जैसे अभी आप यह लेख बहुत ही ध्यान से पढ़ रहे हो और अचानक से
आप के मन में कोई विचार आ जाये जो आप की ऊर्जा को बहुत देर तक खर्च कर दे और फिर
अचानक से आप को याद आये की अरे मै तो यह लेख पढ़ रहा था और मै कब कहा खो गया था .
तो आप को एक पश्चाताप या दुःख या असंतुष्टि या अपने समय की बर्बादी को लेकर चिंता
होने लगती है . ठीक इसी प्रकार जब आप कोई काम बहुत ही मन लगाकर कर रहे है और आप यह
सोच रहे है की अभी मुझे कोई भी व्यक्ति डिस्टर्ब ना करे अन्यथा मै इस काम को ठीक
से नहीं कर पाऊंगा . और फिर अचानक से आप को कोई न कोई व्यक्ति परेशान करने आ ही
जाता है और आपका मूड खराब हो जाता है . फिर आप कैसे जैसे करके इस स्थिति से बाहर
निकलते है . और एक बार फिर से सोचते है की अबकी
बार मै इस क्षण में जीने का अभ्यास करके ही मानूंगा अर्थात मेरे मन को किसी एक काम
पर लगाकर ही दम लूंगा . और ऐसे करते करते आप को कई साल बीत जाते है पर मन इस क्षण
में नहीं आ पाता है क्यों ?.
क्यों की जब तक आप मन की कार्य प्रणाली कैसे काम करती है , विचार क्या है , यह कैसे उत्पन्न
होते है और इनको कैसे पहचाने अर्थात आप जो भी कर्म करते है उसके क्या क्या प्रभाव
उत्पन्न होते है , कर्म संस्कार
कैसे बनते है ऐसे अनेक प्रकार के प्रश्नों का सही उत्तर आप को पता नहीं होता है और
आप वर्तमान क्षण से भटक जाते है . या यु कहे आप कर्म बंधन में फस जाते है .
तो ऐसा क्या करे की कर्मबन्धन में ना फसे ?
पूर्ण मनोयोग से क्रियायोग ध्यान का निरंतर अभ्यास . जैसे
आप अभी यह लेख पढ़ रहे है तो साथ ही यह भी याद रखे की आप की आँखे किस प्रकार से इस
लेख को पढ़ रही है , आप अपने सिर का
अहसास करे , अपनी श्वास को
महसूस करे की यह कैसी चल रही है , अपने कानों को मह्सूस करे की अभी मेरे कान क्या क्या सुन
रहे है . इस प्रकार सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होते हुए जब आप यह लेख पढ़ेंगे
तो आप को धीरे धीरे अहसास होगा की आप शरीर नहीं है , और किस प्रकार से आप के मन में विचार आ रहे है
अब आपको इनका साफ़ साफ़ पता चलने लगेगा . जब आप से कोई बात करेगा तो आप सिर से लेकर
पाँव तक में एकाग्र होकर बात सुनेंगे तो आप को इस अमुक व्यक्ति की बात के पीछे का
सच पता चलने लगेगा . अर्थात आप को यह अनुभव होगा की यह व्यक्ति कही मेरा समय तो
खराब नहीं कर रहा है.
क्रियायोग ध्यान के अभ्यास से आप की सोचने समझने की शक्ति
जागने लगती है . आप विचारों को समझने लगते है . आप को पुराने कर्मो का पता चलने
लगता है . आप को यह अनुभव होने लगता है की मै खुद ही मन के माध्यम से लोभ , लालच , ईर्ष्या , घृणा , सुख , दुःख , बीमारी ऐसे तमाम
भाव पैदा कर रहा हूँ . आप की चेतना का स्तर ऊपर उठने लगता है . आप की काम करने की
क्षमता बढ़ने लगती है , आप को अनुभव होने लगता है की अभी वर्तमान के काम करते हुए
भूतकाल की चिंता करने से मेरा कितना नुकसान हो जायेगा . और आपको यह भी अनुभव होने
लगेगा की वर्तमान में काम करने के दौरान यदि मै भविष्य की योजनाओ और भविष्य में
आने वाली परेशानियों के बारे में सोचने से मेरा वर्तमान में कितना नुकसान हो रहा
है और इस कारण से मेरा भविष्य भी खराब होगा यह सब आप को साफ़ साफ़ अनुभव होने लगेगा
. और जब आप को यह सब अनुभव होने लगता है अर्थात जब आप को भूत और भविष्य दिखने लगते
है तो आप अपने आप ही इस क्षण में आने लगते है . क्यों की एक बार यदि आप विश्वास
करके यह अभ्यास करने को राजी हो जाते है तो आप को फिर ऐसे फायदे होने लगते है
जिनकी कभी आपने कल्पना भी नहीं की थी .
इस अभ्यास से आप खुद ही अपने मन को प्रशिक्षित करने लगते है
की मुझे मेरे मन का इस्तेमाल कैसे करना है . आप अपने मन के ट्रेनर बन जाते है .
अर्थात आप अपने मन के मालिक बन जाते है . और मन ही करता और मन ही भोगता का ज्ञान
हो जाता है . आप के मन की इस प्रकार से नयी आदत बन जाती है . अर्थात अब आपका
अवचेतन मन रिप्रोग्राम होने लगता है . आप को जैसे इसकी प्रोग्रामिंग करनी है वैसी
आप करने लगते है . मन में ऐसी आदतें विकसित होने लगती है की आप अपने आप ही इस क्षण
में आने लगते है .
इस प्रकार क्रियायोग का निरंतर अभ्यास आप को
इस क्षण में जीना सिखाता है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .