क्यों की ऐसा हमे लगता है की हमने सही भोजन किया है . यदि वास्तविक रूप में हमने सही भोजन किया होता तो फिर हम पेट में बनने वाली गैस से परेशान बिलकुल नहीं होते . बल्कि हमे यह पता होता की भोजन करने के बाद जो यह पेट में परिवर्तन हो रहे है ये सभी प्रकार के परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है . क्यों की हमने हमारे मन की इस प्रकार से रचना कर रखी है की जो भोजन अभी हम खा रहे है वही सही है ऐसा हमारा मन हमें विश्वास दिलाता है . मन की इसी प्रकार की प्रोग्रामिंग के कारण हम हमेशा सही भोजन से दूर रहते है और ऐसे ही फिर हम पेट में गैस की समस्या से पूरे जीवन काल परेशान रहते है .
हमारे पेट के लिए सही भोजन का चुनाव कैसे करे ?
यह बहुत ही गूढ़ विषय है . यह व्यक्ति की चेतना पर निर्भर करता है की वह अभी किस चेतना में जी रहा है और जीवन को लेकर ऐसे व्यक्ति का क्या नज़रिया है . यदि हम मानव से महामानव बनना चाहते है , अपने स्वरुप का दर्शन करना चाहते है , पेट में बनने वाली गैस की समस्या से छुटकारा चाहते है तो फिर हमे ‘क्रियायोग ध्यान पेट की गैस के लिए ‘ का अभ्यास करना बहुत जरुरी है .
यह अभ्यास निम्न प्रकार से किया जाता है :
जब हम तीखा भोजन खाते है और उसके तुरंत बाद मुँह में मिर्ची लगने के कारण ज्यादा पानी पी जाते है तो जिस तीखेपन की अनुभूति को शांत करने के लिए मुँह में पानी और मीठी लार बनने की क्रिया सम्पादित होने जा रही थी हमने पानी पीकर के इस क्रिया को शुरू होते ही रोक दिया और अप्राकृतिक रूप से पानी पीकर मुँह और पेट में पहुंचे इस भोजन को इस प्रकार का बना दिया है की अब इसे पचाने के लिए ज्यादा प्राण शक्ति की आवश्यकता है . अब यह प्राण शक्ति या तो हम दवा के माध्यम से पेट में पहुंचाते है या फिर ध्यान के माध्यम से या फिर पूरे शरीर को आराम देकर के या फिर कोई अन्य तरीका अपनाते है . और यदि हम लम्बे समय तक तीखा भोजन खाके तुरंत ज्यादा पानी पिने की क्रिया जारी रखते है तो फिर यह भोजन पेट में मवाद का रूप लेने लगता है और फिर पाचनतंत्र को भोजन की जगह मवाद को पचाने के लिए बहुत ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है . इससे पाचनतंत्र धीरे धीरे कमजोर होने लगता है और हम पेट में गैस के साथ साथ कई प्रकार के अन्य रोगों से ग्रसित हो जाते है .
तीखा भोजन खाके तुरंत पानी पिने की आदत को कैसे सुधारे?
क्रियायोग ध्यान ‘तीखेपन की क्रिया से जुड़ने’ का अभ्यास करके .
जब हम जाग्रत होकर तीखा भोजन करेंगे तो हमारे भीतर से यह ज्ञान प्रकट होगा की हमे भोजन में तीखेपन की मात्रा कितनी रखनी है ताकि जब हम भोजन खाये तो बार बार पानी नहीं पीना पड़े . इसलिए हमे भोजन में तीखेपन की मात्रा इतनी रखनी है की हम बिना विचलित हुए बहुत ही शांतिपूर्वक भोजन कर सके और ऐसे भोजन को करने के बाद मन में यह विचार डाले की आज मेने बहुत ही सही तरीके से और सही भोजन खाया है . अर्थात आज के भोजन का तीखापन मन में पहले से जमा तीखेपन के विचारों को इस प्रकार से रूपांतरित करे की हमारा मन सम्यक तीखापन के स्वाद को समझने में सफल हो जाए .
अभी हमारा मन तीखेपन की तीव्रता को समझने में धोखा खा जाता है क्यों की अभी हमारी चेतना का स्तर इतना ऊँचा नहीं उठा है की हम यह वास्तविक रूप में समझ जाए की हमे भोजन में तीखेपन की कितनी मात्रा रखनी चाहिए . अर्थात यह वैसे ही है जैसे अँधेरे कमरे में सुई को ढूँढना .
जैसे जैसे इस ध्यान का अभ्यास करते है वैसे वैसे हमारे भीतर उजाला होने लगता है और हमे यह साफ़ साफ़ दिखने लगता है की सही भोजन का चुनाव कैसे करे .
जैसे हम रात को चने भिगोकर सुबह बिना नमक और मशाले के सीधे अच्छी तरह चबाकर खाते है और फिर भी गैस बनती है . तो फिर जब आप यही चने जाग्रत होकर खाने लगेंगे तो आप के भीतर से यह ज्ञान प्रकट होगा की क्या इसमें हमे नमक मिलाना चाहिए या इसे छोंककर खाना चाहिए या फिर इसे गुड़ के साथ खाना चाहिए या फिर कोई अन्य तरीका आप खुद ही ईजाद कर लेंगे . पर यह सब बहुत ही धैर्य का काम है .
अभी हम क्या कर रहे की किसी ने कह दिया की यह भोजन खाओ आप के गैस नहीं बनेगी और हम खाते है पर फिर भी गैस बनती है . क्यों ?
क्यों की यह वैसे ही है जैसे मुझे ही यह पता नहीं है की मेरी जेब में कितने पैसे है और मै आप से पूछ रहा हूँ की भाईसाहब मेरी जेब में कितने पैसे है ?
तो यदि आप एक आत्मज्ञानी व्यक्ति है तो आप तुरंत बता देंगे की इतने पैसे है . नहीं तो आप यह कहेंगे की कमाल करते हो भाईसाहब आप की जेब का मुझे क्या पता ?.
इसलिए सच का पता लगाने के लिए अभ्यास ही एक मात्र तरीका है . अब यह आप के ऊपर निर्भर करता है की आप खुद पर विश्वास करके खुद अकेले ही अभ्यास करते है या किसी अन्य आत्मज्ञानी व्यक्ति के सानिध्य में रहकर अभ्यास करते है . यह निर्णय भी आप का खुद का ही होता है . जैसे एक छोटे बच्चे के लिए निर्णय उसके मातापिता लेते है ठीक इसी प्रकार माता पिता निर्णय या तो खुद लेते है या फिर किसी अन्य आत्मज्ञानी व्यक्ति से सलाह लेकर लेते है या फिर यह अभ्यास करके . और जब तक हम कोई भी कर्म करके देखेंगे नहीं तो हम सच को पकड़ नहीं पायेंगे .
मानव के लिए सही भोजन क्या है ?
बीज और फल .
अर्थात जो फल प्राकृतिक रूप से पक गया हो ऐसा फल हमारे स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ट है . जैसे गेहूँ, जो , चने , तिल, बाजरा ऐसे अनेक प्रकार के धान .
ठीक इसी प्रकार कैला , सेब , पपीता , अंगूर ऐसे अनेक प्रकार के पके हुए फल .
फिर जब हम ऐसा भोजन खाते है तो भी गैस क्यों बनती है ?
क्यों की यदि आप आज इस लेख को पढ़कर आज ही जैसे छौंककर जो चने खा रहे थे वे अब सीधे रात को भिगोकर सुबह खायेंगे तो एकदम से इन चनों को आप का पेट स्वीकार नहीं करेगा और आप को गैस की समस्या से झूझना पड़ेगा .
तो फिर क्या करे ?
भीगे हुए चनो को कल से आज थोड़ा कम पकाये . पर इसका मतलब यह नहीं है की आप को एक दिन सूखे चने चबाने का अभ्यास करना है . ऐसा बिलकुल नहीं करना है . बल्कि आप को चने के साथ सम्यक दर्शन के लिए जुड़ना है . अर्थात ऐसा अभ्यास करते करते एक समय ऐसा आयेगा की आप को यह ज्ञान हो जायेगा की चने का सेवन कैसे करना है और किस प्रकृति का चना आप के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है . अब इसी चने के सेवन से पेट में गैस नहीं बल्कि आप के शरीर की शक्ति बढ़ने लगेगी . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .