क्रियायोग – क्या पिछ्ला जन्म होता है ?

मेरे प्यारे
मित्रों आज मै आप को पुरे व्येज्ञानिक तथ्यों के साथ यह प्रमाणित करूँगा की आखिर
पिछले जन्म की सच्चाई क्या है
?. इस लेख में आप
निम्न प्रश्नों के उत्तर वास्तविक रूप में समझेंगे :

जन्म किसे कहते
है
?

पिछ्ला जन्म क्या
होता है
?

वर्तमान जन्म
क्या होता है
?

अगला जन्म क्या
होता है
?

जन्म का वास्तविक
अर्थ परमात्मा के माध्यम से अपनी शक्ति को किसी रचना के रूप में निर्मित करना होता
है . अर्थात समुद्र से पानी को लहर के रूप में प्रकट करना और फिर इसे एक नाम (यहां
लहर रुपी अहंकार) देना जन्म कहलाता है .

ठीक इसी प्रकार
परमात्मा की इच्छा से आत्मा रुपी बूँद (जो अभी परमात्मा का मुक्त हिस्सा है
)जीवत्मा के रूप में प्रकट होती है . इसे ही जीव का जन्म कहा जाता है . अर्थात जब
अदृश्य प्राण संघनित होकर दृश्य प्राण में बदलने लगता है तो इसे जन्म कहा जाता है
. और इस प्राण का बंधन कैसा होगा यह प्रभु की इच्छा पर निर्भर करता है . इस प्रकार
हमारा यह जो शरीर आप को दीखता है यह प्राणों का बंधन ही है .

इसे मै आप को और
आसान भाषा में समझाता हूँ . जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी से घड़े का निर्माण करता है
ठीक इसी प्रकार परमात्मा अपनी ऊर्जा रुपी मिट्टी से जीवों का निर्माण करते है . इस
निर्माण क्रिया के दौरान परमात्मा जैसी रचना निर्मित करना चाहते है वैसे ही
परिवर्तन प्रकट होते है . अर्थात आत्मा को जीवत्मा के रूप में संस्कारित करना ही
जीव का जन्म कहलाता है और इस जीव की रचना को बदलने के लिए परमात्मा जो परिवर्तन
(शिव की शक्ति से) करते है उसे ही साधारण बोलचाल की भाषा में संस्कार की मृत्यु
कहा जाता है .

और यदि परमात्मा
जीव में किसी संस्कार को बनाये रखना चाहते है तो उसे संस्कार की सुरक्षा (विष्णु
की शक्ति से) करना कहते है .

इस प्रकार से
हमने समझा की हमारे शरीर में हर पल नए संस्कार जन्म ले रहे है
, कुछ सुरक्षित हो रहे है और कुछ मर (रूपांतरित)
रहे है .

जब परमात्मा यह
इच्छा करते है की अब इस शरीर रुपी जीव रचना को पूर्ण रूप से नए शरीर में बदलना है
तो इसे ही अंतिम संस्कार कहा जाता है . अर्थात हमारा शरीर संस्कारो का संघनित रूप
है .

इस प्रकार आप ने
समझा की इस क्षण को जीव का वर्तमान जन्म कहा जाता है और पिछले क्षण को पूर्व जन्म
कहा जाता है और आने वाले अगले क्षण को अगला जन्म कहा जाता है .

और जब आप
क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से गहरा अभ्यास करते है तो आप को अनुभव होता है की कैसे
आप एक एक क्षण पीछे जाते हुए किस प्रकार गर्भ संस्कार में पहुंच जाते है और फिर और
पीछे जाते हुए आप इस जन्म से पहले वाले गर्भ में पहुंच जाते है .

यह बात उन जीवों
के लिए परमात्मा समझा रहे है जो सम्भोग के माध्यम से जन्म लेते है . परमात्मा कुछ
जीवों को बिना गर्भ और सम्भोग के भी प्रकट करते है . यह जन्म लेने का सर्वोत्तम
तरीका होता है . क्यों की इसमें जीव को कष्ट की अनुभूति नहीं होती है . जबकि
सम्भोग के माध्यम से गर्भ में जीव का निर्माण करने पर जीव को कष्ट की अनुभूति होती
है . वैसे यह कष्ट माया है वास्तविक रूप में ऐसा कष्ट नहीं होता है . आप खुद अनुभव
करके देखो जब आप किसी एक जगह एकाग्र हो जाते है तो आप के मन और शरीर में अनुभव हो
रहे तमाम प्रकार के सुख और दुःख अनुभव होना बंद हो जाते है और आप को एक गहरी शांति
का अनुभव होने लगता है . यह आत्मा का अनुभव होता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Subscribe

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *