
अभी आप को यह पता नहीं है की आप पूर्व जन्म में क्या थे ).
तो सबसे पहले तो आप यह निश्चित करे की आप को किन किन लोगों
से रिश्ता रखना है , कौन कौन से दृश्य
आप को पसंद है , किन किन जगहों को
आप पसंद करते है , आप जीवन में क्या
क्या चाहते है इत्यादि को पहले अपनी इच्छाओं में सम्मलित करे . अर्थात आप कैसा
जीवन जीना चाहते है इसे पहचाने और अपने लक्ष्य में इसे सम्मलित करे .
अब यदि आप थोड़े से भी अपने विवेक का इस्तेमाल करेंगे तो आप
को पता चलेगा की जब आप मन को ऑफिस समय में ऑफिस में ही रखना चाहते है और शाम को घर
में आकर परिवार के साथ सुकून से समय बिताना चाहते है अर्थात आप अपने घर और परिवार
को बहुत चाहते है तो आप क्या करेंगे जब अचानक आप के घर पर आप के ऑफिस टाइम में कोई
अनहोनी घटना घट जाए जो आप यदि समय पर घर पहुंच जाते तो वह घटना टल सकती थी .
अर्थात आप को प्रकृति कैसे संकेत देगी जब आप ऑफिस समय में घर से सम्बन्ध रखना ही
नहीं चाहते. या इसे ऐसे समझे की आप ने किसी को ५००० रूपए उधार दिए और अब वह अमुक
व्यक्ति पैसे लौटाने आप के पास आया तो क्या आप उससे कहेंगे की मुझे आप किस बात के
पैसे दे रहे हो ?.
यह बात आप तभी कहेंगे जब या तो आप की यादास्त चली गयी हो या
आप वीतरागी संत बन गए हो . यदि आप इस संसार में एक सामान्य व्यक्ति के जैसा जीवन
जीना चाहते है जिसकी सोच महान है तो फिर आप को उधार दिए गए रूपए किसी न किसी
माध्यम से आप के मन में याद रखना पड़ेगा . जैसे या तो आप उधार दी गयी रकम को किसी
बहीखाते में लिखेंगे या तकनीक के माध्यम से कही और रूप में लिखेंगे .
आप के मन को याद है की आप एक शरीर के माध्यम
से कार्य कर रहे है और अपने विवेक से यह सोच रहे है की मेरा मन मुझे बहुत परेशान
करता है मै इसे वश में करना चाहता हूँ . अब यदि यही मन आप के शरीर में लगे पैरो को
भूल जाए तो क्या आप को पता है जब आप ऑफिस में कुर्सी पर से खड़े होंगे तो आप तुरंत
निचे गिर जायेंगे . इसलिए पहले यह समझने का प्रयास करे की मन को वश में करने का
प्रश्न ही अप्राकृतिक है .
अर्थात आप
अप्राकृतिक रूप से मन को वश में करना चाहते है जो असंभव है .
तो फिर हम क्या करे की हमारा मन हमारे वश में
हो जाये ?.
मन को वश में करने का सही अर्थ है परमात्मा को वश में करना
.जो ना कभी संभव था , ना है और ना ही
कभी होगा .
मन परमात्मा की शक्ति से कार्य करता है . इसलिए आप को मन को वश में करने के बजाय इसे सही दिशा में
कैसे लेकर आया जाए ?.
इसका सही समाधान क्रियायोग का अभ्यास है . जब आप पूर्ण
मनोयोग से सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर हर एक क्रिया के प्रति सजग होने
लगते है तो आप को मन की कार्य प्रणाली समझ में आने लगती है . आप को इस अभ्यास से
समझ में आने लगता है की ९ बजे क्या काम करना है और इस काम के बाद कोनसा काम करना
है . आप का मन आप को आप के माध्यम से किये गए संचित कर्मो के हिसाब से नाच
नचाता है . पर जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है
तो आप के संचित कर्म परमात्मा के प्रकाश में इस प्रकार से पिघलने लगते है की आप के
जीवन की गाड़ी पटरी पर आने लगती है . यदि आप ने झूठ बोलने के कर्म किये है तो अब
धीरे धीरे झूठ बोलने की आदत सच बोलने में रूपांतरित होने लगती है . आप को कोई
बीमारी है तो वह स्वास्थ्य में रूपांतरित होने लगती है .
कुलमिलाकर आप को मन को वश में करने की बजाय मन की शक्ति से
सेवा कार्य , कई प्रकार के
रचनात्मक कार्य करते हुए (अर्थात इस मन रुपी छाया को पकड़ते हुए इसके मालिक
परमात्मा के साथ एक होना है) अपने स्वरुप का दर्शन करना है , खुद से मिलना है , खुद को जानना है , आत्म ज्ञान
प्राप्त करना है , प्रभु के दर्शन
करना है , जीते जी मोक्ष को
प्राप्त करना है .
प्रभु का यह लेख यदि आप को फायदा पहुँचाता है
तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक
भेजे और हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में
अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
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परमात्मा की महिमा में आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन है