आप ने जो सोच रखा है वह शत प्रतिशत पूरा होगा ही होगा .
पर फिर आप के मन में बार बार ये संदेह क्यों आते है की
मेरे सपने अब पूरे नहीं होंगे?
मेरी तो किश्मत ही खराब है
मेरी बात को लोग क्यों नहीं समझते है ?
मै इतना अच्छा काम करता हूँ या करती हूँ फिर भी इसका लाभ दूसरे लोग उठाते है .
आज इस लेख के माध्यम से हम परमात्मा का वह नियम समझेंगे जिसको आप यदि विश्वास करके समझने में सफल हो जाते है तो फिर धीरे धीरे आप को खुद को यह अहसास होने लग जायेगा की मेरे माध्यम से खुद परमात्मा यह सब कार्य कर रहे है .
सबसे पहले आप यह विश्वास करे की आप के साथ भीतर और बाहर जो कुछ भी घट रहा है उसके लिए शत प्रतिशत आप खुद जिम्मेदार हो .
कैसे ?
इसे हम निम्न उदाहरण से समझते है :
जैसे आप को अपने व्यवसाय या नौकरी में बहुत अच्छी सफलता प्राप्त करनी है और अब आपका सामना रोज ऐसे व्येक्तियों से हो रहा है जो आप को हर समय यह कह रहे है की आप इस व्यवसाय में सफल नहीं हो सकते है . या आप को यह नौकरी नहीं मिलेगी . और मजे की बात यह है की इन लोगों में आप के घर वाले भी हो सकते है और रिश्तेदार भी और अन्य लोग भी .
और जब आप ऐसा सुनते है तो फिर आप को इन लोगों के ऊपर क्रोध आता है .
बस आप का यही क्रोध आप की सफलता के मार्ग का कांटा बन जाता है . और फिर आप धीरे धीरे खुद ही एक एक कांटा चुन चुन कर एक मजबूत दीवार का निर्माण कर लेते है .
और ऐसा करते करते आप अपने लक्ष्य के विपरीत दिशा में बहुत आगे बढ़ चुके होते है और फिर यही लक्ष्य के विपरीत दिशा में लगातार बढ़ने वाली दूरी आप को निम्न संदेह उपहार के रूप में देती है :
अब मेरे बच्चो का क्या होगा ?
समाज मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा ?
मुझे ही सारी बीमारियाँ क्यों हो रही है ?
मै तो बर्बाद हो गया
अब मै किस पर विश्वास करू?
अब मै क्या करू ?
मुझे तो पहले ही पता था की संसार बहुत खराब है
यहां कोई किसी का नहीं है
ऐसे तमाम प्रकार के विचार आप के मन में रात दिन आने लगते है .
अब हमारे परम पिता इसका स्थायी समाधान बताने जा रहे है :
आप किसी भी प्रकार की समस्या से जितना दूर भागेंगे वह समस्या आप का पीछा उतनी ही तेज गति से करेगी और अंत में आप को खुद की गिरफ्त में ले लेगी . इसलिए आप को केवल उस समस्या के भीतर एकाग्र होना है और फिर शुरू होंगे चमत्कार . कैसे ?
जैसे आप को क्रोध बहुत आता है तो फिर आप क्रोध आने पर उसी में एकाग्र होने का अभ्यास करे .
यहां परमात्मा ने ‘अभ्यास’ शब्द प्रयुक्त किया है .
आप जो वर्तमान में जिस भी प्रकार का अभ्यास कर रहे है आप का मन उसी अभ्यास का परिणाम है और इसी अभ्यास का साकार रूप आपका शरीर है .
अर्थात आप ने अभ्यास से ही खुद के मन और शरीर का खुद ने ही निर्माण किया है और अब आप इसी अभ्यास को परिवर्तित करके जैसा आप चाहते है उसका आप खुद निर्माण शत प्रतिशत कर सकते है . बस केवल एक ही शर्त है की आप को सबसे पहले यह विश्वास करना पड़ेगा की कण कण में केवल परमात्मा का अस्तित्व है .
परमात्मा की ऊर्जा ही इस संसार के रूप में साकार हो रही है और जिस ऊर्जा से आप बने हुए है उसी ऊर्जा से आप जिन्हे अपना शत्रु मानते है वे भी इसी ऊर्जा से बने हुए है .
अर्थात कीट पतंग , कीड़े मकोड़े , बैक्टीरिया वायरस , पशु पक्षी ऐसे सभी जीव और जिन्हे आप निर्जीव समझते है वे सभी परमात्मा की ऊर्जा से निरंतर निर्मित हो रहे है , सुरक्षित हो रहे है और परिवर्तित हो रहे है .
मतलब यह है की वास्तविक रूप में आप के और आप के शत्रु के बीच दूरी शून्य है .
फिर आप को यह दूरी महसूस क्यों होती है ?
क्यों की आप ने खुद ने ही इस दूरी को निर्मित करने का नियमित रूप से अभ्यास किया है .
अब आप का प्रश्न यह है की जब मुझे किसी काम को करने से कष्ट मिलता है तो भला मै ऐसा काम करने का अभ्यास क्यों करूँगा ?
इस प्रश्न में ही इसका उत्तर छिपा हुआ है .
आइये जानते है की कैसे हम इस प्रश्न में से हमारा उत्तर खोजे :
इस प्रश्न में आप खुद यह कह रहे है की भला मै ऐसा अभ्यास क्यों करूँगा जिससे मुझे ही कष्ट मिले . इसका वास्तविक अर्थ यह है की आप के भीतर कोई बैठा है जो आप को निरंतर जगा रहा है की जो तू यह करने जा रहा है इसके परिणाम को सहन करने के लिए भी तुझे ही तैयार रहना होगा . अर्थात आप को कैसे पता चला की कष्ट होता है . इसका मतलब आप आत्मा और माया में भेद कर पा रहे है .
अर्थात जब कोई व्यक्ति गलत काम करने जाता है तो उसके भीतर से बार बार यह आवाज आती है की यह जो तू करने जा रहा है वह गलत है .
यही आप की आत्मा की आवाज होती है .
फिर आत्मा इतनी बलशाली होती है तो फिर यह आवाज दब क्यों जाती है ?
पहली बात तो सब लोगों की आत्मा की आवाज नहीं दबती है . केवल उन्ही लोगों की आत्मा की आवाज दबती है जिनका मन अभी वर्तमान में अधोगति में जाने का निरंतर अभ्यास कर रहा है .
इसलिए आप हर पल आप के साथ घट रही हर क्रिया में एकाग्र होने का अभ्यास करेंगे तो आप को खुद को पता चलने लगेगा की कैसे आप कभी वापस उर्ध्व गति की और बढ़ने लगते है और जैसे ही किसी भी क्षण जाग्रत नहीं रहते आप वापस अधोगति की तरफ फिर से बढ़ जाते है .
अर्थात जिस प्रकार से पानी को ऊपर चढ़ाने के लिए मोटर का इस्तेमाल करते है और छत पर रखी हुयी पानी की टंकी को खाली करने के लिए केवल निचे टोंटी को खोलना होता है और देखते ही देखते पानी से भरी पूरी टंकी खाली हो जाती है .
ठीक इसी प्रकार आप की इस जीवन रूप गाड़ी को भवसागर से पार जाने के लिए आप को परमात्मा रुपी मोटर से अपना अभ्यास के माध्यम से जुड़ाव करना है और फिर यह मोटर अपने आप ही आपको उस विराट से मिला देगी जिससे मिलने के बाद आप को खुद को आप के स्वरुप का दर्शन हो जाता है और आप सब कुछ जान जाते है और फिर इसी संसार में रहते हुए आप परमानन्द की अनुभूति करने लगते है . भगवान ने इसे ही क्रिया योग ध्यान साधना कहा है .
और जब आप का इस परमात्मा रुपी मोटर से जुड़ाव कमजोर पड़ने लगता है तो पानी की टंकी की तरह आप भी खाली होने लगते है और पतन की तरफ बढ़ने लगते है .
इसे हम निम्न उदाहरण से और अच्छे से समझ सकते है :
आप का शरीर वीर्य से बना हुआ है . जब आप प्रकृति के विरुद्ध जाकर भोग विलास करते है तो यह वीर्य रुपी टंकी खाली होने लगती है और आप का शरीर दुर्बल होने लगता है और जब आप परमात्मा से जुड़ने का अभ्यास करते है तो फिर यह शरीर नये वीर्य से दुबारा से निर्मित होने लगता है . इसलिए भीतर से आप को सब कुछ पता है की क्या सही है और क्या गलत है . अब निर्णय आप का है की आप चाहते क्या है . आप जो चाहेंगे , परमात्मा आप को वही देंगे . अर्थात यदि हम प्रभु की तरफ दो कदम बढ़ायेंगे तो प्रभु हमारी तरफ दस कदम आ जायेंगे .
धन्यवाद जी . मंगल हो जी.