सम्भोग करने में मजा क्यों आता है ?

हमारे प्यारे साथियों हम आशा करते है की आप इस लेख को बहुत
ही गहराई से समझने का प्रयास करेंगे . क्यों की यह परमात्मा का वह गूढ़ रहस्य है
जिसे यदि आप भीतर से अहसास करके समझ जायेंगे तो आप के जीवन में अभी आ रही
परेशानियों से हमेशा हमेशा के आप लिए आप मुक्त हो जायेंगे .

सम्भोग शब्द में ही इसका एक अर्थ छिपा है :
समान भोग . अर्थात पुरुष और स्त्री दोनों मिलकर किसी भी प्रकार के भोग का स्वाद
लेते है . यदि आप स्वादिष्ट भोजन खाते है तो इसे भोग करना कहते है . पर यदि आप ही
की थाली में आप के साथ आप की पत्नी भी भोजन करती है तो भी इसे भोग करना ही कहेंगे
. पर यदि कोई भी स्त्री और पुरुष अपने शरीरों को एक साथ मिलकर भोगते है तो इसे
सम्भोग कहते है . इसमें स्त्री और पुरुष एक दूसरे के शरीरों को खाते है और फिर
स्वाद चखकर ख़ुशी का अनुभव करते है .

पर जब स्त्री ज्ञानवान हो , चरित्रवान हो , ससक्त हो और पुरुष कमजोर हो , चरित्रहीन हो , या अधोगति की तरफ
बढ़ रहा हो तो सम्भोग के बाद पुरुष को आत्मग्लानि का अहसास होता है
, एक डर पैदा होता
है . जबकि ऐसी स्त्री को किसी प्रकार का नकारात्मक भाव नहीं आता है .

अब प्रश्न यह है की सम्भोग में मजा क्यों आता
है
?

इसका सही जवाब यह है की मजा सम्भोग में नहीं आता है बल्कि
आप के मन में आप एक जो बोझ  लेकर चल रहे थे
ऊर्जा या द्रव्य या किसी अन्य रूप में उससे आप मुक्त हो जाते है और आप का शरीर
शिथिल पड़ जाता है और आप को नींद आने लगती है .

फिर आत्मग्लानि क्यों अनुभव होती है ?

क्यों की सम्भोग के बाद आप को अहसास होता है की आप का शरीर
अब धीरे धीरे कमजोर होने लग गया है
, आप के आत्मविश्वास में कमी आने लगती है . क्यों ?

क्यों की वीर्य ही बल है . आप का पूरा शरीर वीर्य का ही बना
हुआ है . इसलिए यह आप के खान पान
, रहन सहन , आचार विचार पर निर्भर करता है की आप ने किस प्रकृति के
वीर्य से अपने शरीर का निर्माण किया है . यदि आप सात्विक आहार से बने वीर्य से
अपने शरीर का निर्माण करते है तो फिर आप के मन में अधोगति में जाने वाले विचार
नहीं आयेंगे.

और यदि आप पशुओं से प्राप्त भोजन अधिक मात्रा में करते है , या अधिक उत्तेजक
और अधिक स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लेते है तो फिर आप राजसिक वीर्य का निर्माण
करने लगते है . और इस प्रकार से आप इन वासनाओं के शिकार हो जाते है . जब यही
वासनायें जी का जंजाल बन जाती है तो फिर आप के मन में तरह तरह के गंदे विचारों की
तरंगे उठने लगती है . और आप मानसिक तनाव
, चिंता , अवसाद , डर जैसे बोझो के नीचे दबने लगते है . आप का दम घुटने लगता
है . तो अब आप के चेतन मन की शक्ति के कारण आप को लगता है की मै इस बोझ से कैसे
मुक्त होउ. तो भीतर से अवचेतन मन कहता है की सम्भोग करलो
, या हस्तमैथुन
करलो . अर्थात आप का मन कैसे भी करके इस ऊर्जा को बाहर निकालना चाहता है . और जैसे
ही यह ऊर्जा बाहर निकलती है तो आप को एक ख़ुशी का अहसास होता है . और इससे शरीर में
प्राणों की कमी होने लगती है .

जैसे ही सम्भोग के बाद शरीर में प्राणों की कमी हो जाती है
तो आप को ज्ञात हो की आप का शरीर कोशिकाओं से बना हुआ है . और शरीर की हर एक
कोशिका में लगातार परमात्मा की तीन शक्तियाँ कार्य कर रही है.

पहली शक्ति निर्माण की जिसे ब्रह्मा की शक्ति
कहते है जो कोशिका का निर्माण करती है .

दूसरी शक्ति सुरक्षा की जिसे विष्णु की शक्ति
कहते है जो अभी निर्मित हुयी कोशिका की रक्षा करती है

तीसरी शक्ति परिवर्तन की जिसे शिव की शक्ति
कहते है जो अभी सुरक्षित हुयी कोशिका को इस प्रकार से परिवर्तित करती है की इससे
अब आगे नयी निर्मित होने वाली कोशिका जुड़ सके .

इस प्रकार से कोशिका रुपी जीवन चक्र प्रकट होता है . अर्थात
एक कोशिका से दूसरी कोशिका और दूसरी कोशिका से तीसरी कोशिका जुड़कर शरीर का रूप
लेती है .

और हम स्वतन्त्र होना चाहते है ना की शरीर के रूप में
बँधकर.

पर जब सम्भोग करके हम इस बोझ से स्वतंत्र हो
जाते है तो फिर आत्मग्लानि
, डर , चिंता
, अवसाद
का अहसास क्यों होता है
?

ऐसा अहसास सभी जीवों को नहीं होता है . केवल उन जीवों को ही होता है जिनके डीएनए में अभी आगे शरीर
रूप में रहकर जिम्मेदारियों को पूरा करना है
. अर्थात जैसे आप के पांच
बच्चे है और घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो आप के शरीर का कमजोर हो जाने पर
आप को यह डर लगने लगेगा की यदि मेरे साथ कुछ गलत हो गया तो मेरे बच्चो का क्या
होगा
?.

पर यदि आप ऐसी स्थिति में आ गए है की आप को किसी की अब कोई
चिंता नहीं है . ना आप मृत्यु से डरते है और ना ही किसी अन्य खतरे से तो आप को
सम्भोग से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता  है .
क्यों की अब आप उस चेतना में जी रहे है जहा यह भावनाएँ कोई अर्थ नहीं रखती है . इस
प्रकार उपरोक्त प्रभाव करीब करीब सभी को प्रभावित करता है . धन्यवाद जी . मंगल
हो जी .

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