संतुष्टि कैसे मिले ?

संतुष्टि कैसे मिले इसका जवाब है इस क्षण में जीने का अभ्यास करना . जब आप इस क्षण में जीने का अभ्यास करते है तो आप धीरे धीरे संतुष्ट होने लगते है .
ऐसा क्यों होता है ?
पहली बात तो यह है की जब आप सच में इसका अभ्यास करते है तो यह परमात्मा की शत प्रतिशत गारण्टी है की आप को संतुष्टि मिलेगी ही मिलेगी .
क्यों ?
क्यों की इस क्षण में जीने का वास्तविक अर्थ है की आप परमात्मिक अनुभूति में जी रहे है . और परमात्मा की प्रकृति ही संतोष है .
क्यों की इस क्षण के अलावा पूर्व क्षण और भविष्य क्षण का वास्तविक रूप में अस्तित्व ही नहीं है . ये दोनों ही क्षण माया है . कल्पना है , झूठ है , धोखा है .
इस क्षण में जीने का मतलब है की आप समय , दूरी और द्रव्यमान से मुक्त हो गए हो . अर्थात आप संतुष्टि कैसे मिले का उत्तर प्राप्त करने लगते है .

समय , दूरी और द्रव्यमान ये तीनो ही माया से प्रकट होते है . अर्थात ये तीनो ही इस क्षण की छाया है .
इसलिए अब आप बहुत ही आसानी से समझ सकते है की जिसे आप शरीर समझ रहे है वह आप के माध्यम से ही हर क्षण में एकत्रित की गयी आप की सोच की छाया मात्र है .

इसलिए सबसे पहले अपने आप को शरीर न मानकर आत्मा समझे .
और जब आप खुद को आत्मा समझना शुरू करते है और सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन की सभी क्रियाये करते है तो अब आप के इस शरीर में कई प्रकार के परिवर्तन होने लगते है .

क्यों होते है शरीर में ये परिवर्तन ?
क्यों की इस अभ्यास से पहले आप अपने मन के अधीन होकर चल रहे थे .
अर्थात आप स्वचालित थे . अब आप खुद के मन के ऊपर नियंत्रण करने जा रहे है .
और मन हमेशा आदत के साथ काम करता है .

इसलिए आप तो मन को इस क्षण की घटनाओं को अनुभव करने के लिए कह रहे हो और आप का मन आप के संचित कर्मो के अनुसार भूतकाल और भविष्य काल की घटनाओं में रमा हुआ है .

(जैसे वह कल पैसे नहीं देगा तो मेरा क्या होगा ?).

इस प्रकार आप का मन को पकड़कर इस क्षण में लाना ही ये परिवर्तन प्रकट करता है .
और कई बार तो ये परिवर्तन इतने तीव्र होते है की आप कुछ भी नहीं समझ पाते है .
जैसे आप डरने लगते है , आप को चक्कर आने लगते है , थकान महसूस होने लगती है ,
घबराहट होने लगती है , किसी भी काम में मन नहीं लगता है , और भी अनेक प्रकार के
परिवर्तन प्रकट हो सकते है .

आप को किसी भी परिवर्तन से घृणा , इसकी निंदा , इससे डरना नहीं है . यदि कोई भी परिवर्तन
आप सहन नहीं कर पा रहे है तो आप उस समय के लिए अभ्यास को रोक दे और अपने आप को ऐसी
स्थिति में ले जाए जो मन को रुचिकर लगे पर पूरी तरह जाग्रत रहकर .

अर्थात आप कभी भी किसी भी परिवर्तन से डरकर जाग्रत अवस्था में खुद को मन की ऐसी रूचि के
हवाले नहीं करेंगे जिसमे यदि आप का मन रम जाता है तो फिर वापस लौटकर नहीं आयेगा.

अर्थात जैसे आप अपने मन को बहलाने के लिए एक आइसक्रीम खा लेंगे , या दो खा लेंगे पर सौ आइसक्रीम कभी नहीं खायेंगे यदि आप जाग्रत है तो .

अब समझते है की इस क्षण में जीने का वास्तविक अर्थ क्या है ?

इस क्षण में जीने का वास्तविक अर्थ है की जब आप कोई भी काम कर रहे है तो आप को यह पता रहता है की अभी आप के हाथो में कैसा महसूस हो रहा है , आप के पैर कहा है , आप का सिर कहा है .

आप को क्या क्या आवाजे अभी सुनाई दे रही है . और आप को यह पता होता है की मुझे किस आवाज का जवाब देना जरुरी है . अर्थात आप एक ऐसे ध्यान का अभ्यास कर रहे है जिसके माध्यम से आप के मन और शरीर के रोम रोम में आत्मा का प्रकाश अब जाग्रत हो रहा है .  ऐसा अभ्यास करके आप संतुष्टि कैसे मिले प्रश्न के सही उत्तर को अनुभव कर रहे है .

यह प्रकाश आप के शरीर के सोये हुये सेलो (या कोशिकाओं) को कह रहा है की उठो वत्स बहुत सो लियो हो . अब आप के जागने का समय आ गया है .
अर्थात जैसे ही आप स्वरुप दर्शन का अभ्यास (इस क्षण में जीने का अभ्यास) करते है तो आप की सोयी हुयी चेतना जाग्रत होकर ऊपर उठने लगती है . आप के पूरे शरीर में आत्मा का प्रकाश फैलने लगता है .

अब इस आत्मा के प्रकाश के कारण आप की आँखे जाग्रत होने लगती है , आप के कान जाग्रत होने लगते है . इसलिए अब आप को खुद को और संसार की हर वस्तु को सही से देखना आने लग जाता है .

इस अभ्यास से आप की सभी इन्द्रिया जाग उठती है . इसलिए अब आप लोगो को पहचान जाते है .
आप को पता चलने लगता है की कौन आप का सच्चा मित्र है और कौन आप को धोखा दे रहा है .
जब आप पूर्ण गहरा अभ्यास कर लेते है तो आप को अनुभव हो जाता है की पूरा संसार आप का ही साकार रूप है .

इसलिए अंत में आप को अनुभव हो जाता है की हम सभी परमात्मा की संतान है . और सभी जीव आपस में एक दूसरे के मित्र है .
अभी जैसे हमारे भाव है यह संसार हमें वैसा ही अनुभव होता है . इस अभ्यास से आप के भाव निर्मल होने लगते है .
इसलिए जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि तभी समझ में आती है जब हम स्वरुप दर्शन का अभ्यास करते है .

अब समझते है की

इस क्षण में जीने का अभ्यास कैसे करे ?

जैसे आप अभी इसी समय इस क्षण में जीने के अभ्यास की शुरुआत कर सकते है .
आप अभी अनुभव करे की आप की श्वास कैसी चल रही है . श्वास पेट में कहाँ तक जा रही है .
आप यदि बैठे है तो आप को सिर में कैसा महसूस हो रहा है .

आप के मन में क्या क्या विचार अभी चल रहे है . याद करे अभी आप काम क्या कर रहे है .

और फिर पता करे की आप का अभी काम पर कितना ध्यान है और फालतू की चीजों पर कितना ध्यान आप खर्च कर रहे है .
इसी समय यदि आप से कोई सवाल कर रहा है तो आप उसका जवाब कैसा दे रहे है .
फिर अनुभव करे की यदि इसी समय आप के पास कोई अन्य व्यक्ति आ जाता है तो आप के
भीतर क्या क्या परिवर्तन होने लगते है .

क्यों की आप का शरीर भावनाओं का ही सघन रूप है . और जब आप के इस औरा में कोई अन्य व्यक्ति आता है तो फिर आप का औरा बदलने लगता है यदि आप जाग्रत नहीं है तो .
अर्थात जिस व्यक्ति का औरा जितना मजबूत होता है उसे दुसरो के विचार उसी अनुपात में  प्रभावित नहीं कर पाते है .
इसलिए केवल संतुष्ट व्यक्ति का ही औरा मजबूत होता है .

वह हर कर्म इस भाव से करता है की वह खुद कुछ भी नहीं कर रहा है बल्कि खुद परमात्मा उसके मन और शरीर के माध्यम से कर्म कर रहे है .
इसलिए उसे अब फल की चिंता नहीं रहती है . और फल की चिंता ही सभी कष्टों का वास्तविक कारण है .
फल की चिंता करने के कारण ही हम शत प्रतिशत इस क्षण में उपस्थित होकर हमें जो परमात्मा ने जिम्मेदारी दी है उसे ठीक से नहीं निभा पाते है .

इसलिए संतुष्टि कैसे मिले का सही उत्तर उपरोक्त अभ्यास से ही मिलता है .
जैसे अभी हमारे को हमारे घर आये मेहमान को पानी पिलाना है . तो हम पानी पिलाने की क्रिया में पूरी तरह उपस्थिति नहीं रहते है बल्कि गैस पर जो चाय बन रही है हमारा ध्यान वहाँ भी रहता है .
इससे हमें मेहमान को पानी पिलाकर जो सच्ची ख़ुशी मिलती उससे हम वंचित रह जाते है .

इस प्रकार हम इस क्षण में जीने का अभ्यास (स्वरुप दर्शन का अभ्यास) करके धीरे धीरे संतुष्ट होने लगते है . केवल अभ्यास ही इसका एकमात्र उपाय है . हालांकि साधक शुरू में अभ्यास के लिए बाहरी
संसाधनों का उपयोग कर सकता है .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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