खुद में आत्मविश्वास कैसे जगाये ?

‘आत्मविश्वास’ शब्द का अर्थ है खुद की आत्मा के ऊपर ही विश्वास करना .

कोई भी व्यक्ति आसानी से अपनी आत्मा पर विश्वास क्यों नहीं कर पाता है ?

क्यों की कोई भी चीज यदि आसानी से मिलने लग जाए तो फिर माया का खेल ज्यादा देर तक नहीं चल सकता है .

खुद में आत्मविश्वास जगाने के हर एक व्यक्त के अलग अलग तरीके होते है . अर्थात जैसे मै मेरा आत्मविश्वास माला जाप करके जगाता हूँ तो यह जरुरी नहीं है की आप का भी आत्मविश्वास किसी माला के जाप करने से जगेगा. जैसे पेट दर्द की एक ही दवाई सभी मरीजों पर अलग अलग प्रभाव छोड़ती है .

क्यों ?

क्यों की हर व्यक्ति की चेतना का स्तर भिन्न होता है . यदि दो व्येक्तियों की चेतनाओं का स्तर समान हो जाए तो फिर वे एक जैसा सोचने लगते है . और ऐसे सभी सोचने लग जाए तो फिर माया को हटना पड़ता है .

अब प्रश्न आता है की आप का आत्मविश्वास कैसे जगेगा ?

आप जिसको इस पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मानते है फिर चाहे वह साकार रूप में हो या निराकार रूप में या आप खुद ही क्यों न हो आप को इसके आगे शत प्रतिशत समर्पण करना होता है . अर्थात केवल समर्पण भाव ही इसका एक मात्र तरीका  है. पर समर्पण भाव को विकसित करने के अनेक तरीके है .

क्यों की जब तक मै का भाव रहेगा अर्थात मन रहेगा आप का आत्मविश्वास कभी नहीं जगेगा . पर जब आप परमात्मा के आगे समर्पण कर देते है तो फिर आप का आत्मविश्वास शत प्रतिशत जग जाता है और आप फिर एक ऐसी शक्ति से जुड़ जाते है जिससे आप अब नये मन का निर्माण अपनी इच्छानुसार कर सकते है .

अब आप सोच रहे होंगे की एक तरफ तो मै कहता हूँ की आप कुछ नहीं कर सकते सबकुछ पहले से निर्धारित है .

हाँ . यह शत प्रतिशत सही है . पर अभी हमारी इन्द्रियाँ पूर्ण जाग्रत नहीं है इसलिए हमे माया और ब्रह्म दो का अस्तित्व दिखाई पड़ता है . सच में केवल ब्रह्म का ही अस्तित्व है . ब्रह्म से ही सबकुछ प्रकट हो रहा है . और यह ब्रह्म का ही एक गुण है जिसके कारण आपको मै अलग और वह अलग दिखता है.

अर्थात ब्रह्म के एक से अनेक होने के गुण के कारण ही इस सृष्टि की रचना हुयी है . आत्मविश्वास जगाने का अर्थ है की अब आप सीधे ब्रह्म से जुड़ गए है . इसलिए अब आप में ब्रह्म के सभी गुण डाउनलोड हो गए है .

हम जिससे रात दिन बाते करते है वास्तविकता में हम उसकी चेतना को ही हमारी चेतना में जोड़ रहे होते है . पर जब आप का आत्मविश्वास जग जाता है तब ऐसा नहीं होता है . अब आप चुनाव करने की शक्ति से जुड़ जाते है . अर्थात यदि आप मांशाहार करने वाले के पास रोज बैठेंगे और आप का आत्मविश्वास जग चूका है तो फिर आप को यह संगत मांशाहारी नहीं बना पाएगी . बल्कि यदि मांशाहारी का आत्मविश्वास आप के आत्मविश्वास से कम है तो आप उसको भी आप जैसा बना लेंगे .

इसी कारण से तो हमे इस संसार में एक दूसरे में कमीया नज़र आती है . क्यों की हर व्यक्ति का आत्मविश्वास आंशिक रूप से ही जगा होता है . और इसी कारण से माया और ब्रह्म का खेल चलता रहता है .तभी तो हमारे भीतर कभी सब कुछ छोड़ने के भाव उठने लगते है और कभी एक इंच जमीन भी मेरे भाई को नहीं छोडूंगा जैसे भाव उठते है .

हमारा आत्मविश्वास कम ज्यादा क्यों होता रहता है ?

इस क्षण तक किये गए संचित कर्मो के कारण . अर्थात इस क्षण तक हमारे अहंकार भाव की क्या स्थिति है उसी के अनुरूप हमारा आत्मविश्वास होता है .

कई बार मै यह भी कहता हूँ की जीवन तो इस क्षण का नाम है और समय होता ही नहीं तो फिर इस क्षण तक का क्या अर्थ है ?

इसका अर्थ यह है की जब हम अपने आप को शरीर के रूप में मानते है और अभी हमे यह विश्वास है की पिछला जन्म होता है तो फिर हम ऐसे मन के माध्यम से एक एक क्षण को संचित कर रहे होते है और जैसे उस क्षण के भाव होंगे हमारा मन उसी रूप में निर्मित होता जायेगा .

इसलिए केवल पूर्ण समर्पण ही एक मात्र तीव्रतम तरीका है अपने आप को बदलने का और अपना आत्मविश्वास जगाने का .

हम तुरंत आत्म समर्पण क्यों नहीं कर पाते है ?

क्यों की हमारे खुद के संचित कर्मो के कारण  हमारा मन इस प्रकार से रच चूका होता है की जब हम इसे गिराने लगते है तो इसमें तीव्र परिवर्तन होते है . जैसे शरीर बदलने लगती है क्यों की शरीर मन का ही साकार रूप है . इसमें मांश बदलता है , हड्ड़िया बदलती है , चमड़ा बदलता है जिससे कई प्रकार के परिवर्तन होते है . और हम इन परिवर्तनों को सहन नहीं कर पाते है और पूर्ण समर्पण से पहले ही हार मान लेते है . यहां मेने ‘हमारे खुद के संचित कर्म’ वाक्य का प्रयोग किया है . इसका मतलब खुद भगवान ही अहंकार के रूप में प्रकट होकर कर्म करते है और हमारे भीतर मै का भाव विकसित करते है . इसलिए हम दिन भर मै मै बकरी की तरह करते रहते है .

समर्पण का अर्थ होता है अब आप मन से कुछ नहीं कर रहे होते है . आप का मन शत प्रतिशत निर्मल हो चूका होता है . अब आप के भीतर देवता और राक्षस दोनों साथ साथ रहते है और आप समता भाव से बीच में खड़े रहते है . जब कोई राक्षस आप से आहार मांगता है तो आप उसे मांश लेकर दे देते है और जब कोई देवता आप से आहार मांगता है तो उसे आप शाकाहार दे देते है . अर्थात आत्मविश्वास जगने के बाद आप के भीतर से घृणा , निंदा , बुराई , चुगली , हिंसा के भाव समाप्त हो जाते है और आप भगवान के साथ एकता स्थापित करने में सफल हो जाते है . और इस प्रकार से आप एक नये मन का निर्माण करने में सक्षम हो जाते है और आप एक नयी दुनिया बना लेते है .

जैसे आपने कभी सुना होगा की आप किसी रिश्तेदारी में बहुत वर्षो बाद जाते है तो वहाँ सब आपको यह कहते है की अरे राहुल तू तो बिलकुल बदल गया है . पहले तो तुझे कुछ नहीं आता था . आज कल तो तू बहुत समझदार हो गया है . यह सब क्या है ?

यह सब आप के मन का परिवर्तन ही है . की भगवान आप के रूप में इस क्षण में क्या कर रहे है . इसलिए अपने आत्मविश्वास को जगाने के लिए निरंतर भगवान का ही चिंतन करना चाहिए . अर्थात अपनी आत्मा को खोजते रहना चाहिए . हरपल आत्म की आवाज को ही सुनते रहना चाहिए .

कैसे सुने आत्मा की आवाज को ?

हर क्षण जो कुछ भी आप को मन में , शरीर में , या बाहर कही भी परिवर्तन महसूस होता है उसे भगवान की अनुभूति स्वीकार करने का अभ्यास करे . फिर धीरे धीरे आगे से आगे रास्ते खुलते जायेंगे .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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