जी हाँ. यही शत प्रतिशत सच है .
यदि आप अभी यह सोच रहे है की मेरा अमुक मित्र अब पहले जैसा नहीं रहा है . वह अब मेरा सच्चा मित्र नहीं है . तो उसी क्षण वह मित्र भी आप के लिए यही सोच रहा है की अब आप पहले जैसे नहीं रहे है .
क्यों की इन दोनों (आप खुद और आप का मित्र) के रूप में आप का मन ही कार्य कर रहा है . अर्थात आपका मन सर्वव्यापी है .
यदि आप अपने किसी रिश्तेदार के बारे में गलत सोच रहे है तो वह रिश्तेदार भी आप के बारे में उस समय गलत ही सोच रहा है . इसीलिए जब आप उस रिश्तेदार से व्यक्तिगत रूप से कही भी मिलते है तो उसका व्यवहार आप के लिए ठीक नहीं रहता है . और आप बहुत जल्दी ही उससे बोर होने लगते है .
ऐसा क्यों होता है ?
क्यों की जब आप क्रियायोग ध्यान का सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ निरंतर अभ्यास करते है तो आप को यह अनुभव होने लगता है की केवल परमात्मा की चेतना ही आप के मन के रूप में और सामने वाले के मन के रूप में प्रकट हो रही है . और इन दोनों मनो के बीच दूरी शून्य होती है . अर्थात समय , दूरी और द्रव्यमान का वास्तविक रूप में अस्तित्व ही नहीं होता है . ये तीनों ही माया है . पर यह माया सीधे परमात्मा से जुड़ी हुयी है अर्थात जिस प्रकार से परमात्मा सर्वव्यापी है ठीक उसी प्रकार से आप के शरीर का सूक्ष्मतम सेल (शरीर का हर अंग) भी सर्वव्यापी है .
फिर ऐसा क्यों होता है की कई बार आप से एक अनजान व्यक्ति भी बहुत अच्छे से बात करता है और जब आप उससे बात कर रहे होते है तो दूसरे लोगों को ऐसा लगता है जैसे आप दोनों बहुत अच्छे दोस्त हो ?
क्यों की आप ने ही कभी न कभी इस व्यक्ति से बहुत अच्छा व्यवहार किया है . या तो इस जन्म में या फिर पूर्व जन्म में .
इसे मै और गहराई से समझाने जा रहा हूँ :
आप ने खुद ने परमात्मा की शक्ति का इस्तेमाल करके आप के मन का निर्माण किया है और अभी भी लगातार कर रहे है . और इसी शक्ति से आप ने खुद ने ही ऊपर बताये गए व्यक्ति का निर्माण किया है . अर्थात आप का मन रुपी सॉफ्टवेयर ही विचार रुपी इनपुट लेकर साकार रुपी व्येक्तियों का निर्माण कर रहा है और फिर यही व्यक्ति आप के सामने लगातार प्रकट हो रहे है .
जैसे आज शाम आप किन किन लोगों से मिलेंगे यह सब आप का मन रुपी सॉफ्टवेयर तय करता है .
फिर अचानक आप से कोई व्यक्ति झगड़ा क्यों करता है ?
क्यों की आप ने खुद ने ही इस अमुक प्रकार की चेतना का कभी न कभी निर्माण किया है और जिस प्रकार फसल पकने के बाद कटने के लिए तैयार हो जाती है ठीक उसी प्रकार आप के संचित कर्म ही एक समय अवधि के बाद पककर फल के रूप में आप के सामने प्रकट होते रहते है .
और किस क्षण कैसा फल आप के सामने प्रकट होगा यह आपके मन में परमात्मा की शक्ति के माध्यम से संचित कर्मो की प्रोग्रामिंग पर निर्भर करता है.
फिर हम ना चाहते हुए भी गन्दा क्यों सोचने लगते है ?
क्यों की हमारा मन उसी प्रकार के संचित कर्मो से(गन्दी प्रकृति) नियंत्रित रहता है जिनका अब फलित होने का समय आ गया है . इसलिए हम इन कर्मो से बंधे होने के कारण ना चाहते हुए भी गन्दा सोचना शुरू कर देते है .
इसे मै आप को और गहराई से निम्न उदाहरण के माध्यम से समझाने जा रहा हूँ :
जैसे आप ने अभी इसी क्षण आप की आँखों के माध्यम से कोई गन्दा दृश्य देख लिया है . तो फिर यह देखा गया दृश्य एक चित्र के रूप में आप के मन के भीतर स्मृति कोष में जमा हो जाता है . अब जिस प्रकार से किसी गेंद को जमीन पर गुड़ाकर छोड़ देते है तो वह गेंद कुछ समय तक गुड़ती रहती है और फिर जड़त्व के कारण कुछ समय बाद वह गेंद रूक जाती है . यदि इस गेंद के ऊपर गुड़ाने के अलावा और अन्य बल (जैसे घर्षण बल , ग्रहो के बल , आकर्षण प्रतिकर्षण बल ) नहीं लगते तो फिर यह गेंद अनंत समय तक गुड़ती ही रहती .
ठीक इसी प्रकार से हमारी आँखों पर भी कई प्रकार के बल निरंतर कार्य कर रहे है . इसीलिए जिस दृश्य को हमारी आँखे एक बार देख लेती है तो यदि उस दृश्य से मिलता झुलता दृश्य हमारी आँखों ने इससे पहले कभी देखा था और उस समय वह दृश्य हमारे मन को कैसा लगा था . अर्थात उसकी प्रकृति कैसी थी उसी के अनुरूप उस दृश्य का चित्र हमारे मन में संचित कर्म के रूप में जमा हो गया था . तो फिर आज आप की आँखे इस क्षण में जो कोई भी दृश्य देखती है तो उसको देखकर क्या प्रतिक्रिया देगी यह आप के भीतर संचित दृश्य की प्रकृति पर निर्भर करता है .
अर्थात या तो आप इस दृश्य को बार बार देखना पसंद करेंगे या फिर दुबारा देखना पसंद नहीं करेंगे .
इसीलिए कई लोगों को दुसरो को झगड़ता हुआ देखकर अच्छा लगता है और कई लोगों को ऐसे झगड़े पसंद नहीं आते है .
इस प्रकार से आज हमने यह समझा की हम निरंतर क्या सोच रहे है और ऐसा क्यों सोच रहे है और जैसा हम सोच रहे है वैसा ही हम बनते जा रहे है .
अब प्रश्न यह आता है की हरपल अच्छा कैसे सोचे ताकि हम हर पल खुश रहने लग जाए ?
यह शत प्रतिशत संभव होता है क्रियायोग ध्यान के गहरे अभ्यास से .
क्यों की जब आप जिस क्षण जो सोच रहे है उसी क्षण यदि जाग्रत है अर्थात उस क्षण आप को यह पता रहता है की आप कहा खड़े है , आप के पास कौन कौन है , आप के पैर कहा है , आप की जीभ पर कैसे शब्द प्रकट हो रहे है , आप के कान क्या सुन रहे है , आप की आँखे क्या देख रही है , आप का नाक क्या सूंघ रहा है , आप की त्वचा क्या महसूस कर रही है अर्थात कुल मिलाकर आप सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र है तो फिर आप धीरे धीरे इस प्रकार के निरंतर अभ्यास से अपनी सोच को नियंत्रित करने में सफल होने लगते है .
अर्थात ऐसा करके आप अपने अवचेतन मन को जैसा आप चाहते है वैसा नये सिरे से निर्मित करने लगते है . क्यों की ऐसा अभ्यास करके आप परमात्मा से सीधे जुड़ने लगते है और फिर परमात्मा के माध्यम से आप को निर्माण की शक्ति , सुरक्षा की शक्ति और परिवर्तन की शक्ति मिलने लगती है .
मै आपको आगे के लेखों में इसे और विस्तार से समझाऊंगा . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .