भाग 2
लहुसन प्याज
कच्चे नहीं होने चाहिए अर्थात इनका जीवन चक्र पूरा हो जाना चाहिए . हरा लहुसन और
हरी प्याज नहीं खानी चाहिए. क्यों की अभी वे
जमीन के अंदर विकसित हो रहे है . परमात्मा स्वयं रचनाकार बनकर उनकी रचना कर रहे है
और आप उस रचना को विकृत करके उसको खा जाते है तो उनको कष्ट होता है इसका अहसास
परमात्मा की महिमा का निरन्तर अभ्यास करने से होता है.
लहुसन और प्याज
की जो गंध होती है वह हमें बैक्टीरिया वायरस से बचाती है . इनकी गंध हमारे शरीर को
बैक्टीरिया वायरस के बाहरी हमलो से बचाती है और जब हम इनका उचित मात्रा में सेवन
करते है तो ये हमें शरीर के भीतर यदि कोई भी संक्रमण है तो उससे बचाते है पर यदि
इनका ज्यादा मात्रा में सेवन करने लग जाते है तो यह उत्तेजना पैदा करते है ,
दिमाग में कई प्रकार के फालतू विचार लाते है और
हमारा दिमाग कमजोर होने लगता है . पर यदि हम इनका सेवन बिलकुल भी नहीं करते है तो
हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लग जाती है .
किन व्यक्तियों को लहुसन प्याज का सेवन बड़ी सावधानी से करना
चाहिए ?
जिनको इनके नाम
से ही डर लगता हो .
जिनका मन अभी
इनको थोड़ा भी स्वीकार नहीं किया हो .
जिनके मन में
इनको लेकर तरह तरह के वहम हो .
जो पहले से ही
बहुत उत्तेजक स्वभाव के हो.
जिनको इनके थोड़े
से सेवन से ही शरीर में किसी भी प्रकार की तकलीफ शुरू हो जाती हो .
ऐसे व्यक्ति जैसे
जैसे परमात्मा की महिमा के अभ्यास में आगे बढ़ेंगे इनका मन लहुसन प्याज को स्वीकार
करने लग जायेगा . यहाँ सबसे जरुरी बात यह है की परमात्मा की महिमा में, जिसे हम आमतौर की भाषा में शरीर कहते है वह
परमात्मा का ही साकार रूप है और निरन्तर
इसमें ‘शिव की शक्ति‘ के माध्यम से परिवर्तन हो रहे है और ‘विष्णु की शक्ति ‘ के माध्यम से इस
क्षण तक जो परिवर्तन हो चुके है उनकी सुरक्षा हो रही है और जो शरीर में अंग
रिपेयर (पुनर्निर्माण ) या किसी अंग को दुबारा से नया बनाना है तो वह काम ब्रह्मा
की शक्ति कर रही है . ये तीनो शक्तिया परमात्मा से ही प्रकट होती है . इन शक्तियों
को अलग अलग देशो में , अलग अलग धर्म –
सम्प्रदायो में अलग अलग नामो से जाना जाता है . यही तो परमात्मा की महिमा की
विविधता है अनेकता में एकता . अलग अलग होकर भी हम सब एक है . यही परम सत्य है .
लहुसन प्याज का कई सज्जन विरोध क्यों करते है ?
परमात्मा की
महिमा में इसका जवाब परमात्मा निम्न प्रकार से देते है :
सुनो मेरे प्रिये
आत्मज मैं मेरी माया में सभी को उलझाकर रखता हु . किसी के मुँह से कहलवा देता हु
की लहुसन प्याज मत खा लेना यह तामसिक प्रवृति के है तो किसी के मुँह से यह कहलवाता
हु की लहुसन प्याज हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत अनिवार्य है . पर सत्य यह है की जो
नंदन (आत्मज , पुत्र , सुवन ) किसी भी भोजन के साथ आसानी से रह लेता
है ऐसा भक्त मुझे बहुत प्रिये है क्यों की वह भोजन के रूप में भी मुझे ही देखता है, वह देश, काल और
परिस्थिति के अनुकूल खुद को ढाल लेता है या परिस्थिति को खुद के अनुकूल बना लेता
है . वह हर समय स्थिर रहता है बहुत खुश रहता है चिंता मुक्त रहता है क्यों की अब
उसकी सारी व्यवस्थाएं मैं खुद करता हु. पर यह बात तो मेरे अनन्य भक्त की हुयी है .
पर जो अभी मेरे
से विमुख है मेरी महिमा के बारे में ज्यादा अनुभव के साथ नहीं जानता है केवल किसी
और के अनुभवों पर ही आश्रित है ,
जिसने ज्ञान की किताबे
रटली है , जिसे कोई कुछ भी कह दे तो उसी को आधार मानके
आगे बढ़ जाता है , जो सही गलत की पहचान नहीं कर पाता है , जो हमेशा द्वन्द में रहता है ,
जिसका मन अभी स्थिर नहीं
है ऐसा व्यक्ति लहुसन प्याज को लेकर भी भ्रमित रहता है . उसे डर लगता है की कही
मैंने यदि लहुसन प्याज खा लिए तो मेरे मन में वासना के विचार आ जायेंगे , कोई बीमारी हो जाएगी , वह यह भी तर्क देता है की मेरे गुरु इतने महान
है उनको भूख , प्यास , सर्दी , गर्मी नहीं लगती है उन्होंने ने मुझे नियम दिलाया है की तुम लहुसन प्याज का
त्याग करदो वरना तुम्हे वासनाये सताएगी , बीमारिया हो जाएगी , तुम्हे क्रोध ज्यादा आने लग जायेगा , और ना जाने क्या क्या
तर्क देते है और यह सब बाते ऐसे व्यक्ति के दिमाग में फिट बैठ जाती है . पर वह
व्यक्ति यह अर्थ नहीं लगा पाता है की मेरे जिन गुरु ने मुझे यह सब सिखाया है वो
उन्होंने खुद ने कैसे किया है . क्यों की जब वह व्यक्ति खुद को ही नहीं जानता है
तो गुरु को कैसे जानेगा . और गुरु बहुत ही समझदार है फिर भी वह ऐसी बाते अपने शिष्ये
को क्यों सीखा रहे है जो शिष्ये कर नहीं सकता . इसको निम्न प्रश्न के रूप में
लिखते है : ….
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