इस क्षण में संतुष्टि क्यों है ?

प्रश्न :  इस क्षण में संतुष्टि क्यों है ?

उत्तर :  क्यों की जीवन केवल इसी क्षण में सुरक्षित है . अर्थात जीवन इस क्षण का नाम है .
जब आप स्वरुप दर्शन का अभ्यास करते है तो वास्तविक रूप में आप इस क्षण में जीने का ही अभ्यास कर रहे होते है .
जब आप इस क्षण को पूरी तरह स्वीकार कर लेते हो तो इसका मतलब आप ने परमात्मा को अब ह्रदय से स्वीकार कर लिया है .

और परमात्मा को स्वीकार करने का मतलब है की आप ने अब प्राण शक्ति से संपर्क स्थापित कर लिया है .
जब आप वर्तमान में आप के साथ घटित होने वाली हर घटना को बिना शर्त स्वीकार कर लेते हो , अर्थात आप सुख और दुःख दोनों में स्थायी रूप से स्थिर रहते हो तो आप धीरे धीरे परमात्मा से जुड़ने लगते हो .

इसे मै आप को एक उदाहरण से समझाता हूँ :
जैसे आप के ऊपर बहुत कर्जा चढ़ा हुआ है और रोज लोग आप से पैसे मांगने आते है और पैसे नहीं देने
के कारण लोग आप को परेशान करते है . और जब आप परेशान होते है तो यही परेशानी आप थोड़ी थोड़ी मात्रा में अपने घर वालो को बाँटने लगते है . और फिर धीरे धीरे आप के जीवन पर दुखो का पहाड़ टूटने लगता है .
तो फिर क्या करे ?
इस क्षण में जीने का अभ्यास करे अर्थात स्वरुप दर्शन का अभ्यास करे .
इस क्षण में जीने से आप का कर्जा कैसे चुकेगा ?
आप का कर्जा केवल इसी क्षण में जीने से चुकेगा . वरना यदि आप भूत भविष्य में जी रहे है तो आप का कर्जा कभी भी नहीं चुकेगा .
क्यों की भूत और भविष्य का अस्तित्व ही नहीं है . आप तो केवल कल्पना में ही जी रहे है . इसलिए आप की यही झूठी कल्पनाये आप को कष्टों से बाहर नहीं आने देती है .
क्यों की आप जिन भूत और भविष्य के पलो में जी रहे है उनमे प्राण(पूर्ण चैतन्य रूप में) ही नहीं है . और बिना प्राण के आप सुरक्षित नहीं रह सकते है . तभी तो आप को कर्जा नहीं चुकाने का डर लगता है .
वास्तविक रूप में आप को यह डर कर्जे के कारण नहीं लग रहा है . बल्कि आप खुद को अहंकार भाव के कारण परमात्मा से अलग मानकर जीवन जी रहे है . इसलिए परमात्मा से जुड़ा हुआ प्राण सेतु कमजोर पड़ने लगता है .

और चीजे आप के हाथ से छूटती हुयी प्रतीत होती है . अर्थात शरीर यहां और मन कर्जे वाले विचार में खोया रहता है . जिससे आप अपने मन के माध्यम से प्राण शक्ति का प्रयोग करके अपने शरीर को सुरक्षित नहीं कर पाते है . और इसीलिए आप के मन और शरीर में घबराहट होने लगती है . और आप यह समझ लेते है की मुझे यह घबराहट कर्जे की वजह से हो रही है .

मै कैसे मानु की घबराहट कर्जे की वजह से नहीं हो रही है ?
यदि उसी समय आप का यह कर्जा आप की किसी पुरानी लॉटरी से आप चूका देते है तो फिर से आप किसी नयी समस्या में पड़कर घबराने लगेंगे .
जीवन की सभी समस्याओं का स्थायी समाधान तभी संभव है जब आप इस क्षण में जीने का अभ्यास पूरे सच्चे ह्रदय और समर्पण भाव से करते है . और सभी जीवों में खुद को देखते है . तो अब आप खुद ही
दिमाग लगा ले की आप संतुष्ट होंगे ही होंगे .

आप अपने मन को इस क्षण में लाते ही वास्तविक रूप में आप मन को परमात्मा की तरफ ही मोड़ रहे हो . अर्थात जब आप अपने मन का ध्यान कर्जे से हटाकर इस क्षण में लेकर आते है तो आप के भीतर
से जवाब आने लगते है की आप का यह कर्जा कैसे चुकेगा .

भीतर से जवाब आने का मतलब है की हो सकता है की आप को स्वरुप दर्शन के इन लेखों में अपने प्रश्नों का जवाब मिल जाए या अन्य किसी माध्यम से .
क्यों की जब आप इस क्षण में जीने लगते है तो आप धीरे धीरे प्राणवंत होने लगते है . और आप के प्राणवंत होने के कारण ही अब आप की इन्द्रियाँ जाग्रत होने लगती है .

अब आप खुद के भीतर और बाहर की परिस्थितियों को वास्तविक रूप में समझने लगते हो .
स्वरुप दर्शन के अभ्यास का मतलब होता है खुद को जानना . खुद के स्वरुप का दर्शन करना .
और जब आप खुद के स्वरुप का दर्शन कर लेते हो तो आप संसार का वास्तविक दर्शन कर लेते हो .
इसलिए स्वरुप दर्शन के अभ्यास से आप कर्जे के मूल कारणों का पता लगाने में सफल होने लगते हो .

आप को पता चल जाता है की आप के ऊपर इस कर्जे का कारण आप खुद ही हो . और इसका समाधान भी आप को खुद को ही करना होता है . पर इस अभ्यास के कारण आप समाधान करने में इसलिए सफल होने लगते हो की अब आप परमात्मा से जुड़ रहे हो .

इसलिए परमात्मा से आप के भीतर यह ज्ञान जाग्रत होने लगता है की आप को यह कर्जा कैसे चुकाना है .
जैसे हम यहां संसार में किसी न किसी रूप में कर्जा ही तो चूका रहे है . कोई किसी के नौकरी करके अपना कर्जा चूका रहा है जबकि उसका मन तो व्यवसाय करना चाहता है .

क्यों की स्वरुप दर्शन के अभ्यास के माध्यम से  अब आप अपने आप को ब्रह्माण्ड के हवाले कर देते हो . तो ब्रह्माण्ड आप से ऐसा काम कराता है की आप को पता भी नहीं चलता है और आप के पास पैसे आने लगते है . और इसी पैसे से आप अपना कर्जा चुकाने में सफल होने लगते हो .
इसलिए जब आप का कर्जा चुक जाता है तो आप अब एक संतुष्टि की अनुभूति करने लगते हो .
आप कभी भी यह प्रयोग करके देखना की जब आप गहरे ध्यान में रहते हो तो आप को भूख , प्यास , और किसी अन्य वस्तु की याद नहीं रहती है . आप अपने आप में मस्त हो जाते हो .
इस क्षण में जीने से संतुष्ट होने पर आप का व्यवहार मधुर होने लगता है .

अब आप से कर्जा मांगने वाला चाहे कितना भी बुरा बर्ताव करे आप उससे तमीज से पैस आते हो . अब आप सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चल रहे होते हो .
अर्थात खुद परमात्मा ही अब आप के मन , शरीर , और बुद्धि के रूप में काम कर रहे होते है .
हालांकि जो व्यक्ति आप से कर्जा मांगता है उसके रूप में भी परमात्मा ही काम कर रहे होते है . बस केवल फर्क इतना ही होता है की वह परमात्मा का मायावी रूप होता है .

अर्थात सामने वाला आप का ही प्रतिबिम्ब है . यदि आप इस क्षण में जीते है तो आप को धीरे धीरे यह अनुभूति होने लगती है की आप का शरीर भी आप का ही प्रतिबिम्ब है . मतलब जिस प्राण को आप महसूस कर रहे है वही प्राण अब साकार रूप में आप के सामने प्रकट हो रहा है .

इसलिए आप इस क्षण में जीते हुए हर अनुभूति के प्रति कैसा भाव रखते है उसी के अनुरूप आप का यह प्राण दृश्य और अदृश्य रूप में प्रतिबिंबित होता रहता है .
परन्तु जब आप इस क्षण की हर अनुभूति को परमात्मिक अनुभूति मानकर स्वीकार कर लेते है तो फिर
दृश्य और अदृश्य जगत आप को परमात्मा का रूप दिखाई देने लगता है .

आप का सभी से राग द्वेष समाप्त होने लगता है .
हां पर इसमें एक बात का अवश्य ध्यान रखना है की राग द्वेष पूर्ण रूप से समाप्त नहीं होते है .

क्यों की अभी आप भोजन करते है , पानी पीते है, श्वास लेते है . इसलिए अभी आप अपने मन और शरीर के अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए प्रकृति पर निर्भर है . और प्रकृति त्रिगुण से प्रभावित रहती है .
इसलिए फिर भी आप इसी मन और शरीर के साथ संतुष्ट रहने लगते है .

क्यों की अब आप भूख लगने पर इतना ही भोजन खाते है जिससे आप की भूख पूरी तरह से मिटे नहीं और ठीक इसी प्रकार से आप प्रकृति की सभी चीजों का इस्तेमाल इस प्रकार से करने लगते है जिससे आप का मन और शरीर सुरक्षित रहने लगता है .
और इसी कारण से आप संतुष्ट रहने लगते है . इसीलिए इस क्षण में संतुष्टि क्यों है ? का जवाब प्राण के रूप में हम महसूस करते है .

और जैसे ही आप इस क्षण में जीने का अभ्यास छोड़ देते है तो इसका मतलब अब आप पहले की तरह
ही भौतिक वस्तुओं को सच मानकर उनके साथ जैसी वे दिखाई देती है वैसे आप व्यवहार करने लगते है
और आप को तो पता ही है की जो जैसा दिखाई दे रहा है वैसा वास्तविक रूप में है नहीं.

इसलिए किसी भी वस्तु या जीव को वास्तविक रूप में जानने का केवल एक ही तरीका है स्वरुप दर्शन का निरन्तर अभ्यास करना.
क्यों की इसी अभ्यास से आप अपने आप को जीवन के आधार से जोड़ लेते हो . और जब आप इस आधार से जुड़ जाते हो तो आप संतुष्ट रहने लगते हो . क्यों की केवल यही आधार स्थायी होता है .
अर्थात केवल परमात्मा का अस्तित्व है . यही परम सत्य है .
इसीलिए अब समय आ गया है खुद को जगाने का . अर्थात खुद को जगाओं और संतुष्ट हो जाओ .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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