जब लोग आप की आप के सामने ही बेइज्जती करने लगे तो क्या करे ?

इसका परमात्मा के मुख से जवाब सुनकर आप हैरान रह जायेंगे की
ऐसे झगड़े वाले माहौल को भी आप परम आनंद में आसानी से बदल सकते है यदि आप को खुद के
ऊपर शत प्रतिशत विश्वास है तो . कैसे
?

जब आप क्रियायोग ध्यान का पूर्ण मनोयोग से गहरा अभ्यास करते
है तो आप को यह अनुभव होने लगता है की ये लोग मुझे गालियाँ निकालकर मेरे मन से
गंदकी निकाल रहे है और मेरे मन को शांत करने के लिए मेरी मदद कर रहे है .

अब यह बात आप के आसानी से गले नहीं उतरेगी
क्यों
?

क्यों की जब भी हमारे सामने कोई भी व्यक्ति कुछ भी बोलता है
तो वास्तविकता में वह हमारा कर्म फल ही बोल रहा होता है . अर्थात हर व्यक्ति आप
की फोटो कॉपी है . यह फोटो कॉपी आप को निरंतर जाग्रत कर रही है . या इसे ऐसे समझे
की अभी आप खुद को और सामने वाले को दो शरीरों के रूप में समझ रहे है . पर यह सच
नहीं है . सच यह है की यह दोनों शरीर उस प्रेम तत्व से प्रकट हो रहे है जो कण कण
में व्याप्त है . अर्थात वास्तविकता में आप दोनों के बीच दूरी शून्य है पर आप के
मन में संचित पुराने कर्मो के कारण आप का मन आप को धोखा देकर दो शरीर दिखा रहा है
और आपस में झगड़ा करा रहा है .

फिर हमारे मन को कैसे समझाए की मै और सामने
वाला व्यक्ति शरीर नहीं है बल्कि दो पवित्र आत्माये  है जो कर्म बंधन में फसी हुयी है
?

मन को क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से समझकर और फिर इसे
प्रशिक्षित करके ही समझाया जाता है . बाकी अन्य तरीके
झूठी तसल्ली देते है . अर्थात हम खुद से झूठ बोलकर इन गालियों से घबराके हम भी
गाली देने पर उतारू  हो जाते है

. जैसे यदि हमारे हाथ में हमारा ही एक जूता है और हम पानी में देख रहे है . पानी
में हमारा ही चित्र देखकर हमारा मन हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है की कोई
व्यक्ति हमारे ही जूता मारने के लिए खुद के हाथ में जूता लिए हुए है . और जब हम मन
के इस झूठे विचार पर विश्वास करके इस चित्र को जूता मारने लगते है तो पानी में दिख
रहे चित्र के जूता मारने के कारण पानी के छींटे हमारे शरीर को ही गीला कर देते है
. तब हमे वास्तविकता का पता चलता है .

इसलिए क्रियायोग ध्यान का गहरा अभ्यास यह
सिखाता है की या तो आप यह विश्वास करलो की कण कण में केवल परमात्मा का ही अस्तित्व
है या फिर लोगों की गालियाँ सुन सुन कर उनका जवाब दे दे कर अपने आप को पूर्ण
क्षतिग्रस्त
, लहूलुहान करके , सभी
जगह से ठोकरे खाके फिर अंत में इस वास्तविक सत्य को अनुभव करलो की मै शरीर नहीं हु
. मै तो परमात्मा की संतान हूँ
, आनंद
स्वरूप हूँ .
अब जैसी ही आप इस लेख पर विश्वास करके क्रियायोग ध्यान के
अभ्यास के लिए आप के मन को राजी करने की कोशिस करेंगे तो आप का मन आप से यह कहेगा
की पहले हर घटना का स्वाद चखो
, फिर अनुभव करो और फिर घटना के अनुसार ही उस पर विश्वास करो
क्यों की हर स्वाद बुरा नहीं होता है . यह आप को ऐसे उदाहरण देगा की एक बार जब आप
को किसी व्यक्ति ने गाली दी थी तो आप ने उसे डरा धमका के भगा दिया था और वह
व्यक्ति आज तक वापस नहीं आया .

और मन की इसी लुभावनी चाल में फसकर आप एक बार फिर से किसी
अन्य व्यक्ति के गाली देने पर मन का पुराने वाला तरीका अपनाकर इस बार बड़ी मुसीबत
मोल ले लेते है और फिर यह सोचने पर मजबूर हो जाते है की जब पहले मेने गाली देने
वाले व्यक्ति को धमकाके भगा दिया था तो फिर इस बार मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ की इस
बार गाली देने पर इस व्यक्ति ने मेरी जमकर ठुकाई कर दी और साथ ही मुझे ही थाने
में बंद करवा दिया
?.

आप के साथ ऐसा इसलिए हुआ की जब पहले आप ने गाली का जवाब
गाली से दिया था तो आप के मन में गाली देने का विचार बार बार सोचने से मन में
सूक्ष्मतम कणों के रूप में संचित होकर और फिर मन के ही माध्यम से शरीर के रूप में
प्रकट हो गया और अब यह दूसरा व्यक्ति ही आप के सामने गाली देने वाले के रूप में आप
की आँखों के माध्यम से आप को दिखने लग गया .

पर
अब आप का मन आप से कहेगा की इस व्यक्ति की शक्ल तो पहले वाले व्यक्ति  से बिलकुल भी नहीं मिलती फिर यह नया व्यक्ति
मुझे गाली क्यों दे रहा है
?

क्यों की अभी आप जाग्रत नहीं है इसलिए जो आप की इन्द्रियाँ
अनुभव कर रही है आप उसे ही सच मान  रहे है
अर्थात जो दिख रहा है वह सच नहीं है . सच केवल वह शक्ति है जो इन व्येक्तियों के
रूप में प्रकट हो रही है .

अब आप उस शक्ति को कैसे देखेंगे ?

उस शक्ति को देखना असंभव है . क्यों की उस शक्ति के अलावा
कुछ भी नहीं है . अर्थात यही शक्ति आप है
, यही शक्ति सामने वाला व्यक्ति है और यही शक्ति
वह गाली है इत्यादि .

इसलिए जब तक आप क्रियायोग ध्यान के गहरे अभ्यास से इस सत्य
का अनुभव नहीं कर लेते आप को यह गालियाँ ऐसे ही परेशान करती रहेगी और आप कर्म बंधन
के जाल में फसते रहेंगे . इसलिए आप परमात्मा पर पूर्ण विश्वास करके क्रियायोग
ध्यान का गहरा अभ्यास निरंतर करे ताकि आप अपने स्वरुप का दर्शन कर सके और सभी
प्रकार के कष्टों से हमेशा हमेशा के लिए मुक्त होकर हर पल खुश रह सके . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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