कण कण में परमात्मा है तो फिर हम कष्ट क्यों पाते है ? | स्वरुप दर्शन

हम कष्ट इसलिए पाते है की अभी यह बात हम यातो किसी से सुन
लिए है या हम केवल यह बात बोलते है या हम किसी डर के कारण ऐसा मानते है या हम
अज्ञान के कारण ऐसा केवल विचार मात्र रखते है या कोई बुरा नहीं मान जाए इसलिए हम
यह कहते है या अपने आप को लोगों के सामने बड़ा दिखाने के लिए यह सब बोलते है या हमे
अभी खुद को ही पता नहीं है की कण कण में परमात्मा है ऐसा वाक्य क्या आज सुबह भी
बोला था क्या
?, या हम ने इस
वाक्य को रट लिया है या बहुत गहराई में दबी आत्मा की आवाज को सुनकर ऐसा बोलते है
और फिर उसी माया जाल में फसकर जीवन जीते है .

जब हम कण कण में परमात्मा है इसका अहसास करने लग जायेंगे तो
सभी कष्ट हमेशा हमेशा के लिए गायब हो जायेंगे .

अच्छी बाते बोलना और वास्तविक रूप में इनका अनुभव
करने इसमें रात और दिन का अंतर् होता है .

अर्थात कण कण में परमात्मा तभी अनुभव होते है जब हम शत
प्रतिशत आत्मभाव में जीते है . अभी तो हम ९९ % शरीर भाव में जी रहे है और हमारा मन
ही हमारे से चालाकी करके हमारे मुँह से बुलवाता है की कण कण में परमात्मा है .

इसे आप निम्न तरीके से समझ सकते है :

जैसे हमे किसी से हमारे उधार दिए पैसे
निकलवाने होते है तो हम तरह तरह के परमात्मा के नाम पर झूठे वाक्य बोलते है और हमे
भीतर से पता होता है की हम झूठ बोल रहे है . अर्थात हमे हमारे मन की नौटंकी पूरी
तरह से पता रहती है और हम ऐसी ऐसी बाते बोल देते है जो हमे ही मुर्ख बना देती है .

हमे लगता है की हम सामने वाले को मुर्ख बना रहे है . पर सच
यह है की ऐसा करके हम शत प्रतिशत खुद को ही मुर्ख बना रहे होते है .

क्यों की जब आप क्रियायोग का गहरा अभ्यास करेंगे तो आप को
यह अहसास होगा की आप सर्वव्यापी है . अर्थात सामने वाले व्यक्ति के रूप में भी आप
ही प्रकट हो रहे है . पर यह क्रियायोग के अभ्यास से ही अनुभव में आता है .

जब आप क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से गहरा अभ्यास करते है तो
आप को वास्तविक रूप में अनुभव होता है की कण कण में परमात्मा है .

जैसे आप एक दिन रात को दिन भर के थके हुए काम पर से घर लोटे
है और आप दिन भर के भूखे है . पर घर आते ही आप को पता चला की जिस बेटी को आप बहुत
ज्यादा प्यार करते है उसकी आज तबियत ज्यादा खराब है और तुरंत डॉक्टर को दिखाना
बहुत जरुरी है .

तो आप तुरंत अपनी सारी थकान को भूलकर दुबारा से ऊर्जावान
होकर पत्नी के साथ बेटी को हॉस्पिटल लेकर जाते है और उसका इलाज कराते है . और जब
आप की बेटी स्वस्थ होकर आप के सामने मुस्कराती है तो आप की ख़ुशी का कोई ठिकाना
नहीं रहता है .

आखिर क्या है यह सब . यदि आप सच में थके हुए होते तो आप
बेटी को बीमार देखकर और ज्यादा थकते और हो सकता है आप की भी तबियत ख़राब होने लगती
. पर ऐसा नहीं हुआ . क्यों
?

क्यों की आप अपनी बेटी को बहुत प्यार करते है
. और यही प्यार परमात्मा का अनुभव है . आप ने खुद के कष्ट को भूलकर दूसरे जीव में
परमात्मा को देखा है . अर्थात आप ने इतना प्रेम कष्ट के समय खुद को नहीं किया
जितना बेटी को किया है . आप को खुद के कष्ट से भी ज्यादा बड़ा कष्ट बेटी का अनुभव
हुआ है . इससे यह समझ में आया है की इंसान उसी चीज को सबसे ज्यादा प्रेम करता है
जिससे उसको सबसे ज्यादा ख़ुशी मिलती है . और यदि इंसान सबसे पहले खुद को सच्चा
प्रेम करने लग जाए तो फिर यही कष्ट प्यारे लगने लगते है . क्यों की अब वह जाग जाता
है की यह जो मुझे कष्टों का अनुभव हो रहा है यह मात्र स्वप्न है . मै तो आत्मा हु
, ईश्वर
की संतान हूँ मुझे कष्ट कैसे हो सकते है .

इस प्रकार से हमने समझा की जब हमारे मन और शरीर में प्राणों
की कमी होने लगती है तो फिर कण कण में परमात्मा अनुभव नहीं होते है . अर्थात हम
शरीर भाव में जीते है इसलिए हमे परमात्मा से दूरी का अनुभव होता है . हम क्रियायोग
के पूर्ण मनोयोग से निरंतर अभ्यास के अभाव में चीजे कैसे प्रकट हो रही है
, किस शक्ति से यह
दृश्य जगत दिखाई दे रहा है उस शक्ति का अनुभव नहीं कर पाते है . और खुद को शरीर और
परमात्मा को दूर कही मानकर जीवन को प्रारब्ध के अनुसार बहने देते है . आत्म शक्ति
का प्रयोग नहीं करते है . खुद के और परमात्मा के बीच इसी दूरी के अनुभव होने के
कारण कण कण में परमात्मा का अनुभव नहीं हो पाता है . इसलिए हम कष्ट पाते है .

इसका एक मात्र उपाय क्रियायोग का पूर्ण
विश्वास के साथ निरंतर अभ्यास है .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

Subscribe

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *