हम खुद यह कैसे अनुभव करे की भोजन हमारी सोच को प्रभावित करता है ?

मेरे प्रिये
मित्रों हमारे परम पिता उपरोक्त प्रश्न का जवाब पुरे वास्तविक तथ्यों के साथ दे
रहे है . आप को सिर्फ यह विश्वास करना है की आप इस लेख को पुरे दिल से पढ़ेंगे
दिमाग से नहीं . यदि आप इस समय केवल अपने प्रभु में पूर्ण विश्वास नहीं रखते है तो
फिर पहले और इन्तजार करे और जब आप का मन शांत हो अर्थात आप के मन में प्रभु को
जानने के अलावा और कुछ लालसा ना हो तब आप इस लेख को पढ़ेंगे तो यह लेख शत प्रतिशत
आप के भीतर वास्तविक सत्य के रूप में उतर जायेगा .

जब आप की आँखे
अलग अलग प्रकार के भोजन को देखती है तो आप के मन में अलग अलग प्रकार के विचार उठने
लगते है . और ठीक इसी प्रकार से अलग अलग प्रकार के भोजन को आँखों के माध्यम से न
देखकर यदि आप केवल इनकी गंध को सूंघते है तब भी आप के मन में अलग अलग विचार
उत्पन्न होते है और ठीक इसी प्रकार से जब आप न देखते है और न ही सूंघते है केवल
किसी के मुँह से सुनते है या किसी अन्य माध्यम से सुनते है तब भी आप के मन में
भोजन को लेकर अलग अलग विचार उत्पन्न होते है .

अब आप देखा करो
की कई बार ऐसे विचार उठेंगे की मुँह में पानी आने लगता है यदि अमुक भोजन आप को
पहले से ही बहुत पसंद है . अर्थात आप ऐसे भोजन के दीवाने है .

ठीक इसी प्रकार
से कई बार ऐसे विचार उठेंगे की आप की भूख बंद होने लगेगी या जी मिचलाने लगेगा या
आप का मन ऐसी प्रतिक्रिया देगा की आप खुद को असहज महसूस करेंगे .

इससे यह सिद्ध हो
जाता है की भोजन को देखने मात्र से हमारे मन में कई परिवर्तन आ जाते है और यदि इस
भोजन को हम खाते है तो फिर ऐसे परिवर्तन हमारे मन में गहरे तलों पर जाकर अंकित हो
जाते है .

अर्थात हमने पहले
कभी न कभी ऐसे अमुक प्रकार के भोजन को ग्रहण किया है और उस दरमियान जो जो विचार
हमारे मन में उठे थे वे ही अवचेतन मन के रूप में विकसित हुए थे . और इस प्रकार के
अवचेतन मन के कारण ही आज जब भी हम कोई भोजन को देखते है या किसी भी तरीके का
संपर्क करते है तो हमारे अवचेतन मन की याददास्त के कारण वैसे ही विचार फिर से उठने
लगते है . और फिर लगातार समय के साथ यही अवचेतन मन इन विचारों के अनुरूप साकार
शरीर का निर्माण करता है . जिसे हम बोलचाल की भाषा में हाड मांश का शरीर कहते है
या भौतिक शरीर कहते है .

परन्तु जब आप
क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करते है तो फिर आप इन विचारों को जाग्रत होकर देखने
लगते है . अर्थात आप को क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से यह अनुभव होने लगता है की
किस प्रकार के भोजन से आप का मन किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है . जैसे यदि
किसी अमुक भोजन को देखकर आप का मन विचलित होने लगे अर्थात धीरे धीरे मन अशांत होने
लगे तो आप समझले की यह भोजन आप की प्रकृति के विरुद्ध है . भोजन को देखकर जैसे ही
हमारे भाव बिगड़ने लगे अर्थात मन में डर के
, चिंता के , खुद को या किसी
अन्य जीव को क्षति पहुंचाने के
, हिंसा के ,
झूठ के , लोभ के , लालच के ,
निंदा के , बदले की भावना के भाव उठने लगे तो आप को तुरंत यह विश्वास
कर लेना चाहिए की यह अमुक भोजन मेरे स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है . अर्थात ऐसा
भोजन अप्राकृतिक होता है .

यदि हम आदत से
मजबूर होकर ऐसा भोजन खा लेते है तो फिर इसी के अनुरूप हमारी आगे की सोच विकसित
होती है . क्यों की जैसे आप के विचार होंगे आप की सोच भी वैसी ही होगी .

इसके विपरीत यदि
किसी भोजन को किसी भी रूप में संपर्क करने से हमारे मन में सकारात्मक विचार उठते
है तो फिर आप यह विश्वास करले की ऐसा भोजन आप के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है
.

इसलिए निरंतर
क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करके आप अपने लिए माफिक भोजन का ज्ञान खुद प्राप्त कर
सकते है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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