परमात्मा की महिमा का सिद्धांत क्या है ?

 

                 परमात्मा की महिमा का सिद्धांत क्या है ? 

सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर जीवन के सभी क्रिया कलाप करना ही परमात्मा की महिमा का अभ्यास है

परमात्मा के गुणों से जुड़ने से हमारे सभी असाध्य रोगों का इलाज , बालों के रोगों का इलाज , सिर के रोगों का इलाज , त्वचा के रोगों का
इलाज
, दाँतो के रोगों का इलाज , पेट के रोगों का इलाज , हृदय के रोगों का
इलाज
, घुटनों के दर्द का इलाज , आँखों के रोगों का इलाज , पेट में गैस , कब्ज , एसिडिटी , जी मिचलाना , उल्टी , दस्त , अफारा , पैशाब के रोगों का
इलाज
, सभी गुप्त रोगों का इलाज जड़ से हो जाता है. केवल परमात्मा
का अस्तित्व है. परमात्मा सर्वव्यापी है परमात्मा कण कण में विराजमान है. परमात्मा
का हर गुण अनंत है जैसे
निराकार से साकार रूप में प्रकट होना भी परमात्मा
का ही एक गुण है. सृष्टि की उत्पति निराकार से साकार रूप में प्रकट होना
, फिर एक सृष्टि में
अनेक देश
, अनेक नदियाँ , अनेक पहाड़, असंख्य जीव अर्थात एक से अनेक होने का गुण. मानव
का लक्ष्य केवल परमात्मा को जानना है
, खुद के स्वरूप को जानना है , परमात्मा और हमारे
बीच दूरी शून्य है इसका अनुभव करना है
, हर पल खुश कैसे रहे इसका अभ्यास करना है , अपने अस्तित्व की
रक्षा करना है
, माया पर विजय प्राप्त करना है मन को समझना है |

जब हम पहली बार
इसका अभ्यास करते है तो हमारा मन इसका विरोध करता है और कहता है की कोई परमात्मा
नहीं होता है जो है वो में ही सबकुछ हु . इसे इस उदाहरण से समझते है : जब आप पैरो
में एकाग्र होकर चलने का अभ्यास करते हो तो आप को पहली पहली बार कुछ अटपटा सा लगता
है और आप ठीक से चल नहीं पाते हो . आप के मन में तरह तरह के विचार आने लगते है
जैसे कही में गिर नहीं जाऊ
, कही में धीरे तो
नहीं चल रहा हु
, क्या पता में
कैसे चल रहा हु कोई मुझे पीछे से देख रहा होगा तो वो क्या सोचेगा
, कही मेरी चाल को देखकर लोग हसने नहीं लग जाये ऐसे
तमाम विचार आते है और आप मन के जाल को समझ नहीं पाते हो और अभ्यास बीच में ही छोड़
देते हो.

आप यह भी सोचते
हो की ऐसा करने से परमात्मा की महिमा कैसे होगी . आप सोचते हो यह कोनसी ऐसी
परमात्मा की महिमा आ गयी जिसमे ना तो कोई मंत्र जाप है ना ही कोई भजन है. पर सच यह
है की आप के सबसे निकट परमात्मा का साकार रूप आप की इस रचना के रूप में है जिसे आप
शरीर कहते है और स्वयं रचनाकार अर्थात परमात्मा इस रचना के साथ है पर हमें इसका
अनुभव नहीं होता है क्यों की कई जन्मो से हम परमात्मा को बहार खोज रहे है .
परमात्मा बाहर भी है और भीतर भी है वह सब जगह है केवल परमात्मा का अस्तित्व है
परमात्मा के अलावा कुछ भी नहीं है

अब यह समझते है
की :

पैरो में एकाग्र होने से हमें ख़ुशी कैसे मिलेगी?

पैरो में कोई भी बीमारी है या कैसा भी दर्द है तो वह कैसे
दूर होगा
?

जैसे जैसे आप
पैरो में एकाग्र होने का अभ्यास करोगे तो आप को पता लगने लगेगा की इनमे कुछ बह
रहा है वह प्राण है जब हमारे पैरो में प्राण की कमी होने लगती है तो बीमारिया आना
शुरू हो जाती है

यह प्राण की कमी
क्यों होती है
?

जैसे जैसे हमारे
और परमात्मा के बीच दूरी बढ़ने लगती है प्राण से हमारा संपर्क कम होने लगता है जब
हम जल्दबाजी में होते है तो  उस समय हमारे
शरीर और मन के बीच दूरी बढ़ जाती है यहां हमने
हमारे शब्द का प्रयोग किया है यह चेतना को सम्भोधित करता है अर्थात हम चैतन्य है इसी
से हम बात करते है किसी से संपर्क करते है यह प्राण का ही एक रूप है इसी से हम सभी
प्रकार की अनुभूतिया करते है मन भी इसी शक्ति की मदद से काम करता है पर यहां ध्यान
देने योग्य बात यह है की यह चेतना भी कई रूपों में होती है

जैसे शरीर मेसे
प्राण निकल जाते है तो इसका मतलब यह नहीं है की सभी चेतनाये इस शरीर से मुक्त हो
गयी है या यु कहे की जब हम बहुत थक जाते है तो इसका मतलब यह नहीं है अभी शरीर
चैतन्य नहीं है .  पूर्ण रूप से चेतना
मुक्त कोई नहीं हो सकता है . क्यों की चेतना परमात्मा का ही एक गुण है और संसार की
हर एक वस्तु में परमात्मा के सभी गुण मौजूद है . इसलिए जिसे हम निर्जीव वस्तु कहते
है उसमे भी सोयी हुए चेतना रहती है

तो हम बात कर रहे
थे की जब हम जल्दबाजी में होते है तो प्राण से संपर्क कम होने लगता है ऐसा क्यों
? :

ऐसा इसलिए होता
है की हमारे शरीर की जो रचना है वह परमात्मा की चेतना का ही साकार रूप है जिसे हम
प्रकाश भी कहते है अर्थात हमारा शरीर प्रकाश का बना है इसका अनुभव जब हम गहरा
ध्यान करते है तब होता है इसे हम इस वैज्ञानिक तथ्ये के साथ सिद्ध करते है जैसे
सभी रंगो की उत्पति प्रकाश से हुयी है यह विज्ञानं ने सिद्ध कर दिया है और ऊर्जा
को द्रव्यमान में बदला जा सकता है और हम जानते है की प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा ही
है और हमारा शरीर उसी ऊर्जा का संघनित रूप है जिसे मन रुपी सॉफ्टवेयर से नियंत्रित
किया जाता है अब आप ही बताइये जब टी.वि. से रिमोट को दूर ले जायेंगे तो टी.वि.
रिमोट से नियंत्रित नहीं हो पाता है और हमें उठकर टी.वि. के पास आना पड़ता है ठीक
वैसे ही जब हम जल्दबाजी में होते है तो इसका मतलब हमारा मन हमारे शरीर के साथ नहीं
होता है क्यों की जल्दबाजी में हम कोई भी काम करते है तो हमारी शत प्रतिशत ऊर्जा
का इस्तेमाल उस काम में नहीं कर रहे होते है बल्कि हमारी ऊर्जा कई विचारो में खर्च
होती रहती है जैसे भविष्ये में करने वाले कई काम . अर्थात मन के माध्यम से इस शरीर
रुपी रचना के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए जो प्राण ऊर्जा हमें परमात्मा से मिल
रही थी अब वह मन के माध्यम से कई जगह जा रही है जैसे २०% शरीर को और ८०% विचारो को
. तो इस रचना के अस्तित्व को खतरा होने लगता है और उसी का परिणाम है शरीर में कई
प्रकार के परिवर्तन होना जैसे चिंता होना
, डर लगना , थकान होना , आलस आना , शरीर में कमजोरी आना , लगातार जल्दबाजी में काम करते रहने से फिर धीरे धीरे बीमारिया घेरने लगती है

 

हमारा शरीर प्राण को कैसे ग्रहण करता है ?

मोटे रूप में बात
करे तो स्वास के माध्यम से
, भोजन , पानी के माध्यम से, प्रकाश के माध्यम से हमारा शरीर प्राण को ग्रहण करता है

सूक्ष्म रूप में
बात करे तो हमारा शरीर विचारो से
,
आँखों से जो कुछ भी हम
देखते है यदि उस द्र्श्य के प्रति  हमारी
भावना बहुत अच्छी तो हमें वहा से भी प्राण मिलते है
, जैसे कोई घूमने जाता है तो वहा से ताजा होकर लोटता है

इसी प्रकार कानो
से क्या सुना जा रहा है यदि उसे परमात्मिक अनुभूति कहते है तो फिर कानो के माध्यम
से भी हमारे शरीर को प्राण मिलने लगते है इसी प्रकार स्पर्श से भी हमें प्राण
मिलते है

जैसे एक प्राण
चिकित्सक मरीज को स्पर्श करके उसका रोग दूर करता है.

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