जब आप के भीतर यह प्यास जगने लगती है की मै कैसे हर पल खुश रहु और आप भीतर से यह चाहने लगते है की मै कैसे मेरे सभी कष्टों से हमेशा के लिए मुक्ति प्राप्त करू और आप जीवन मे आने वाली सभी शंकाओ से मुक्ति चाहते हो तो इसका एकमात्र तरीका खुद के स्वरुप का दर्शन करना है . इसके अलावा बाकी सब धोखा है . अर्थात जब तक आप खुद को जानने के लिए भीतर से रूचि नहीं जगायेंगे तब तक आप इस क्षण में जीने का जो अभ्यास है (स्वरुप दर्शन का अभ्यास) उसे सही से नहीं कर सकते है . क्यों की हम डॉक्टर की पूरी बात तभी मानते है जब हमारे पास बचने का कोई और उपाय नहीं रह जाता है . ठीक इसी प्रकार हम अपनी आत्मा पर विश्वास तभी करते है जब हमे इस पुरे संसार में कही से भी कोई मदद नहीं मिलती है . आज तक जिसने भी खुद को पूर्ण रूप से जाना है , आत्म ज्ञान को प्राप्त किया है उनमे उन्ही महान व्यक्तियो का नाम आता है जिन्होंने पहले खुद को खुश रखने के लिए सभी तरीके अपनाये है . जब उनको किसी भी तरीके से पूर्ण सफलता नहीं मिली तब उन्होंने खुद को जानने के लिए अपने प्राणों की भी बाजी लगादी. और जिन्होंने इस जन्म में बिना बड़े कष्ट सहे खुद को जानने के लिए स्वरुप दर्शन का अभ्यास किया है ये वही व्यक्ति है जिन्होंने पूर्व जन्म में अपने आप को तपाया है . बिना मन को तपाये आप कभी भी अपने स्वरुप का दर्शन नहीं कर सकते . इस क्षण में जीने का अभ्यास करना ही मन को तपाने की क्रिया है . इसके अनंत तरीके है . यह साधक पर निर्भर करता है की उसका गुरु उसको किस तरीके से इस मोह जाल से बाहर निकालता है . केवल ईश्वर ही गुरु है . केवल परमात्मा का अस्तित्व है . इस क्षण में जीने के लिए आप को सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करनी होती है . मै साधक को यह स्वरुप दर्शन का अभ्यास सिखाता हु . यह साधक खुद भी कर सकता है पर जब अभ्यास के दौरान शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होते है तो साधक को अनुभव की कमी के कारण सफलता नहीं मिल पाती है और साधक इसे बीच में ही छोड़ देता है . फिर खुद को जानने के लिए वह दूसरा तरीका अपनाता है . ऐसे करते करते वह संसार में भटकता रहता है और इस जीवन से विदा हो जाता है . पारंगत गुरु के सानिध्य में अभ्यास करने से साधक को इस क्षण में जीने में पूर्ण सफलता मिल जाती है . जैसे ही आप इस छण में जीने के लिए इच्छा जाग्रत करते है और फिर कोशिस करते है इसी छण को अनुभव करने की तो विष्णु शक्ति (शक्ति जिस से कर्म संचित होते है) के प्रभाव के कारण आप के संचित कर्म आप का पीछा करने लगते है और मन में विचारो का तूफ़ान उठने लगता है . इस तूफ़ान के कारण ही शरीर और मन में कई प्रकार के परिवर्तन होने लगते है जैसे चक्कर आना , सिर दर्द होना , पेट में गैस बनना , बेचैनी छा जाना , हाथ पैरो में दर्द होना , जी घबराना , मन नहीं लगना, डर लगना , दुनिया मतलबी लगना , किसी पर विश्वास नहीं होना , बीमारी का डर होना , हर चीज पर शक करना ऐसे और भी कई प्रकार के तीव्र परिवर्तन होने लगते है . पर जब आप की भावना शुद्ध हो, मन में पवित्रता हो , दृढ़ इच्छा शक्ति हो , आत्मबल मजबूत हो , खुद पर पूरा विश्वास हो तो शिव की शक्ति(परिवर्तन की शक्ति) जगने लगती है और जब यह शक्ति, विष्णु शक्ति (सुरक्षा की शक्ति ) से ज्यादा होने लगती है तो आप मन को परिवर्तित करने में सफल होने लगते हो . इसीलिए मै कहता हूँ की क्रियायोग का अभ्यास किसी पारंगत गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिए . इस छण में जीने के अभ्यास से आप को भूत भविष्य का पता चलने लगता है . इस छण में जीने के लिए स्वरुप दर्शन का अभ्यास इस प्रकार किया जा सकता है जैसे अपने हाथो से घर की सफाई करे , खेत पर काम करे , फैक्ट्री में काम करे , खुद का काम खुद करे पूरी एकाग्रता के साथ , आँखों से इस प्रकार देखे की स्वयं परमात्मा आप की आँखों से देख रहे है तो आप को किसी भी दृश्य में दोष दिखाई नहीं देगा , कानो से इस प्रकार सुने की परमात्मा खुद सुन रहे है. धीरे धीरे आप को सभी जीवों में परमात्मा दिखने लगेंगे . कण कण में केवल परमात्मा का ही अस्तित्व है . दिनभर के कामो को लिखने की आदत डाले ताकि आप का अवचेतन मन और चेतन मन एक होने लग जाए . हर समय भूमध्य पर ध्यान रखे , श्वास पर ध्यान रखे , हाथ कहा है याद रखे , पैर कहा है याद रखे , अपनी जीभ पर निगरानी रखे , हर समय खुद की स्थिति को याद रखे . यह सब धीरे धीरे अभ्यास से संभव होता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .
इस क्षण में कैसे जिये ?
- Post author By Swaroop Darshan
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