क्रियायोग – विचारों और भोजन में सम्बन्ध

आज मै आप को वह सच बताने जा रहा हूँ जिसे आप ने आज तक इस
प्रकार से नहीं समझा है .
भोजन विचार का ही घनीभूत
रूप है
. इसलिए यदि हम मांसाहार करते है और यह मन में विचार करे की यह
भोजन सात्विक आहार में बदल जाए अर्थात हमे शक्ति प्रदान करे और हमारे स्वास्थ्य को
ठीक रखे तो यह कितना प्रतिशत बदलेगा या नहीं बदलेगा या पूर्ण रूप से बदल जायेगा इस
प्रश्न का जवाब मै आप को समझाने जा रहा हूँ .

जिस प्राणी का मांस हम खाते है वह चेतना के किस स्तर पर जी
रहा है और हम चेतना के किस स्तर पर जी रहे है यह दोनों पैमाने यह निर्धारित करेंगे
की बदलाव किस दिशा में होगा . जैसे जब हम यह मांस पकाते है उस समय हमारे विचार
कैसे है और यही भोजन करते समय कैसे है . ठीक इसी प्रकार हमारे परिवार के और
सदस्यों के इसी भोजन के प्रति विचार कैसे है और हमारी थाली में इसी भोजन के प्रति
और लोगो के विचार कैसे है . अब आप ही सोचिये की जब एक
ही विचार को इतनी बार दोहराये की वह पशु या अन्य प्राणी का मांश बन जाए और हम केवल
भोजन करते समय यह विचार करे की यह सात्विक आहार में बदल जाए . कितना ज्यादा हम खुद
को ही मुर्ख बनाते है
. यह हमारा मन हमारे साथ धोखे का खेल खेलता है .
आप देखा करो जब हमे किसी विशेष प्रकार के भोजन में अत्यधिक रूचि होती है और हम
भूखे होते है और उसी समय वह भोजन हमारे सामने हमारे लिए आ जाये तो हम अत्यधिक
प्रसन्न हो जाते है और बड़ी बड़ी ज्ञान की बाते और कई प्रकार के वादे करते है और उस
समय हमे कोई जाग्रत व्यक्ति देखे तो वह तुरंत हमारी इस मूर्खता पर भीतर ही भीतर
हँसता है और सोचता है की देखो यह अमुक व्यक्ति मन के जाल में किस प्रकार से फंसता
जा रहा है .

अर्थात हमारे विचार भोजन को अवश्य प्रभावित
करते है और जहरीले भोजन को अमृत में बदलने की शक्ति रखते है पर यह हमारी आत्मशक्ति
पर निर्भर करता है की हम परमात्मा से कितना ज्यादा गहरा जुड़ाव महसूस करते है . एक
पारंगत संत किसी मांसाहार को सात्विक आहार में तुरंत बदल सकता है पर एक सामान्य
व्यक्ति ऐसा करने में बहुत कम सफल हो पाता है.

इसलिए हमारे शरीर और मन को भोजन की प्रकृति अवश्य प्रभावित
करती है . इसीलिए तो ग्यानी जन कहते है की परमात्मा में भक्ति बढ़ाने के लिए पहले
शरीर का स्वस्थ रहना बहुत जरुरी है और मानव शरीर तभी पूर्ण रूप से स्वस्थ रह पाता
है जब इस शरीर को मानव से महामानव बनने के लिए जो परमात्मा ने आहार निर्धारित किया
है उसी का हम सेवन करे .

प्रश्न यह आता है की मुझे सही भोजन करने की
आदत कैसे विकसित करनी चाहिए या कैसे पता करू की मै भोजन सही कर रहा हूँ या नहीं
जबकि मै अपने आप को शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ महसूस करता हूँ
?.

क्रियायोग का पूर्ण मनोयोग से जब आप पूरी निष्ठा , सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास
के साथ अभ्यास करते है तो आप के भोजन का सही प्रबंध प्रकृति स्वयं करती है . आप को
ना तो मांसाहार छोड़ना है और ना ही मांसाहार पकड़ना है . आपको केवल और केवल
क्रियायोग का अभ्यास करना है .

जैसे जैसे आप अभ्यास में गहरे उतरेंगे आप सम भाव में जीने
लगेंगे . और विचारों और भोजन के बीच जो वास्तविक सम्बन्ध है उसको अनुभव के आधार पर
महसूस कर लेंगे
, सच जान जायेंगे .

प्रभु का यह लेख आप को यदि फायदा पहुँचाता है
तो आप की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है की आप इस लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक
भेजकर हमारे इस सेवा मिशन में आप का अमूल्य योगदान देकर प्रभु के श्री चरणों में
अपना स्थान सुनिश्चित करे . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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