यह
गलती करने के कारण आप चुप नहीं रह पाते है
आज हमारे परमपिता यह समझा रहे है की किस प्रकार से हमारे मन
को नये सिरे से प्रोग्राम करे ताकि हम अनावश्यक ना बोले .
जब हम क्रियायोग ध्यान का अभ्यास नहीं करते है तो हमे हर
चीज से दूरी का अनुभव होता है . जैसे आप को यह लगता है की इस अमुक व्यक्ति से मुझे
बात नहीं करनी है . क्यों की इससे जैसे ही मै बात करूँगा तो यह व्यक्ति झगड़ना शुरू
करेगा . पर यह बात वास्तविक सत्य नहीं है . क्यों की अभी आप के मन में यह संस्कार
प्रबल है जो आप को माया को सच मानने पर मजबूर कर रहा है . यहाँ आप का यह स्वार्थ
है की मै झगड़ा नहीं करता हूँ बल्कि सामने वाला झगड़ा करता है . अर्थात अभी आप को यह
लग रहा है की आप और सामने वाला दो शरीर है जो मुख से बोलते है . पर यह सच नहीं है
. आप दोनों निराकार की संतान है पर आप की इन्द्रियाँ अविकसित होने के कारण आप को
यह मायावी अनुभूति ही सच लगती है . जैसे ही आप क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करेंगे
तो आप को यह ज्ञान होगा की आखिर यह व्यक्ति मेरे से झगड़ा करता क्यों है . जब हमारी
वाणी में विनम्रता की कमी होती है और अहंकार भाव प्रबल होता है तो फिर हमें यह
लगता है की मै सही हूँ और सामने वाला गलत है. पर जब आप क्रियायोग का अभ्यास करेंगे
तो आप को यह पता चलेगा की यदि आप से कोई मीठा बोल रहा है और आप सोच रहे है की वह
आप से प्रेम करता है तो जरुरी नहीं है की यह प्रेम वास्तविक हो . इसका पता भयंकर
संकट के समय पड़ता है . अर्थात आप सबसे पहले यह विश्वास करे की सबकुछ आप के ही
कर्मो के कारण हो रहा है . इसी का निरंतर अभ्यास करे और अपने मन में यह धन्यवाद
बार बार दे की आप को परमात्मा ने रचा है
और आप के मन , बुद्धि और शरीर
के माध्यम से खुद निराकार शक्ति आप के सभी कर्म कर रही है . अर्थात आप खुद कुछ
नहीं कर रहे है . आप खुद कुछ कर भी नहीं सकते है . इसलिए जब आप अपने शब्दों पर
एकाग्र होने लगेंगे , अपनी आँखों पर एकाग्र होने लगेंगे और अपने कानों पर
एकाग्र होने लगेंगे तो आप को धीरे धीरे यह पता चलेगा की कोनसे शब्द बोलने से आप
झगडे में फसते है और कोनसे शब्द बोलने से आप झगड़ा होने से बचते है और कब नहीं
बोलना है और कब बोलना है आदि का वास्तविक ज्ञान होने लगता है . क्यों की क्रियायोग
के अभ्यास से आप का जीवन निस्वार्थता की तरफ बढ़ने लगता है . अर्थात आपसी मनमुटाव
की दूरी समाप्त होने लगती है और आप के भीतर सभी के प्रति पवित्रता के भाव विकसित
होने लगते है . आप को एक अलग ही प्रकार की संतुष्टि की अनुभूति होने लगती है . आप
का चुप रहना भी तभी सार्थक होता है जब आप भीतर से चुप रहते है . क्रियायोग आप की
बोलने की इच्छा का दमन नहीं करता है बल्कि आप को जाग्रत करता है की मोन शब्द का
वास्तविक अर्थ क्या होता है . जैसे अभी अभी आप ने तेज मिर्ची का खाना खाया है और
आप के पेट और मुँह में तेज मिर्च लग रही है और उसी समय कोई व्यक्ति आप से पूछना चाहता
है और आप जवाब नहीं दे रहे है तो उसे
गुस्सा आता है और अब आप को तो गुस्सा आएगा ही क्यों की अभी आप तेज मिर्च के
कारण आप बोल नहीं पा रहे है . तो क्या करे ?
ऐसी कोई भी क्रिया जो आप को समता भाव से डिगाये आप उसे नहीं
करने का अभ्यास करे . आप सोचे की थोड़े से स्वाद के लालच के बाद इसका भुगतान कितना
बड़ा करना पड़ता है . जैसे जैसे आप को इन्द्रियों के काम करने का ज्ञान होने लगेगा
आप धीरे धीरे संतुलन में आने लगेंगे और एक समय ऐसा आएगा की आप के मन में हमेशा
सकारात्मक विचार ही आएंगे . और यदि कोई नकारात्मक विचार आ भी जायेगा तो आप उसे
सकारात्मक विचार में बदल देंगे . क्यों की क्रियायोग के अभ्यास से आप परिवर्तन की
शक्ति से सीधे जुड़ जाते है . अब आप अपने मन पर नियंत्रण रखने में कामयाब होने लगते
है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .