मेरे प्रिये मित्रों आज हमारे परमात्मा आप सभी को वो राज
समझा रहे है जिसे यदि आप ने सच्ची श्रद्धा , भक्ति और विश्वास के बल पर समझने और फिर अनुभव करने का मन
बना लिया है तो आप इसे बहुत ही शांति से पढ़े और फिर इसका अभ्यास करे .
जैसे हम हमारी आँखों के माध्यम से कोई दृश्य देखते है या
कोई आवाज सुनते है तो हम हमारी समझ के अनुसार इस निर्णय पर पहुंचते है की यह दृश्य
मेरे मन को अच्छा लगा है या बुरा लगा है . ठीक इसी प्रकार किस प्रकार की आवाज मुझे
पसंद है और किस प्रकार की आवाज मेरे मन को पसंद नहीं आती है यह निर्भर करता है की
इस अमुक आवाज को लेकर मेरे मन में किस प्रकार की प्रोग्रामिंग जमा है . अर्थात हमारा मन एक प्रकार से परमात्मा की शक्ति से निरंतर
एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम की तरह पोषित हो रहा है और निरंतर इस मन रुपी सॉफ्टवेयर को
यही परमात्मिक शक्ति दिशा निर्देश दे रही है . जैसे आप ने निम्बू के रस को जीभ पर
रखा तो आप को खट्टेपन की अनुभूति हुयी है . पर यह सभी जीवों के लिए सच नहीं है .
अर्थात यदि किसी के मन में निम्बू रुपी फल को लेकर परमात्मा ने यह प्रोग्रामिंग कर
रखी है की इस अमुक मन वाले व्यक्ति को इस निम्बू फल का स्वाद मीठा लगना चाहिए तो
फिर शत प्रतिशत ऐसे इंसान को निम्बू का स्वाद मीठा ही लगेगा . और इसी कारण से यह
दो व्यक्ति आपस में निम्बू के स्वाद को लेकर झगड़ते है और हमारे प्रभु का मनोरंजन
हो जाता है . अर्थात एक ही परमात्मिक शक्ति एक ही समय पर खट्टे और मीठे स्वाद के
रूप में प्रकट हो रही है .
इसे और आसान शब्दों में ऐसे समझे की निराकार शक्ति पहले दो
व्येक्तियों के शरीरों को रचती है और फिर इन के सामने एक निम्बू की रचना करती है
और फिर इस निम्बू के रस को लेकर पहले व्यक्ति के मन में यह प्रोग्राम विकसित करती
है की इस अमुक प्रकार के फल का रस इसे खट्टेपन की अनुभूति कराये और दूसरे को
मीठेपन की अनुभूति कराये . दोनों व्येक्तियों में बुद्धि को निर्णय लेने की शक्ति
प्रदान करती है और यही निराकार शक्ति एक न्याय करने वाले सरपंच के रूप में तीसरे
व्यक्ति की रचना करती है .
अब असली खेल शुरू होता है . सरपंच साहब कहते है दोनों
व्येक्तियों से की आप के सामने जो यह निम्बू रखा हुआ है इसे जीभ से चखकर इसका
स्वाद मुझे बताओं की आप को कैसा लगा ?
अब पहला व्यक्ति निम्बू को चखकर कहता है की निम्बू खट्टा है
दूसरा व्यक्ति कहता है की निम्बू मीठा है . अब सरपंच साहब
तो इन्हे सही स्वाद बताने की बात कहकर
किसी और नये काम में लग जाते है और यह दोनों व्यक्ति खट्टे मीठे स्वाद को
लेकर झगड़ते है . और इन दोनों का झगड़ा देखकर सरपंच साहब भीतर ही भीतर मुस्कराते है
.
पर इस खेल के साथ ही यही निराकार शक्ति छुपकर इन दोनों
व्येक्तियों के भीतर भी बैठ जाती है और निरंतर इनको कहती रहती है की सबकुछ मै कर
रहा हूँ आप दोनों मेरी शरण में आ जाओ यदि आप को इस झगडे से मुक्ति चाहिए तो .
अर्थात जब ये दोनों व्यक्ति क्रियायोग ध्यान का गहरा अभ्यास
करते है तो इन्हे निम्बू का वास्तविक ज्ञान होता है की यह निम्बू ना तो खट्टा है
और ना ही मीठा है बल्कि साक्षात् परमात्मा का ही स्वरूप है .
ठीक इसी प्रकार यदि आप के मन में भी यदि कोई बुरी घटना बैठ
गयी है और आप इसे बाहर निकालना चाहते है तो आप निरंतर क्रियायोग ध्यान का गहरा
अभ्यास करे . आप जब सिर से लेकर पाँव तक में एकाग्र होकर इस घटना को मन में अंदर
और बाहर देखेंगे तो आप को यह अनुभव होगा की किस प्रकार से आप खुद ही इस सॉफ्टवेयर
प्रोग्राम को रन कर रहे है और इस बुरी घटना की रचना भी आप खुद ही कर रहे है . और
फिर धीरे धीरे निरंतर अभ्यास के प्रभाव के कारण ……….शेष भाग अगले लेख में समझे . धन्यवाद जी . मंगल हो
जी .