हमें आलस क्यों आता है ? | परमात्मा की महिमा
हमें आलस क्यों आता है ? हर कोई चाहता है की वह ऊर्जावान हो , उसमे स्फूर्ति हो, वह हर पल खुश हो। आलस्य कैसे दूर करे ? आलस्य हमारा शत्रु है कैसे ? आलस्य क्या होता है ? हर समय शरीर में आलस का महसूस होना , हर समय शरीर थका थका सा रहना , कोई भी काम करने में मन नहीं लगना , कोई काम बता दे तो उस व्यक्ति पर गुस्सा आना , चिड़चिड़ा होना , ऐसा लगे की अभी कोई बात ना करे। काम , क्रोध , भय , मैथून , आलस्य , निद्रा ये किस प्रकार हमारे शत्रु है ? परमात्मा की महिमा के माध्यम से हम आलस्य से हमेशा के लिए मुक्त हो जाते है
जब आप परमात्मा की महिमा करने लगते हो तो आप को अनुभव होने लगता है की आप विशाल और अनंत है। इस सत्य(परमात्मा की महिमा ) को स्वीकार नहीं करना ही सभी बीमारियों की जड़ है। केवल निरन्तर अभ्यास ही इसका एकमात्र उपाय है
जब हम यह अभ्यास नहीं करते है तब हमें ना तो हमारी चिंता होती है ना ही परिवार की और ना ही देश दुनिया की। तब आलस ही आएगा। क्यों की तब यही शेष बचता है
अर्थात जैसे जैसे हमारे और परमात्मा के बीच दूरी बढ़ती है शरीर में आलस बढ़ता जाता है अधिकतम दूरी पर आलस मृत्यु में बदल जाता है इसलिए यह बहुत ही सोचनीय विषय है की हम आलस्य की बीमारी से जड़ से मुक्त कैसे हो।
‘परमात्मा की महिमा’ ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा योग है इससे बड़ा कोई और योग नहीं है।
ध्यान , साधना , योग , मंत्र जाप, पुजा , पाठ , व्यायाम , और सभी कर्मा-काण्ड की सभी पद्धतियाँ इसके अन्तर्गत आती है
भूमध्य पर एकाग्र होकर धीरे धीरे ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड में एकाग्र होकर आलस्य की बीमारी से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है
हमें आलस क्यों आता है ? हर कोई चाहता है की वह ऊर्जावान हो , उसमे स्फूर्ति हो, वह हर पल खुश हो। आलस्य कैसे दूर करे ? आलस्य हमारा शत्रु है कैसे ? आलस्य क्या होता है ? हर समय शरीर में आलस का महसूस होना , हर समय शरीर थका थका सा रहना , कोई भी काम करने में मन नहीं लगना , कोई काम बता दे तो उस व्यक्ति पर गुस्सा आना , चिड़चिड़ा होना , ऐसा लगे की अभी कोई बात ना करे। काम , क्रोध , भय , मैथून , आलस्य , निद्रा ये किस प्रकार हमारे शत्रु है ? परमात्मा की महिमा के माध्यम से हम आलस्य से हमेशा के लिए मुक्त हो जाते है
जब आप परमात्मा की महिमा करने लगते हो तो आप को अनुभव होने लगता है की आप विशाल और अनंत है। इस सत्य(परमात्मा की महिमा ) को स्वीकार नहीं करना ही सभी बीमारियों की जड़ है। केवल निरन्तर अभ्यास ही इसका एकमात्र उपाय है
जब हम यह अभ्यास नहीं करते है तब हमें ना तो हमारी चिंता होती है ना ही परिवार की और ना ही देश दुनिया की। तब आलस ही आएगा। क्यों की तब यही शेष बचता है
अर्थात जैसे जैसे हमारे और परमात्मा के बीच दूरी बढ़ती है शरीर में आलस बढ़ता जाता है अधिकतम दूरी पर आलस मृत्यु में बदल जाता है इसलिए यह बहुत ही सोचनीय विषय है की हम आलस्य की बीमारी से जड़ से मुक्त कैसे हो।
‘परमात्मा की महिमा’ ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा योग है इससे बड़ा कोई और योग नहीं है।
ध्यान , साधना , योग , मंत्र जाप, पुजा , पाठ , व्यायाम , और सभी कर्मा-काण्ड की सभी पद्धतियाँ इसके अन्तर्गत आती है
भूमध्य पर एकाग्र होकर धीरे धीरे ब्रेन और स्पाइनल कॉर्ड में एकाग्र होकर आलस्य की बीमारी से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है