निराकार का जवाब :
जैसे हम नल से बाल्टी में पानी भरते है तो पानी भरने की
क्रिया के दौरान बाल्टी में अलग अलग आकार के पानी के बुलबुले उठते है और फिर कुछ
ही देर में बुलबुले पानी में बदल जाते है .
अब कोई प्रश्न यह करे की बाल्टी में ४५
बुलबुले ही क्यों उठे और फिर कुछ ही देर में पानी में कैसे बदल गए .
७८ बुलबुले भी बन सकते थे और कुछ ज्यादा समय
तक भी बुलबुलो के रूप में ही रह सकते थे पर ऐसा नहीं हुआ क्यों ?
निराकार का जवाब : यह प्रश्न ही
असत्य है क्यों की नल से पानी इस तरीके से गिराने की प्रश्नकर्ता पहले व्येवस्था
करे तो फिर खुद प्रश्नकर्ता जैसा परिणाम देखना चाहता है वैसा ही परिणाम दिखेगा .
अर्थात हम परिणाम के रूप में तो ख़ुशी देखना चाहते है और बीज
हमने बुरे परिणाम (यहां बुरे का अर्थ है की ऐसा परिणाम जिसे हम देखना नहीं चाहते
है) का बोया है .
इसीलिए निराकार शक्ति कहती है की जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि .
पूरा संसार और जो अदृश्य लोक और परलोक और शेष सबकुछ एक
विशाल समुद्र की तरह समझे और कल्पना करे की जिस प्रकार से समुद्र में लहरे उठती है
और फिर वापस समुद्र में मिल जाती है ठीक इसी प्रकार हम सभी जीव जंतु , नदी , पहाड़ , पृथ्वी , सूर्य ऐसे सभी
साकार और निराकार समुद्र की भांति परिवर्तित हो रहे है और हम समझ रहे है की बिल्ली
चूहे को क्यों खा रही है ,
कुत्ता बिल्ली को
क्यों खा रहा है और इंसान इंसान को क्यों जिन्दा मारकर खा रहा है .
प्रश्न : बिल्ली ने
झप्पटा मारकर एक भागते हुए चूहे को क्यों खाया ?
निराकार
का जवाब : बिल्ली ने अपने खुद के कर्मो के कारण बिल्ली की योनि में
जन्म लिया है और चूहे ने अपने खुद के कर्मो के कारण चूहे की योनि में जन्म लिया है
और फिर चूहे ने पहले ऐसा कर्म किया है जो बिल्ली के पेट का ग्रास बना है . अर्थात
यह सब कर्मो का हिसाब किताब होता है .
ठीक इसी प्रकार इंसान इंसान को जिन्दा मारकर खा रहा है और
इंसान मांसाहार कर रहा है यह सब भी कर्मो का ही हिसाब किताब है .
प्रश्न : फिर हमे ऐसा
क्यों लगता है की मांसाहार करता है जो पापी है और शाकाहार करता है जो धर्मी है ?
निराकार का जवाब : यदि आप कमरे में
बैठे है और मै पुछू इस कमरे में पंखा लगा हुआ है या नहीं तो यदि आप अंधे नहीं है
और आप गर्दन चारो तरफ घुमा सकते है तो आप खुद की आँखों से देखकर मुझे सही जवाब दे
देंगे .
पर यदि मै पुछू इस कमरे के बाहर अभी क्या क्या हो रहा है तो
आप कमरे में बैठे बैठे यह नहीं बता सकते . क्यों की आप की आँखे कमरे के बाहर नहीं
देख सकती . ठीक इसी प्रकार से यदि कोई इंसान या अन्य जीव आप को हिंसा करते हुए
दिखाई दे रहा है तो यह जरुरी नहीं है की वह क्रिया सच में हिंसा ही हो . अर्थात जो
दिख रहा है वह पूर्ण सत्य नहीं है . हमारी चेतना जितने प्रतिशत जाग्रत है हम उतने
प्रतिशत ही सच को समझ पा रहे है .
जब आप पूर्ण जाग्रत हो जाते है तो आप को अनुभव हो जाता है
की सब कुछ अपने आप हो रहा है .
अर्थात आप ने कई बार अनुभव भी किया है की जब आप पूर्ण रूप
से शांत रहते है , मन में कोई विचार
नहीं रहता है तो वही तो निराकार का अनुभव है .
फिर हर समय ऐसी अनुभूति क्यों नहीं होती है ?
निराकार का जवाब : हमारे मन में
हमारे ही सभी प्रकार के कर्मो की स्मृतियाँ जमा रहती है और जैसे जैसे आप क्रियायोग
ध्यान का गहरा अभ्यास करते है तो यह स्मृतियाँ बुलबुलो की तरह पिघलने लगती है और
जिस क्षण जैसी स्मृति में जीव रहता है उसको वैसी ही अनुभूति होती है .
इसलिए आप देखाकरो की कई दिन तक आप बहुत खुश रहते है और फिर
अचानक से उदास या चिड़चिड़े ,
या डरने या कोई
अन्य प्रकार का भाव आप के भीतर जगने लगता है क्यों ?
निराकार का जवाब : निरंतर जाग्रति के कारण फिर कोई पुराने
कर्म की स्मृति पिघलने लगती है जिसकी प्रकृति इस बार दुखद है . इस प्रकार से हमे
कभी सुखद और कभी दुखद स्मृतियों के कारण सुख दुःख की अनुभूति होती है .
प्रश्न : फिर यह कैसे पता
करे की कब हम पूर्ण रूप से इसी जीव भाव में रहते हुए बहुत ख़ुशी अनुभव कर रहे है और
साथ ही मन में यह भी डर हो की क्या पता कब कोई पुरानी दुखद स्मृति जाग उठे और
हमारा नाश हो जाये और हम काल का ग्रास बन जाए ?
निराकार का जवाब : जब जीव क्रियायोग
का निरंतर गहरा अभ्यास करता है तो जीव को भविष्य में आने वाले खतरों का अहसास कई
दिनों पहले ही हो जाता है और साथ ही जीव को इन खतरों से कैसे पूर्ण रूप से बचना है
इसका भी समाधान निराकार शक्ति बताती है . इसलिए हमे हर क्षण क्रियायोग ध्यान का
अभ्यास करते रहना है . धन्यवाद जी . मंगल हो जी .