आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति के पास किसी दूसरे की समस्या सुनने का समय नहीं है , क्यों की उसके पास खुद की ही इतनी समस्याएं है जिनका वह खुद ही इलाज ढूंढ रहा है तो वह किसी और की समस्या कैसे शांति से बैठकर सुनेगा . और यदि हम हमारी समस्या किसी व्यक्ति को बताते भी है तो वह जितना समझता है उतना ही बता पाता है या अहंकार वस कई बार समस्या जितनी गहरी नहीं है उससे भी ज्यादा समस्या को उलझा देता है . जैसे आप कही भी किसी के निचे कार्य करते है और आप अपनी जान में पुरे जी जान से मेहनत करते है फिर भी आप का मालिक आप से खुश नहीं रहता है और काम का बोझ दिन प्रतिदिन बढ़ाता जाता है . आप अपना दुःख घर परिवार में किसी को बताते भी है तो उल्टा आप की ही गलती बताकर पल्ला झाड़ लेते है . जब आप की स्थिति यह हो जाती है की आप की समस्या आप दुनिया में किसी को नहीं बता सकते है और समस्या का दबाव झेल नहीं पाते है तो आप के मन में अब नकारात्मक विचार जन्म लेने लगते है . कई बार आत्महत्या के विचार भी ऐसे ही कई प्रकार के मानसिक या शारीरिक दबावों के कारण आने लगते है . हमारे साथ आखिर ऐसा क्यों होता है ?.
इसके कई कारण होते है जैसे :
हमारे पुराने संचित कर्म
समाज से बहुत ज्यादा अपेक्षाएं
लोग क्या सोचेंगे का बहुत ज्यादा चिंतन
कर्जे का दबाव
आर्थिक स्थिति का अत्यधिक खराब होना
घर में रोज रोज के लड़ाई झगडे होना
एक दूसरे को नहीं समझना
परमात्मा में विश्वास की कमी
आत्मा में विश्वास की कमी
अधिक लालसाये
अज्ञानता इत्यादि .
जब आप क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करते है तो आप को भीतर से एक अद्बुद्ध संतुष्टि का अनुभव होता है . और धीरे धीरे आत्महत्या जैसे नकारात्मक विचार ख़ुशी के विचारों में बदलने लगते है .