परमात्मा सबसे
न्यारा है . उसके जैसा कोई दूसरा हो नहीं सकता . तो फिर उससे बात करने की विधि भी
सबसे न्यारी है . यह विधि किसी से मैल नहीं खाती है . हमारे पिता केवल प्रेम की
भाषा समझते है . उन्हें हमारा केवल प्रेम चाहिए . वे हमारे प्रेम के भूखे है .
हमारे प्रभु को केवल प्रेम का ही भोग लगता है . जब हमे प्रेम की भाषा बोलना ,
सुनना , सुनाना, सूंघना , स्पर्श करना , देखना , महसूस करना आने
लगता है तो फिर धीरे धीरे प्रभु हमारी बात को सुनना शुरू करते है . और जैसे ही
हमारे किसी संचित कर्म के कारण इस भाषा में प्रेम की कमी होने लगती है तो प्रभु से
संपर्क टूटने लगता है .
अपने मन को प्रेम
की भाषा में कैसे प्रशिक्षित करे :
इसे करने के अनंत
तरीके है . क्यों की परमात्मा की हर चीज अनंत है . जैसे माला जाप करके , मन्त्र जाप करके , रोज मंदिर जाकर , प्रकृति के सौंदर्य को निहारने से , सभी जीवों को देखकर खुश होने से , प्यासे को पानी पिलाने से , पशु से दूध लेने
से पहले उसकी सेवा करने से , मजदूर की मजदूरी
पसीना सूखने से पहले देने से , आप की आप के
सामने कोई निंदा करे उसको भी प्यार करने से , जिसे आप शत्रु मानते है उसे भी अपने प्रिय मित्र जैसा प्यार
करने से , घर परिवार , बाहर सेवा करने से, किसी का कष्ट दूर करने से आप का मन धीरे धीरे प्रेम की भाषा
सिखने लगता है.
क्या
करे जब आप को कोई पीड़ा पहुँचाये और आप उससे प्रेम की भाषा बोलने का अभ्यास करे ?
केवल आत्म समर्पण
ही इसका एक मात्र सच्चा उपाय है बाकी सब धोखा है . अपनी आत्मा में और परमात्मा में
पूर्ण विश्वास करके ऐसे व्यक्ति के समक्ष आत्म समर्पण इस भाव के साथ करे की यही
परमात्मा का साकार रूप है . यह भाव तभी विकसित होता है जब आप क्रियायोग ध्यान का
गहरा अभ्यास करते है .
जैसे आप के हाथ
को मच्छर काट रहा है और आप ने उसे भगाने के लिए ऐसे घातक केमिकल का प्रयोग किया है
जो हमारे स्वास्थ्य के लिए और पर्यावरण के लिए खतरा है तो फिर आप अपने मन को प्रेम
की भाषा सिखाने में सफल नहीं होंगे . क्यों की केवल सत्य और अहिंसा का मार्ग ही
प्रेम की भाषा का मार्ग है .
फिर
महाभारत में इतनी मारकाट क्यों हुयी थी ?
यह सब मन के ही
उपद्रव है . हमारा मन कुछ भी दिखा सकता है और सुना सकता है पर जो वास्तविक सत्य है
वह यह है की केवल परमात्मा का अस्तित्व है और आप परमात्मा से केवल प्रेम की भाषा
में ही बात कर सकते हो .
प्रभु
आप को आप की भाषा में ही जवाब देते है . आँखों से जो महाभारत का युद्ध देखा गया था
वह मन का ही एक प्रक्षेपण था . अर्थात संसार आप के मन का प्रकट रूप है . आप खुद
पूरा संसार है . जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो धीरे धीरे आप और प्रभु के
बीच दूरी समाप्त होने लगती है और आप का मन निर्मल होने लगता है . फिर परमात्मा से आप के प्रश्नों का जवाब
तुरंत मिलने लगता है . पूर्ण पवित्र तो आप अभी भी है पर संचित कर्मो के आवरण के
कारण अपनी पवित्रता की अनुभूति नहीं होती है . क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से हर
प्रकार की शंका के ऊपर से अज्ञान का पर्दा हमेशा के लिए उठने लगता है . इसलिए हमे
सभी से मित्रता के भाव ही विकसित करने चाहिए . आप का मन आप को अनंत प्रकार के लोभ
लालच देगा पर आपको केवल अपनी अंतर् आत्मा की सुननी चाहिए .
कैसे
पता करे की मै अंतर् आत्मा की सुन रहा हूँ या फिर से मन ही बड़ बड़ा रहा है ?
यदि आवाज
अंतरात्मा की होगी तो आप हिंसा नहीं करेंगे और आप को एक ऐसी संतुष्टि की अनुभूति
होगी जो किसी सांसारिक वस्तु से नहीं मिल सकती है .
पर यदि आवाज मन
की होगी तो फिर से आप के मन में दूरी बढ़ाने वाले विचारों की श्रंखला शुरू हो
जायेगी. मन में कई प्रकार के तर्क वितर्क आने लगेंगे . और धीरे धीरे आप का मन
अशांत होने लगेगा .
प्रेम की भाषा
सिखने से सम्बंधित आगे और लेख देखने को मिल सकते है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी
.