आप चिंता क्यों करते है ?
उत्तर : आप की चिंता के निम्न कारण होते है
- या तो आप सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते है
- या आप लोगों से तुलना करके जीवन जीते है
- या आप को किसी बीमारी का डर है
- या आप किसी खबर को पढ़कर खुद से जोड़ लेते है
- या कोई ऐसा दृश्य देख लेते है जिससे आप को डर लगता है
- या कोई ऐसी खबर सुन लेते है जो आप को डराती है
- या आप ने चिंता करने का ही स्वभाव बना लिया है
- या किसी चीज के छूट जाने का डर आप को सताता है
- या आप को सच बोलने से डर लगता है
- या आप खुद का सामना करने से डरते है
- या आप जो चाहते थे वह आप को नहीं मिला
इस प्रकार से आप की चिंता के अनेक कारण होते है .
प्रश्न : पर आप यह सब चाहते नहीं है फिर भी ऐसा क्यों हो रहा है ?
उत्तर : क्यों की आप को अभी खुद पर शत प्रतिशत विश्वास नहीं है .
प्रश्न : खुद पर शत प्रतिशत विश्वास कैसे करे ?
उत्तर : खुद पर विश्वास करने से पहले आप को विश्वास का सही अर्थ समझना जरुरी है .
विश्वास किसे कहते है ?
जो आप चाहते है वही आप को मिल जाए विश्वास कहलाता है .
जैसे आप को प्यास लगी और आप ने पानी पिया तो आप की प्यास बुझ गयी .
इससे आप के मन में यह विश्वास हो गया है की मै जब भी पानी पीऊंगा या पीऊँगी तो मेरी प्यास अवश्य बुझेगी .
आप यही चाहते है ना की जैसे पानी पर विश्वास हुआ वैसे अन्य चीजों पर भी होना चाहिए
इसके लिए आप को अपने मन की कार्य प्रणाली को समझना बहुत जरुरी है
मुख्य रूप से आप का मन दो प्रकार का होता है
(a ) दृश्य मन
(b) अदृश्य मन
दृश्य मन क्या होता है ?
दृश्य मन कई प्रकार का होता है जैसे :
- जिसको हम हाथ से छू सकते है . जैसे शरीर , मकान , गाड़ी ऐसी सभी भौतिक चीजें
- जिसको हम देख सकते है . जैसे सूर्य , चन्द्रमा , गृह नक्षत्र इत्यादि
- जिसको हम केवल सुन सकते है . जैसे कोयल की आवाज , कोई गीत
अदृश्य मन क्या होता है ?
एक ऐसी शक्ति जिसे हम ना तो देख सकते है और ना ही छू सकते है . पर यही शक्ति जब परमात्मा की इच्छा के कारण किसी विचार के माध्यम से बार बार अहसास में लाई जाती है . तो फिर धीरे धीरे यह शक्ति उस विचार के अनुसार दृश्य रूप धारण करने लगती है . यदि विचार चिंता का है तो फिर चिंता साकार होने लगती है .
अर्थात परमात्मा आप की आत्मा के रूप में आकर इसे निम्न प्रकार से पूरा करते है :
जब आप एक ही विचार का बार बार आव्हान करते है तो यही विचार परमात्मा से शक्ति लेकर पहले अदृश्य मन बनता है .
तो फिर अदृश्य मन से दृश्य मन कैसे बनता है ?
आप को ज्ञात हो की वैज्ञानिक आइंस्टीन ने यह सिद्ध करके बताया था की ऊर्जा(अदृश्य) को द्रव्यमान(दृश्य) में बदला जा सकता है .
अर्थात यदि हम ऊर्जा को e मान ले और द्रव्यमान को m मान ले तो आइंस्टीन के अनुसार :
e = m c2
ऊपर दिए गए सूत्र का अब हम अर्थ समझते है :
जब ऊर्जा के एक कण को प्रकाश के वेग से हम बार बार स्पंदित करते है तो वह ऊर्जा कण संघनित होने लगता है . जैसे आप के कान में कोई व्यक्ति एक ही बात को लगातार एक घंटे तक कहता रहे तो फिर कान में यही बात गूंजती रहती है .
प्रश्न : यहां आवाज का कान में गूंजना क्या सिद्ध करता है ?
उत्तर : इससे यह सिद्ध होता है की अब यह आवाज दृश्य रूप में आप के अवचेतन मन के रूप में निर्मित हो गयी है .
तो अब इससे होगा क्या और इसका चिंता से क्या सम्बन्ध है ?
इससे यह होगा की यदि यह आवाज आप को किसी व्यक्ति ने पहले कभी दी थी और आज फिर से वही आवाज दे रहा है तो इस आवाज से सम्बंधित अवचेतन मन तुरंत प्रतिक्रिया देगा .
जैसे यदि यह आवाज आप के लिए एक चिंता का विचार थी तो अब जब भी आप इसे सुनेंगे तो तुरंत चिंतित हो जायेंगे .
उदाहरण : कोई आप को पुरानी बुरी घटना याद दिलादे तो आप उस समय तुरंत उस घटना के रूप में बदल जाते हो .
इसका प्रमाण क्या है ?
उत्तर : चिंता के समय आप की शक्ल बदल जाती है . आप के मनोभाव बदल जाते है . आपका शरीर बदल जाता है .
प्रश्न : किसी भी प्रकार की घटना जब आप के सामने घटित होती है तो आप के साथ क्या होता है ?
उत्तर : आप उस घटना के अनुसार तुरंत बदल जाते है . अर्थात आप का अदृश्य मन और दृश्य मन दोनों उस घटना के रूप में प्रकट हो जाते है . जब आप का पूरा शरीर ही बदल जाता है और मन भी बदल जाता है तो उस क्षण अपने आप को संतुलित करना बहुत कठीन होता है .
इसे मै आप को निम्न उदाहरण से समझाता हूँ :
जैसे अचानक से आप के घर पर आप का सगा भाई आज बीस वर्ष बाद पहली बार आ जाए . जबकि वर्षो से आप दोनों में मन मुटाव चल रहा हो . अर्थात इस भाई को याद करते ही आप चिंतित होने लगते है.
तो आप के साथ क्या होगा ?
- आप चौंक जायेंगे
- आप के दिल में घबराहट होने लगेगी
- आप के मन में वे सभी पुराने दृश्य प्रकट हो जायेंगे जो वर्षो पहले आप ने भाई के साथ देखे थे
- आज इस समय आप सही निर्णय लेने में असफल होने लगेंगे
- चिंता के विचार आप को चारो तरफ से घेर लेंगे
जब आप चिंतित हो तो उस समय क्या करे
- अपने आप से तुरंत कहे केवल परमात्मा का अस्तित्व है
- तुरंत क्रियायोग ध्यान का अभ्यास और बढ़ा दे
- अपनी आत्मा को याद करे
- अपने भाई को ही परमात्मा का रूप स्वीकार करे
- भीतर ही भीतर सिर से लेकर पाँव तक में सभी प्रकार की अनुभूतियों को केवल प्रेम मान ले
जैसे ही आप इस समय खुद में एकाग्र होने लगेंगे तो आप के भाई के भाव तुरंत बदलने लगेंगे .
अर्थात जैसे आप के भाव होंगे आप के भाई के भी भाव वैसे ही होने लगेंगे .
पढ़ने में यह सब बाते आसान लगती है . और आप का मन यह कहता है की नहीं ऐसे चिंता नहीं हटती है.
पर मै कहता हूँ की यदि आप को मन में यह विश्वास हो जाए की अभ्यास से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है . तो फिर आप को कोई नहीं रोक सकता है .
तो फिर चिंता को हमेशा के लिए हटाने का विश्वास कैसे आएगा ?
छोटे छोटे चिंता के अवसरों पर क्रियायोग ध्यान का अभ्यास करने से आयेगा.
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .