साइकोलॉजी को हिंदी में मनोविज्ञान कहते है . अर्थात मन का विज्ञानं . या वह विज्ञानं जिसके तहत हमारा मन कार्य करता है . या यूं कहे की मन क्या है , मन कैसे काम करता है इत्यादि का अध्ययन करना मनोविज्ञान कहलाता है .
सच तो यह है की मन का अस्तित्व होता ही नहीं है . मन निराकार शक्ति से प्रकट होता है . अर्थात जो मै बार बार कहता हूँ की केवल परमात्मा का अस्तित्व है उसका वास्तविक अर्थ यह होता है की हमारा मन खुद परमात्मा ही है . हम यह भी कह सकते है की मन ही भगवान है . मन को वश में करने का अर्थ है भगवान को वश में करना . इसीलिए हमारा मन आसानी से वश में नहीं होता है . क्यों की यह मन सर्वव्यापी है . मन अनंत है . परमात्मा की शक्ति ही मन का रूप धारण करती है . इसीलिए मन की कार्यप्रणाली को हम किसी भी मशीन या किसी भी तकनीक से शत प्रतिशत सही सही नहीं माप सकते है .
जैसे एक वैद्य आप की नाड़ी देखकर यह कहता है की आप को पित्त से सम्बंधित रोग है . अब यदि आप यह कह दे की नहीं मुझे कोई पित्त से सम्बंधित रोग नहीं है और मेरे वात, पित्त , कफ तीनों समता में है तो आप का वैद्य कुछ नहीं कर सकता .
अर्थात आप यदि भीतर से जानबूझकर यह नाटक कर रहे है की कैसे भी करके मुझे वैद्य की नाड़ी रीडिंग को गलत साबित करना है तो फिर आप के लिए विश्व प्रसिद्द वैद्य भी गलत साबित होगा .
ठीक इसी प्रकार से मन की यही सोच सभी चिकित्सा पद्द्तियो पर लागू होती है .
जैसे कोई व्यक्ति को किसी बीमारी का वहम हो जाए तो फिर वह हर किसी व्यक्ति में उसी बीमारी से सम्बंधित स्थिति को ही देखता है .
इसे आप निम्न उदाहरण से आसानी से समझ सकते है :
जैसे आप के मन में रात दिन यह विचार चलता है की लोग बहुत खराब है तो जब भी आप किसी भी व्यक्ति से मिलेंगे तो सबसे पहले आप के मन में यह विचार आयेगा की कही यह व्यक्ति मुझे नुक्सान नहीं पंहुचा दे , या मेरे साथ कोई गलत व्यवहार नहीं करदे , या मुझे किसी भी प्रकार का धोखा नहीं दे दे .
अर्थात अब आप को यह संसार इसी विचार के अनुसार दिखेगा .
अब किसी का मन किस तरीके से शत प्रतिशत शांत होगा यह वही व्यक्ति बता सकता है जिसने आत्म ज्ञान प्राप्त कर लिया है . अर्थात अपने स्वरुप का दर्शन कर लिया है .
क्यों की जिसने अपने स्वरुप को जान लिया है उसने परमात्मा को पा लिया है और मन कैसे निर्मित होता है यह ज्ञान प्राप्त कर लिया है ऐसा सिद्ध पुरुष पूरे विश्व के किसी भी व्यक्ति की साइकोलॉजी का सम्पूर्ण ज्ञान रखता है .
हमारा मन निरंतर निर्मित हो रहा है , सुरक्षित हो रहा है और फिर साथ साथ परिवर्तित हो रहा है .
अर्थात पूरा संसार निर्माण की शक्ति (ब्रह्मा चेतना) , सुरक्षा की शक्ति (विष्णु चेतना) और परिवर्तन की शक्ति (शिव चेतना) के आधार पर कार्य कर रहा है .
इसीलिए यदि आप से कोई व्यक्ति आज यह वादा करे की मै कल आप के पास चार बजे आ जाऊँगा और जब वह व्यक्ति आप के पास सही समय पर नहीं आये और फिर आप उसे कॉल करके यह याद दिलाये की भाईसाहब आप आज चार बजे आने वाले थे .
इसके जवाब में यदि वह व्यक्ति यह कह दे की आप ने मुझे आज चार बजे आने के लिए कहा ही नहीं था . तो आप को आश्चर्यचकित होने की कोई जरुरत नहीं है . क्यों ?
क्यों की जिस व्यक्ति से आप बात कर रहे है वह आप खुद ही है . अर्थात आप का दृश्य रूप और उस व्यक्ति का दृश्य रूप एक ही मन से प्रकट हो रहे है .
बस आप को अपने मन को इस प्रकार से प्रशिक्षित करना है की आप का मन उस व्यक्ति के मन से सही तरीके से बात करने में सक्षम हो जाए .
अर्थात हम हमारे मन को प्रशिक्षित करके हमारे किसी से भी रिश्ते ठीक कर सकते है .
यदि हम मन को प्रशिक्षित करने में शत प्रतिशत सफल हो जाते है तो फिर हम हर पल खुश रहने लगते है , परिवार में सुख शान्ति आ जाती है . अर्थात सबकुछ प्राप्त हो जाता है .
मन को प्रशिक्षित करने के लिए क्रियायोग ध्यान पद्दति सबसे आसान और शत प्रतिशत सही और तीव्र परिणाम देने वाली है .
बाकी सभी पद्द्तिया आंशिक रूप से और अधिक समय में परिणाम देती है .
क्रियायोग ध्यान सिखने के लिए आप नियमित रूप से हमारी वेबसाइट स्वरुप दर्शन पर उपलब्ध लेख पढ़े और जब आप के भीतर धीरे धीरे इस तकनीक को सिखने की इच्छा जाग्रत होगी तभी आप इसे सही से सीख पायेंगे और फिर मन की साइकोलॉजी को आप सही से समझ जायेंगे.
अर्थात आप खुद एक मनोव्येज्ञानिक बन जायेंगे .
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .