आज हमारे प्रभु
उस दिव्य ज्ञान को प्रकट कर रहे है जिसे यदि आप प्रभु की कृपा से भीतर तक पूरी
समझदारी के साथ उतार लोगे तो फिर आप को लोगों से शिकायत नहीं रहेगी . सबसे पहले तो
हमे खुद को नश्वर शरीर समझने की गलती को नहीं दोहराने का संकल्प लेना है . क्यों
की व्यक्ति का शरीर मरने के बाद ना सोच सकता है , ना देख सकता है और ना बोल सकता है . फिर यदि हम
अभी भी इंसानी शरीर के रूप में जीवित घूम रहे है , बोल रहे है , खा रहे है , पी रहे है , सुन रहे है और
समझ रहे है . तो फिर सबसे
पहले खुद से हमे यह पूछना है की मै यह सब किस शक्ति की बदौलत कर पा रहा हूँ . जैसे
अभी मै देख पा रहा हूँ पर कई मेरे मित्र ऐसे भी है जो अभी आँखों से देख नहीं सकते
. तो क्या मुझे खुद से यह नहीं पूछना चाहिए की मै किस की मदद से देख पा रहा हूँ और
ऐसा वो कोन है जो मेरे मित्र से अब दूर हो गया है जिसकी मदद नहीं मिलने के कारण यह
मेरा मित्र अब देख नहीं पा रहा है . क्या मुझे इस
देखने वाली शक्ति को धन्यवाद(भगवान का शुक्रिया) नहीं देना चाहिए ?.
जैसे जैसे हम
क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करते है तो हमे यह अहसास होता है की हम नश्वर शरीर नहीं
है . बल्कि खुद परमात्मा की शक्ति ही इस शरीर का रूप ले रखी है. हमे किसी भी मित्र
की बात को नहीं काटना चाहिए बल्कि उसकी हर बात पर शोध करना चाहिए . अर्थात हमे एक
बहुत ही ग्रहणशील श्रोता होना चाहिए . हमे सही से श्रवण की क्रिया को सिखने का
अभ्यास करना चाहिए . यदि हम ऐसे लोगों के समूह में रोज बैठते है जहा हर समय हमारे
कानों को यह सुनाई देता है की इस संसार में कोई किसी का नहीं है , लोग सभी मतलबी होते है तो हम वास्तविक रूप में
कर क्या रहे है ?
हम
खुद ही जानबूझकर परमात्मा से दूर होते जा रहे है . कैसे ?
जैसे हमारे हाथ
में पांच उँगलियाँ है और पांचो बराबर नहीं है और पांचो उंगलियों का अलग अलग महत्व
होता है . किसी एक उंगली का महत्व किसी दूसरी से ना कम है और ना ही ज्यादा है . अब
यदि आप हाथ की दो उंगलियों से रोटी का ग्रास तोड़ते हो तो यदि आप को उंगलियों में
कड़ेपन और ढीलेपन या किसी भी प्रकार का अहसास नहीं होगा तो आप को पता कैसे चलेगा की
आप ने रोटी का ग्रास तोड़ लिया है . अर्थात हम यहां यह कहना चाहते है की हमारे शरीर
में परिवर्तन नहीं होंगे तो हमे कैसे पता चलेगा की हम जिन्दा है या मर गए . इसलिए
शरीर में परिवर्तन होना एक प्राकृतिक क्रिया होती है . ठीक इसी प्रकार से दूसरे
व्यक्ति के शरीर में भी परिवर्तन होते है . यदि हम दूसरे व्यक्ति के शरीर के
परिवर्तनों को ख़ुशी से सहन नहीं करेंगे तो दूसरा व्यक्ति आप के शरीर के परिवर्तनों
को क्यों सहन करेगा ?.
जैसे
आप खुद तो तेज आवाज में बोलते हो और जब कोई दूसरा व्यक्ति तेज आवाज में बोलता है
तो आप को यह बुरा लगता है . तो फिर आप ही बताईये आप की तेज आवाज को सामने वाला
व्यक्ति कैसे बर्दास्त करेगा ?.
इसलिए यदि हम
लोगों से बचेंगे तो लोग हमसे बचेंगे और अपनी सुख सुविधाओं के लिए सारे भोग करेंगे
. जैसे हम किसी दूकान से पैसे देकर बर्फी लेकर खाते है और इतने में ही एक व्यक्ति
उसी दूकान पर जो उसने कल दूध दिया था उसका दूकान वाले से पेमेंट लेने आता है और
हमारा उससे किसी बात को लेकर झगड़ा है तो हम तुरंत ऐसे व्यक्ति को देखकर खुश नहीं
होते है . बल्कि दुखी हो जाते है और कई बार तो यह भी कहते है की आज तो इस व्यक्ति
के दर्शन हो गए अब तो मेरा पूरा दिन ही खराब जाएगा . हमने एक बार भी यह नहीं सोचा
की जो बर्फी हमने अभी अभी खाई थी वह उसी
दूध से बनी थी जो दूध यह व्यक्ति इस दूकान वाले को कल देकर गया था . पर हमारे
अहंकार के कारण हमने तो यह समझलिया की हमने तो पैसे देकर बर्फी खरीदी थी हमे क्या
मतलब दूकान वाला दूध किससे खरीदा है . और इस व्यक्ति से खरीदा भी है तो दूकान वाले
ने इसका पेमेंट किया है . पर हमे इसके पीछे छिपे उस वास्तविक सत्य को भी समझना
चाहिए की अभी हमने एक उदाहरण ऊपर दिया था जिसमे एक व्यक्ति आँखों से देख नहीं सकता
था . तो क्या मै पेमेंट कर दूंगा आप उसकी खुद या किसी से उसको आँखों की रोशनी वापस
दिला दोगे ?.
हम
नहीं दिला पाएंगे . इसलिए हमारे
प्रभु कहते है की पैसे से सबकुछ नहीं प्राप्त किया जा सकता और प्रभु का प्रेम तो
बिना पैसे में ही मिलता है . क्यों की हमारे प्रभु का प्रेम अनमोल है इसकी कीमत
नहीं आंकी जा सकती है . यदि हम प्रेम की भी कीमत लगाने में सफल हो जाते है तो वह
फिर प्रेम नहीं रहेगा बल्कि एक भौतिक वस्तु बनकर रह जाएगा . इसलिए जिस प्रकार
से हम हमारे हाथ को काटकर अलग नहीं फेक सकते ठीक इसी प्रकार से दूसरे लोगों से
बचकर कही नहीं भाग सकते . हम जहा रहते है उसी जगह को इतना प्रेम करना चाहिए की
हमारे आसपास का वातावरण बहुत ही खुशनुमा रहे . घर , परिवार , कॉलोनी को एकदम साफ़ सुथरा , प्रदुषण मुक्त , हरा भरा रखना चाहिए . धन्यवाद जी .
मंगल हो जी .