जैसे अभी मेने आप को कैला लाने के लिए कहा तो आप के मन में
तुरंत कैले की छवि बन गई. क्यों ?
क्यों की आप ने जीवन में कभी न कभी इस फल का नाम कैला रखा
था पर आप ने ही एक भूलने की प्रकृति का संस्कार भी अपने मन में जमा कर रखा है . इस
भूलने के संस्कार के कारण आप यह नाम रखकर अब भूल गये. और हो सकता है आप ने यह
संस्कार बनाया हो की आप को इस अमुक प्रकार के फल का नाम कैला किसी अन्य व्यक्ति ने
बताया था . इस कारण से जैसे ही कोई आप से इस प्रकार के फल से सम्बंधित जानकारी
साझा करता है तो आप के मन में इस फल को लेकर जितनी भी जानकारियाँ है वे सब मन के
दृश्य पटल पर आकर प्रतिबिंबित होने लगती है .
अब प्रश्न यह आता है की जैसे आप अमीर व्यक्ति
बनना चाहते है और आप शत प्रतिशत यह विश्वास अपने आप में चाहते है की आप को यह पता
चल जाए की हां आप एक निश्चित समय पर अमीर व्यक्ति बन जायेंगे पर कैसे ?
जब आप क्रियायोग ध्यान का सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास
के साथ निरंतर अभ्यास करते है तो आप निराकार की शक्ति के साथ एकता स्थापित करने
में सफल होने लगते है और आप को यह ज्ञान होने लगता है की अमीर बनने के लिए क्या
क्या करना होता है और आप किस तरह से यह सब कर लेंगे और कैसे अंत में आप अमीर बन
जायेंगे ?
अब यदि इस लेख को पढ़ने के दौरान आप जाग्रत है तो यहां मेने ‘विश्वास‘ शब्द और ‘सच्ची श्रद्धा‘ शब्द का प्रयोग
किया है . अब मै आप को विश्वास शब्द के पीछे छिपे अर्थ को समझाने जा रहा हूँ .
किसी भी क्रिया में जब हम एकाग्र होने लगते है तो धीरे धीरे
क्रिया गौण होने लगती है और हम एक ऐसी शक्ति से जुड़ने लगते है जो कण कण में
व्याप्त है . जिसे निराकार शक्ति , निर्माण , सुरक्षा और परिवर्तन की शक्ति ऐसे अनेक नामों से जाना जाता है . जब आप अमीर बनने की सोचते है तो
इसी शक्ति के ज्ञान के कारण आप का मन इस प्रश्न का निर्माण करता है की अमीर बनने
का क्या अर्थ होता है ?
फिर इसी निराकार शक्ति से दूसरा यह ज्ञान प्रकट होता है की
जब किसी व्यक्ति के पास बड़ा घर , गाड़ियाँ, अच्छा बैंक बैलेंस , अच्छा व्यवसाय या बड़ी नौकरी होती है तो ऐसे व्यक्ति को अमीर
व्यक्ति का दर्जा समाज के माध्यम से दिया जाता है .
फिर क्रियायोग के निरंतर अभ्यास से यह ज्ञान प्रकट होता है
की उपरोक्त चीजों को साकार करने के लिए क्या क्या कर्म करने है और कैसे यह कर्म
पुरे होंगे इसका भी ज्ञान होने लगता है .
जैसे ही किसी भी क्रिया का परिणाम आप की चाहत के अनुरूप आने
लगता है तो आप को इस अमुक क्रिया के ऊपर विश्वास हो जाता है .
जैसे आप ने कभी पानी की प्यास लगने के संस्कार को अवचेतन मन
में जमा किया हो और फिर यह संस्कार भी निर्मित किया हो की जैसे ही आप पानी पिने की
क्रिया करेंगे तो आप ने जो प्यास बुझने की अनुभूति होने वाला अहसास रुपी संस्कार
जमा किया था वह अब एक्टिवेट हो जाता है . अर्थात आप जैसे ही पानी पीते है तो एक
निश्चित मात्रा के बाद आप को ‘अब मुझे प्यास नहीं लग रही है ‘ का मन में अहसास
निर्मित हो जाता है . और आप के दिमाग को यह निर्देश भेज दिया जाता है की अब आप के
शरीर रुपी इस तंत्र को और पानी पिने की आवश्यकता नहीं है .
इस प्रकार से आप के मन में यह विश्वास निर्मित हो गया है की
प्यास लगने पर पानी पिने से प्यास बुझ जाती है . ठीक इसी प्रकार से किसी भी क्रिया
के साथ जुड़ने से आप और क्रिया एक हो जाते है और आप को यह ज्ञान हो जाता है की
विश्वास का निर्माण कैसे किया जाता है .
अब जैसे सभी के मन में परमात्मा को लेकर यह शंका हमेशा बनी
रहती है की परमात्मा होते भी है की नहीं . क्यों की
ज्यादतर डर के कारण हां में हां मिलाते है . ……..शेष भाग अगले लेख में समझे
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .