आप के इस प्रश्न के दो उत्तर है . और वे उत्तर इस बात पर निर्भर करते है की आप सामने वाले के साथ कैसा व्यवहार अभी वर्तमान में कर रहे है और पहले आप ने इस व्यक्ति के साथ कैसा व्यवहार किया था .
अर्थात आप के संचित कर्मो के आधार पर और इस क्षण की जाग्रति के आधार पर सामने वाले का मन प्रभावित होता है .
यदि आप ने इस व्यक्ति के साथ कभी बहुत बुरा व्यवहार किया है और अब आप ऐसा व्यवहार करके भूल गए है और आज वर्तमान में आप इस व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार कर रहे है पर सामने वाला अभी भी आप को पुरानी नज़र से ही देख रहा है तो फिर लाजमी है की वह आप से अभी भी बुरा व्यवहार ही करेगा .
पर वह ऐसा बुरा व्यवहार कब तक करेगा ?
जब तक आप के अच्छे व्यवहार का प्रकाश उसके अवचेतन मन को निर्मलता में बदल नहीं देता . इसीलिए तो ज्ञानी जन कहते है की चाहे सामने वाला आप के साथ कितना भी बुरा व्यवहार अभी कर रहा हो या पहले कभी किया हो आप केवल अपने अच्छे व्यवहार से ही उसको सबक सीखा सकते हो. अर्थात अहिंसा परमोधर्म.
फिर आप समाज में लोगों के मुँह से यह क्यों सुनते हो की बुरे के साथ बुरा बनना पड़ता है तभी वह अच्छाई के रास्ते पर आता है ?.
इसका जवाब यह है की पहली बात तो सामने वाला कभी भी खुद को बुरा मानता ही नहीं है . और फिर जब आप उसे बुरा व्यक्ति मानकर उसके साथ बुरा व्यवहार करके अर्थात हिंसा का मार्ग अपनाकर उसको कभी भी नहीं सुधार सकते हो .
इसे आप खुद पर लेकर देखे . जैसे सामने वाले व्यक्ति के मन में यह विचार बहुत गहरा बैठा है की आप ने उसके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया है . अब वह आपको सुधारने के लिए आप के साथ कई प्रकार से बुरा व्यवहार कर रहा है और आप के मन में यह विचार बहुत गहरा बैठा है की मेने जीवन में कभी भी इस व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया है बल्कि इसको हमेशा बहुत साथ दिया है .
तो क्या आप सामने वाले के इस व्यवहार से सुधरकर एक अच्छे इनसान बन जायेंगे ?
कभी नहीं ?
क्यों ?
क्यों की जिस प्रकार आप को प्रेम की तलाश है , एक शांत मन की तलाश है , एक सुकून की तलाश है ठीक इसी प्रकार से सामने वाले को भी प्रेम , ख़ुशी , आनंद , सुकून चाहिए .
समाज में लोगों के मुँह से जो यह बोला जाता है की बुरे के साथ बुरा बनना पड़ता है यह एक मायावी विचार होता है . और इस विचार का होना एक प्राकृतिक घटना है . क्यों की परमात्मा अपनी लीला को जारी रखने के लिए एक व्यक्ति से गलती कराते है और फिर दूसरे से उसकी गलती को ठीक कराते है . और इस प्रकार से यह संसार जगत चलता है . यदि इस संसार में कोई भी व्यक्ति गलती नहीं करे तो फिर यह संसार अदृश्य होकर पूर्ण रूप से निराकार परमात्मा में बदल जाएगा .
पर जो व्यक्ति क्रियायोग ध्यान का गहरा अभ्यास करता है वह धीरे धीरे इस संसार रुपी स्वप्न से जागने लगता है और स्थिर प्रज्ञ होकर परमात्मा की इस लीला में अपना किरदार बहुत ही अच्छे से निभाता है . जिसे संसार में लोग सयाने या मायाचारी शब्द से सम्बोधित करते है .
तो फिर आप क्या करे जब आप के साथ सामने वाला बुरा व्यवहार करता है और आप कुछ भी नहीं समझ पाते है ?
आप निरंतर क्रियायोग ध्यान का गहरा अभ्यास करे . सबसे पहले यह स्वीकार करने का अभ्यास करे की मेरे साथ जो कुछ भी व्यवहार हो रहा है उसका मै खुद ही शत प्रतिशत जिम्मेदार हूँ और ऐसा स्वीकार करने के लिए आप को आत्मशक्ति की जरुरत होती है अर्थात अपने आप को जगाने की जरुरत होती है . इसके लिए आप निम्न तरीके अपना सकते है :
जब सामने वाले का व्यवहार खराब हो तो आप ज्यादा से ज्यादा मोन रहने का अभ्यास करे और भीतर ही भीतर परमात्मा से यह प्रार्थना करे की हे प्रभु मेरी रक्षा करे . अर्थात सामने वाले को परमात्मा का साकार रूप शत प्रतिशत स्वीकार करके भीतर ही भीतर यह प्राथना करे की मुझे क्षमा करो प्रभु आप के बच्चे से गलती हो गयी है .
जब आप बार बार सच्चे ह्रदय से प्रभु से प्रार्थना करेंगे सामने वाले को ही परमात्मा का रूप स्वीकार करके तो आप की प्रार्थना की पुकार बहुत तीव्र गति से सामने वाले की आत्मा तक पहुँच जायेगी . और निरंतर ऐसा अभ्यास करके आप धीरे धीरे इस समस्या से हमेशा हमेशा के लिए बाहर आ जायेंगे .
यह प्रार्थना भी क्रियायोग ध्यान का ही एक हिस्सा होती है .
आखिर यह सब करके आप वास्तविक रूप में कर क्या रहे है जिससे की आप की यह समस्या समाप्त हो जाती है ?
ऐसा अभ्यास करके आप अपने अवचेतन मन को निर्मल कर रहे होते है . अर्थात आप अपने संचित कर्मो को बहुत ही आसानी से ख़ुशी में बदल रहे होते है . पर कैसे ?
होता क्या है की जब कोई भी व्यक्ति आप की जितनी बुराई करता है या आप को परेशान करता है आप को तो उससे बदला लेने के बजाय भीतर ही भीतर धन्यवाद देना चाहिए की वह आप के माध्यम से कभी जीवन में किये गए पुराने बुरे कर्मो को काटने में आप की मदद कर रहा है . यदि आप उसका विरोध करेंगे तो इसका मतलब यह होता है की आप अभी भी अपने अवचेतन मन में इसी विचार को बार बार जमा कर रहे है की हां आप स्वीकार करते है की आप एक बुरे इनसान है पर आप इसका विरोध इस प्रकार से कर रहे है की जब सामने वाला आप को उकसाता है तो आप तुरंत प्रतिक्रिया देते है की नहीं आप बुरे नहीं अच्छे इनसान है .
फिर इसमें आप गलती क्या कर रहे है ?
आप की गलती इस विरोध की गहराई में छिपी होती है . अर्थात आप के अवचेतन मन में बहुत से गहरे तल होते है जिनकी संख्या आप के अनंत जन्मों के ऊपर आधारित होती है .
इसमें सबसे बड़ी गलती आप की यह है की जब आप गलत हो ही नहीं या यदि जाने अनजाने में आप ने कभी गलती कर भी दी तो अब आप यदि इस गलती वाले विचार को अपने अवचेतन मन से हमेशा के लिए रूपांतरित करना चाहते है तो फिर आप को हमेशा अवचेतन मन से आने वाले पुराने उन सभी विचारों के प्रति उदासीन या सकारात्मक विचारों के साथ अपने मन को प्रशिक्षित करना होगा . अर्थात जिस विचार पर आप ध्यान देंगे वही विचार धीरे धीरे साकार होने लगता है . इसलिए आप को हर विचार के प्रति जाग्रत रहने का अभ्यास करना है और फिर अपनी इस जाग्रति से प्रकट हुए ज्ञान को इस्तेमाल करके जैसा विचार आप अपने अवचेतन मन में इन बुरे विचारों की जगह प्रतिस्थापित करेंगे तो धीरे धीरे आप का अवचेतन मन जैसा आप चाहेंगे वैसा निर्मित होने लगेगा.
अर्थात आप अपना स्वभाव कैसा बनाना चाहते है यह शत प्रतिशत आप के ऊपर ही निर्भर करता है . और चाहे आप के सामने कितनी भी बड़ी समस्या आ जाए यदि आपको आपकी आत्मा और परमात्मा पर विश्वास है तो फिर परमात्मा आप को इस समस्या से कैसे निजात पाना है उसका तरीका अवश्य बताते है . अर्थात आप के पास हमेशा समस्या के स्थायी समाधान होते है . पर यह सब एक दिन में संभव नहीं होता है . इसके लिए आप को क्रियायोग ध्यान का निरंतर अभ्यास करना बहुत जरुरी होता है .
धन्यवाद जी . मंगल हो जी .