मेरे दोस्त मै आज आपको आपके जीवन के बारे में समझाने जा रहा हूँ . आप चाहे महिला हो या पुरुष , या फिर बच्चा हो या कोई बूढ़ा व्यक्ति आप सभी मेरे सच्चे दोस्त हो इसलिए मै आज आप से अपने परमात्मा का वह सच बताने जा रहा हूँ जिसे यदि आप ने विश्वास करके समझने का संकल्प ले लिया है तो फिर इस लेख को पढ़कर इसमें जो बताया जा रहा है उसको यदि आप जीवन में अभ्यास के माध्यम से उतार लेते है तो फिर आप को खुद को यह अनुभूति हो जायेगी की आप ईश्वर की महान संतान है . अर्थात आप कोई साधारण जीव नहीं है .
दोस्त केवल मनुष्य योनि ही ऐसी परमात्मा की रचना है जिसे खुद परमात्मा ने वे अनंत शक्तियाँ दी है जिसे यदि आप जाग्रत कर लेते है तो फिर आप जीवन में हरपल खुश रहने लग जायेंगे .
अब दोस्त पहले बात करते है जीवन क्या है ?
इस जीवन शब्द में ही इसका वास्तविक अर्थ छिपा हुआ है . अर्थात एक ऐसा जीव जो वन में गमन करता है .
यहां वन किसे कहा गया है ?
हमारे शरीर की रचना एक पेड़ की तरह है . जिसमे जड़े ऊपर (सिर वाला भाग) और शाखाएँ निचे (जैसे कंधे , सीना , पेट , हाथ , पैर) होती है .
आप जो अपने शरीर में नशे देखते है वे जिस प्रकार पेड़ के मुख्य तने से शाखाएँ निकलती है ठीक इसी प्रकार आप के शरीर में सिर वाले भाग से पूरे शरीर की नशे निकलती है .
इन्ही नशो में एक मुख्य नश होती है जिसे विज्ञानं की भाषा में रीढ़ बोलते है . अर्थात परमात्मा की प्रकाश रुपी शक्ति पहले इस शरीर रचना में जब आप माँ के गर्भ में पुराने गर्भ से आते है तो फिर माँ की नाभि से प्राण के रूप में आप के शरीर की नाभि का निर्माण करती है . ताकि माँ के गर्भ में आप का शरीर माँ की नाभि से लगातार प्राण शक्ति लेता रहे और आप की यह शरीर रचना निरंतर विकसित होती रहे .
और फिर जिस प्रकार से एक लौकी को पकने के बाद उसको लौकी के पेड़ से जुड़े डांड से हम अलग करके सब्जी के लिए काम में लेते है ठीक इसी प्रकार जब आप का शरीर माँ के गर्भ से बाहर आता है तो आप के शरीर की नाभि एक नाल के रूप में माँ की नाभि से अलग की जाती है .
इस प्रकार नौ महीने पूरे होते होते आप की शरीर रचना अब इस प्रकार से तैयार हो चुकी होती है की आप का शरीर खुद परमात्मा से सीधा प्राण शक्ति लेकर इस शरीर रचना को जिस लक्ष्य के लिए हमारे परमात्मा ने रचा है उस लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाता है .
इसीलिए बालक का जन्म सामान्यतया नौ माह के बाद होता है .
अब मेरे दोस्त आप के शरीर में जो रीढ़ की हड्डी होती है उसमे एक नाड़ी होती है जिसे सुषुम्ना नाड़ी कहते है . यह शरीर की मुख्य नाड़ी कहलाती है और इसका फैलाव सिर से लेकर मेरुदंड तक होता है .
इसी नाड़ी में परमात्मा की शक्ति सिर के पीछे वाले भाग (जिसे विज्ञानं मेडुला कहता है) से सबसे ज्यादा प्रवेश करती है और लगातार इस प्रकार से यह प्राण शक्ति आप की सुषुम्ना नाड़ी में बहती है की यदि आप के पैरो या हाथों या फिर शरीर के किसी भी अंग में प्राण शक्ति की कमी है तो फिर सुषुम्ना नाड़ी से प्राण शक्ति सीधे आवश्यक अंग में पहुँच जाती है और आप के शरीर का वह अंग ठीक होने लगता है .
अर्थात परमात्मा का खुद जीव रूप में प्रकट होना और फिर ऐसा जीव रूप इस सुषुम्ना नाड़ी में निरंतर गमन करना ही जीवन कहलाता है .
जीवन का अर्थ यह नहीं होता है की सुबह उठे और खाना खा लिया और फिर दिन भर मौज मस्ती करली और रात को फिर खाना खा के सो गए . ऐसा करते करते मेरे दोस्त आप ने पूरा जीवन निकाल दिया . यदि आप ने अपने जीवन को वास्तविक रूप में नहीं समझा अर्थात खुद को ही नहीं जाना तो फिर आप के जीवन में और एक पशु के जीवन में क्या अंतर् रह जायेगा .
आप का जीवन पशु के जीवन से हर प्रकार से महान है . और इस सुषुम्ना नाड़ी को वन क्यों कहा गया है ?
क्यों की आप का शरीर एक पेड़ की तरह है और यह पूरा संसार भी एक पेड़ ही है . अर्थात यह संसार परमात्मा का शरीर ही है . और इसमें पृथ्वी , तारे , सूर्य , चन्द्रमा , समुद्र ऐसे सभी परमात्मा के इस शरीर के अंग है . जैसे आप इसे ऐसे समझ सकते है की हम जिस धरती पर रहते है वह प्रभु का पेट है और इस पेट में हम सभी दोस्त पल रहे है . इसीलिए तो मेरे दोस्त हम सभी हमारी इस प्यारी धरती को माँ कहते है .
जब आप सुख में और दुःख में समान रूप से स्थिर होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी उचित कर्म करते है तो आप खुद परमात्मा की तरह इस धरती पर इस शरीर के माध्यम से गमन करते हुए अपना जीवन जीते है . अर्थात इस पूरे शरीर को आप एक वन क्षेत्र की तरह समझे और इस वन क्षेत्र में आप आत्मा के रूप में इस प्रकार से विचरण करे की आप के कर्म ऐसे हो जिससे इस धरती माँ का सौन्दर्य बढे .
जीवन को मै आगे भी अनेक रूपों में परिभाषित करूँगा ताकि मेरे दोस्त आप को जीवन को समझने में बहुत आसानी हो .
दोस्त आप ने जो जीव रूप धारण किया है वह ऐसे ही चलते फिरते नहीं किया है . इसके पीछे परमात्मा का बहुत गहरा राज है . पर अभी आप इस राज को इसलिए नहीं समझ पा रहे है की आप ने अब तक जो कुछ भी संचित किया है वह होशपूर्वक अर्थात पूरी तरह जाग्रत नहीं रहकर किया है .
जैसे आप को किसी ने यह कह दिया की आप सूंदर नहीं है और फिर आप ने इसे स्वीकार कर लिया . फिर धीरे धीरे यही विचार आप ने खुद ही साकार कर लिया . पर अब समय आ गया है मेरे दोस्त की सच तो यह है की वास्तविक रूप में आप बहुत सुंदर है .
अब आप सोच रहे होंगे की आप का यह दोस्त आप को केवल प्रेरणा अर्थात मोटीवेट कर रहा है .
नहीं मै आपको मोटीवेट नहीं कर रहा हूँ मै सिर्फ आप को आप का जो वास्तविक स्वरूप है उसका दर्शन आप खुद कैसे करे उसका क्रियायोग ध्यान के माध्यम से अभ्यास करा रहा हूँ.
अर्थात आप मेरे यह लेख पढ़कर अब धीरे धीरे क्रियायोग ध्यान के अभ्यास की तरफ मुड़ रहे हो .
जब आप जीव भाव को वास्तविक रूप में समझने लगते है तभी आप इस संसार में अन्य जीवों से सत्य और अहिंसा के सम्बन्ध की वास्तविक अनुभूति कर पाते हो.
जैसे मेरे दोस्त आप एक पुरुष है तो फिर आप को आप के जीवन का आनंद पुरुष बनकर ही लेना चाहिए . आप महिला बनने की कोशिश करेंगे तो फिर आप के जीवन से सच्ची ख़ुशी धीरे धीरे समाप्त होने लग जायेगी .
और मेरे दोस्त यदि आप एक महिला है और आप पुरुषों की नक़ल करती है तो फिर आप को परमात्मा ने एक महिला के रूप में रचकर जो खुशियाँ दी है आप इन खुशियों से वंचित रह जायेगी .
जैसे यदि आप सोचती है की लड़को को समाज और कानून विशेष महत्व देता है और हमेशा लड़कियों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता है तो फिर आप की यही सोच एक दिन समाज में टकराव पैदा करने लगती है .
आप इसकी जगह यह सोचे की मुझे मेरे परमात्मा ने एक लड़की के रूप में रचा है तो मेरे भीतर ऐसी क्या विशेषताएं है जिन्हे यदि मै समझकर मेरा जीवन जीती हूँ तो फिर मुझे एक लड़की होने पर गर्व महसूस होने लगेगा .
अर्थात मेरे दोस्त मै आप को केवल इतना ही समझा रहा हूँ की हमे इस संसार में शिकायत मुक्त जीवन जीने का अभ्यास करना है यदि हम वास्तव में अपने जीवन को समझना चाहते है तो .
और ऐसा करना आप के लिए शत प्रतिशत संभव है चाहे आप अभी वर्तमान में किसी भी स्थिति से गुजर रहे हो .
क्यों की जब आप अपने जीवन को क्रियायोग ध्यान के माध्यम से समझने का अभ्यास करते है तो फिर आप को खुद को यह अहसास होने लगता है की आप अभी भी बहुत खुश है और आप का जीवन अभी भी निरंतर सही दिशा में आगे बढ़ रहा है . क्यों की जब आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर इस जीवन को समझने का अभ्यास करते है तो जो घरवाले अभी आप को यदि बुरे लगते है तो फिर आप के जागने पर यही घरवाले आप को बहुत अच्छे लगने लगते है . क्यों की जिस प्रकार परमात्मा आप के रूप में इस जीवन को चला रहे है ठीक वही परमात्मा आप के घर वालों के रूप में भी निरंतर कार्य कर रहे है .
अर्थात आप का जीवन सीधे सीधे परमात्मा से नियंत्रित है .
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .