जब आप क्रियायोग का अभ्यास करते है तो आप यदि महिला है तो
आप को अनुभव होने लगता है की सबकुछ मै खुद ही कर रही हूँ . अर्थात जैसे विचार , दृश्य , आवाज इत्यादि आप
सुनते है और आप की चेतना किस स्तर पर है आप को पुरुष वैसे ही दिखाई देते है . यदि
आप अभी इस चेतना में जी रहे है की मुझे पुरुष परेशान करते है तो आप की यही चेतना
मजबूत होती जाती है और आप इसी प्रकार के कर्म संचित करते जाते है और फिर आप जहाँ
कही भी जाती है तो आप को आप की भावनाओं के अनुरूप ही लोग मिलते है . फिर ऐसी
चर्चाओं का दौर शुरू हो जाता है जिससे आप अपने मन को यह विश्वास दिलाने में कामयाब
हो जाते है की सच में पुरुष महिलाओं की स्वतंत्रता का दमन करते है .
परन्तु जब आप क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करते है तो आप को
अनुभव होने लगता है की मै शरीर नहीं हूँ और मुझे जो ये पुरुष दीखते है ये भी शरीर
नहीं है . बल्कि आप को यह अनुभूति होने लगती है की आप ईश्वर की संतान है और सामने
जो पुरुष दिख रहा है वह भी ईश्वर की संतान है . अर्थात आप को महिला और पुरुष के
बीच जो वास्तविक सम्बन्ध है उसका अनुभव होने लगता है . फिर आप को पता चलता है की
जो पुरुष में देख रही हूँ असल में मै खुद ही ये लोग निर्मित कर रही हूँ.
और यदि आप एक पुरुष है तो आप को भी यही अनुभूति होने लगती
है की जिन महिलाओं ने पुरुषों पर यह आरोप लगा रखा है वह मै खुद ही ऐसा सोच रहा हूँ
. अर्थात कोई भी महिला ऐसा कोई आरोप नहीं लगा रही है की पुरुष महिलाओं की
स्वतंत्रता का दमन करते है . यह सब हमारे और हमारे परम पिता के बीच दूरी का अनुभव
करने के कारण हो रहा है . जब आप क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करते है तो आप के और
महिला के बीच दूरी समाप्त होने लगती है . अब आप को हर महिला ईश्वर के रूप में
अनुभव होने लगती है और आप महिलाओं का सम्मान करना शुरू कर देते है . और ठीक इसी
प्रकार महिला को पुरुष ईश्वर के रूप में दिखाई देने लगता है तो महिला भी पुरुष का
सम्मान करना शुरू कर देती है . इस प्रकार से क्रियायोग परिवारों को प्रेम की ड़ोर
से जोड़ता है . हर महिला के मन से यह द्वन्द हमेशा के लिए निकल जाता है की पुरुष
ठीक नहीं होते है . और हर पुरुष के मन से यह शंका समाप्त हो जाती है की महिलाओं के
कारण घर में झगड़े होते है . क्रियायोग ध्यान का अभ्यास आप की इन्द्रियाँ क्या देखे
, क्या सुने , क्या बोले , कितना बोले , कितना सुने , क्या सोचे , क्यों सोचे , कब सोचे , कैसे सोचे , कितना काम करे , क्या काम करे , कैसे काम करे ऐसे
सभी प्रकार के विचारो को शांत करके आप को जाग्रत करता है और आप अपने जीवन में एक
दिशा पकड़ लेते है . जहाँ से फिर भटकना असंभव हो जाता है . क्यों की अब आप को यह
अनुभव होने लगता है की आप खुद कुछ भी नहीं कर रहे है . बल्कि परमात्मा खुद आप के मन , बुद्धि
और शरीर के रूप में कार्य कर रहे है . इसलिए अब समय आ गया है की खुद को जगाये और
शिकायत मुक्त जीवन जीने का अभ्यास करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .