मन क्या है ?

मन परमात्मा की छाया है .              

परमात्मा क्या है ?

एक ऐसी शक्ति जो कण कण में व्याप्त है अर्थात सर्वव्यापी है . सभी जगह है . जैसे पत्थर में , पानी में , खाली जगह में , आकाश में अर्थात कुल मिलाकर अनंत में .

निर्वात में भी परमात्मा ही है . अर्थात परमात्मा के अलावा कुछ भी नहीं है .

आप इसी परमात्मा को ईश्वर , परम चेतना , अल्लाह , अंग्रेजी में गॉड , भगवान , निराकार ऐसे अनेक नामों से जानते है .

जिस प्रकार से वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था की ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है तो उनकी बात का वास्तविक अर्थ यह है की निराकार परमात्मा को साकार रूप में बदला जा सकता है .

पर मै यहां आप को समझाने के लिए मेरी भाषा को और आसान कर रहा हूँ .

परमात्मा को साकार रूप में कोई दूसरा नहीं बदल सकता है बल्कि यह अपने आप ही होता है . जिसे ही हम साधारण भाषा में प्रभु की इच्छा कहते है .

अर्थात आप का मन वास्तविक रूप में आप खुद नहीं बल्कि आप के रूप में खुद परमात्मा ही प्रकट कर रहे है . यही वह परम सत्य है जिसे आज इस पूरी दुनियाँ में वे सभी महान व्यक्ति जानना चाहते है जो निरंतर खुद की खोज में लगे हुए है या मोक्ष चाहते है या इस दुनिया का रहस्य जानना चाहते है .

जब आप क्रियायोग ध्यान का पूरी श्रद्धा और सच्ची भक्ति के साथ अभ्यास करते है तो आप को यह अनुभव होता है की हर अहसास किसी न किसी शक्ति का ही प्रभाव होता है .

जैसे आप को अपने वजन का अहसास होना , आप को सर्दी गर्मी का अहसास होना , आप को सुख दुःख का अहसास होना .

अर्थात मन परमात्मा का वह साकार रूप (अति सुक्ष) है जो परमात्मा की खुद की इच्छा से प्रकट होता है . जैसे आप एक एक ईट चुनकर के दीवार बना लेते है.  और फिर ऐसी विभिन्न प्रकार की दीवारे बनाकर इसे एक घर का रूप दे देते है. ठीक इसी प्रकार परमात्मा एक रचनाकार है .

जो आप के रूप में आप जिसे खुद का शरीर कहते है परमात्मा उसका निरंतर निर्माण कर रहे है.  और साथ ही आप की बुद्धि को इस प्रकार से विकसित कर रहे है की आप को यह लगता है की आप खुद ही इस शरीर को चला रहे है.  या फिर आप अपने आप को शरीर मानते है .

परमात्मा आप की बुद्धि को इस प्रकार से विकसित क्यों करते है ?

क्यों की परमात्मा चाहते है की आप का जीव भाव बना रहे . अर्थात आप अपने आप को एक मनुष्य जीव के रूप में इस धरती पर रहने वाला प्राणी समझे .

अब आप का प्रश्न यह है की जब हम सभी परमात्मा के बच्चे है तो फिर जीव भाव की अनुभूति कराके परमात्मा हमे कष्ट क्यों देते है ?

क्यों की यदि आप को जीव भाव की अनुभूति नहीं होगी तो फिर आप :

  • खाना नहीं खा पायेंगे.
  • चल नहीं पायेंगे .
  • देख नहीं पायेंगे .

अर्थात जीव भाव के कारण ही आप के मन के माध्यम से शरीर का अस्तित्व रहता है .

यदि आप अपने आप को जीव नहीं समझेंगे तो क्या होगा ?

यदि आप यह सच जान जायेंगे की मै जीव नहीं हूँ बल्कि मै तो खुद ही परमात्मा हूँ तो फिर आप के पास अनंत शक्तियाँ आ जायेगी.  और फिर हो सकता है की अज्ञानता के कारण आप अन्य जीवों को नुक्सान पहुँचाना शुरू कर दे.

इसीलिए आप मेसे अनेक महान व्येक्तियों को पता है की जब हम परमात्मा की साधना करते है . तो इससे हमे  शक्तियाँ मिलने लगती है . और ध्यान के दौरान  हमे चमत्कारिक अनुभव होना शुरू हो जाते है .

जब हम इन चमत्कारों का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करने लगते है तो क्या होता है ?

उत्तर : फिर हमारे परम पिता हमारे से यह सभी शक्तियाँ वापस ले लेते है .

फिर हमें ध्यान में जल्दी से परमात्मा के चमत्कारों का अनुभव नहीं होता है . इसे ही साधना में त्रुटि कहा जाता है .

इसलिए मन क्या है इसे समझना बहुत जरुरी है . यदि परमात्मा आप को जीव भाव की अनुभूति में नहीं रखेंगे तो फिर आप अपना किरदार सही से नहीं निभा सकते .

अर्थात परमात्मा आप के मन और शरीर के माध्यम से जो लीला कर रहे है . उसमे आप का जीव भाव में रहना ही सहायक है . इसीलिए तो कई व्येक्तियों को आत्मज्ञान प्राप्त होने के बाद इस संसार से विरक्ति हो जाती है . अर्थात वे वैरागी हो जाते है . पर यह बात सभी आत्म ज्ञानियों के लिए सच नहीं होती है .

किस आत्म ज्ञानी को संसार से विरक्त करना है,  यह भी परमात्मा ही निर्धारित करते है . और किस आत्म ज्ञानी को संसार में अन्य लोगों में ज्ञान का प्रचार प्रसार करना है , यह भी परमात्मा ही निर्धारित करते है .

आत्म ज्ञानी कितने प्रकार के होते है ?

  • जो खुद आत्म ज्ञान प्राप्त करके अन्य व्येक्तियों को जाग्रत करने में मदद करता है
  • जो खुद आत्म ज्ञान प्राप्त करके सीधे निराकार में बदल जाते है
  • जो खुद आत्म ज्ञान प्राप्त करके दिव्य शक्ति के रूप में अन्य व्येक्तियों की मदद करता है

इसलिए हमारा मन परमात्मा के माध्यम से रचा गया वह सॉफ्टवेयर है जो इस पूरे संसार को प्रकट कर रहा है .

अर्थात मन ही माया है , मन ही संसार है और मन ही शरीर है . मन ही करता है और मन ही भोक्ता है .

जैसे विद्युत ऊर्जा निम्न रूपों में बदल जाती है :

  • पंखे में यह ऊर्जा हवा के रूप में
  • फ्रीज़ में यह ऊर्जा ठण्ड के रूप में
  • गीजर में यह ऊर्जा गर्म के रूप में

परमात्मा से मन प्रकट होकर निम्न रूपों में बदल जाता है :

  • कारण जगत को प्रकट करता है
  • कारण जगत से सूक्ष्म जगत प्रकट होता है
  • सूक्ष्म जगत संघनित होकर भौतिक जगत प्रकट करता है

जिसे ही हम पृथ्वी , चन्द्रमा , सूर्य , गृह , तारे , मुनष्य शरीर , अन्य जीव कुल मिलाकर सम्पूर्ण श्रष्टि का निर्माण होना कहते है .

जैसे यदि आप को जीव भाव की अनुभूति नहीं होगी तो आप खुद को कैसे संभालेंगे . अर्थात आप अपने पैरो को अनुभव करते हो इसीलिए आप को जब पैरो में कोई सुई चुभा दे तो आप तुरंत अपना पैर वह से हटा लेंगे .

यदि आप को पैरो में जीव भाव की अनुभूति नहीं होगी तो फिर आप पैरो को ज्यादा समय तक अस्तित्व में नहीं रख पायेंगे .

इसलिए इस मन के कारण ही आप का शरीर अस्तित्व में है . और परमात्मा के कारण ही आप का मन अस्तित्व में है . जैसे कोई विचार बार बार आप सोचते है तो फिर उस विचार के अनुरूप ही वह घटना वास्तविक रूप में आप के साथ घटित होने लगती है . ठीक इसी प्रकार से ऊर्जा को विचार के माध्यम से संघनित किया जाता है .

जैसे पानी का बर्फ में बदलना

पानी का भाप में बदलना

भोजन से प्राप्त ऊर्जा का रस , रक्त , मांश , अस्थि , मज्जा और वीर्य में बदलना . यह सब वैज्ञानिक आइंस्टीन के सूत्र को ही सही सिद्ध करते है .

अर्थात वास्तविक रूप में तो परमाणु का भी अस्तित्व नहीं होता है . परमाणु भी परमात्मा की शक्ति से ही प्रकट होता है .

मै आप को मन के विषय में आगे के लेखों में और गहराई से समझाऊंगा ताकि आप इस संसार जगत में बहुत ही ख़ुशी के साथ हरपल परमात्मा से जुड़े होने का अनुभव कर सके और अपने कर्तव्य का पालन ठीक से करने में सफल हो सके.

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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