भक्त और भगवान के बीच बातचीत – भाग 6

 भाग 6

भक्त : हे
परमात्मा जब आप यह समझा रहे हो की इस दम्पति के एक संतान पैदा हो तो साथ ही यह भी
समझा दो की यदि यह दम्पति संतान के रूप में एक कन्या को जन्म देना चाहता हो तो
इनको क्या करना चाहिए
?

भगवान : मेरे
प्रिये लाल मुझे तो लगता है अब आप समझदार होने लग गए हो . क्यों की इस संसार में
हर कोई यह राज जानना चाहता है की लड़का होने का योग क्या है और लड़की होने का योग
क्या है
?.  देखो वत्स यदि पति -पत्नी दोनों बहुत सरल स्वभाव के है और
मुझ पर पूर्ण विश्वास है तब तो यह राज बहुत आसान है . पर यदि पति -पत्नी का स्वभाव
मुझसे दूरी का है अर्थात उनको यह लगता हो की हर काम वो खुद कर रहे है और भौतिक
संसाधनों से उनका बहुत ही गहरा चिपकाव है
, माया में बहुत गहरे फंसे है तब यह राज बहुत कठिन है. पर
असंभव कुछ भी नहीं है . अब मै यह राज बताने जा रहा हु बहुत ध्यान लगाकर सुनना
समझना .

भक्त : जी भगवान
.

भगवान : वत्स यदि
कोई पति पत्नी यह चाहता हो की उनके कन्या (लड़की) का ही जन्म हो . तो पति -पत्नी
शारीरिक संबन्ध बनाने से पहले निम्न यम
, नियमो का पालन पूरी निष्ठा के साथ करे .

मै पहले
आपको  पति की जिम्मेदारियों के बारे में
बताने जा रहा हु . पति को चाहिए की वह हर कन्या का सम्मान शुरू करे . उसके घर
परिवार
, समाज  में जहा कही भी किसी कन्या को बहुत ही मदद की
जरुरत पड़ रही हो जैसे कोई कन्या बीमार हो
, पड़ना चाहती हो , अपनी रोजी रोटी के लिए काम की तलाश कर रही हो या किसी भी प्रकार की नैतिक
आवश्यकता पड़ रही हो तो इस पति को अपनी सच्ची सामर्थ्य के साथ इस कन्या की मदद करनी
चाहिए अहंकार रहित होकर . अर्थात मदद का समाज में ढिंढोरा नहीं पीटना है . बहुत ही
गोपनीय रूप से यह काम करना होता है . जैसे समाज में कई सज्जन कहते भी है की दान इस
हाथ से ऐसे करो की दूसरे हाथ को भी मालूम ना चले
. तब वह दान फलित करता हु मै वत्स
. पति को दूसरा काम यह करना है की वह हर कन्या को अपनी बेटी के रूप में पूरी
सच्चाई के साथ देखे
, अनुभव करे . हर
कन्या के रूप को बहुत ही सूंदर
, अलौकिक समझे ,
मेरा रूप उसमे देखे .

पति निरन्तर
परमात्मा की महिमा का अभ्यास करे
. अपने मन को इस प्रकार परिवर्तित करने का अभ्यास
करे की उसको खुद को यह लगने लग जाये की अब मै नारी का सम्मान सच में करने लग गया
हु . पति को कन्या भक्त होना पड़ता है . अर्थात इस पति को मेरी भक्ति मेरे को हर
कन्या के रूप में मानकर करनी होती है . उसके मन में हर पल उसकी आने वाली बेटी के
सपनो को उसको(पति) कैसे पूरा करना है इसको 
लेकर एक बहुत ही साफ़ छवि पुरे द्रढ़ संकल्प के साथ होनी चाहिए . यदि यह पति
यह सब काम बिना लिखे नहीं कर सकता है तो उसको एक सूंदर डायरी में लिखने का अभ्यास
करना चाहिए .

भक्त : हे  सर्व शक्तिमान 
मुझे तो लगता है की आप एक बहुत ही तेजस्वी
, सुशिल , सूंदर , गुणवान कन्या के जन्म का योग पुरुष के लिए बता
रहे हो
?

भगवान : हां वत्स तुमने बहुत सही समझा . पर यदि इस पति की मेरे में भक्ति कम है इसके लिए हर कन्या को मेरे रूप में देखना कठिन है या यह पति मेरे किसी साकार रूप को देवता मानकर पूजा -भक्ति करता है तो इसके मन जो मेरे इस देवता रूप के बारे में ज्ञान संचित है तो उस ज्ञान के अनुसार ही मै इसको इसके देवता में स्थापित कर देता हु . अर्थात कोई व्यक्ति यदि देवताओ को पूजता है तो उस देवता से संबंधित गुण उस व्यक्ति में आने लगते है . अर्थात जो जिसकी शरण में जाता है मै उसको उसी के गुणों से फलित करता हु . जैसे कोई व्यक्ति पूरी निष्ठा के साथ हनुमान जी की भक्ति करता है तो उस व्यक्ति में हनुमान जी के गुण आने लगते है . और यदि कोई व्यक्ति राक्षसों को पूजता है तो उसमे राक्षसों के गुण आने लगते है . पर यदि कोई परमात्मा की महिमा का अभ्यास करता है तो उसमे मेरे गुण अर्थात सर्वगुण संपन्न आने लगते है . अर्थात जिसकी जैसी मति वैसी उसकी गति . परमात्मा की महिमा करने वाला व्यक्ति देवता और राक्षस दोनों का बराबर सम्मान करता है .

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