लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन और सब कुछ पहले से तय है में से क्या सही है ?

जब आप क्रियायोग ध्यान का गहरा अभ्यास करेंगे तो आप को पता
चलेगा की दोनों बाते शत प्रतिशत एक ही है . कैसे
?

आप चीजे वे ही अट्रैक्ट करते है जो आप के
डीएनए में पहले से जमा है . और आप के डीएनए की कोडिंग इस प्रकार से है की आप को यह
अहसास होता है की आप खुद चीजे अट्रैक्ट कर रहे है . इसीलिए लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन के नाम
पर आज करोड़ों लोग कमाकर खा रहे है . पर ऐसे लोग अपनी जगह शत प्रतिशत सही काम कर
रहे है .  क्यों की परमात्मा का खेल इसी
तरह से चलता है .

जब आप घर से बाहर निकलते है तो आप को रास्ते में वे चीजे ही
दिखाई जाती है जो आप के मेडुला में स्थित है . अर्थात आप का यह मन से निर्मित शरीर
रुपी यंत्र एक प्रोजेक्टर है जो परमात्मा से (कण कण में स्थित है) कूटस्थ के
रास्ते से (अर्थात मेडुला से या यु कहे सिर के पीछे वाले भाग से) परम चैतन्य शक्ति
को भीतर लेता है और मेडुला में आप के कर्मो के अनुसार जिस प्रकार की प्रोग्रामिंग
जमा है उसके अनुसार इस परम चैतन्य शक्ति को साकार रूप में दृश्यमान अर्थात
प्रोजेक्ट कर देता है . मेडुला में जब यह परम चेतना प्रवेश करती है और मेडुला की
कार्यप्रणाली को सम्पादित करती है तो एक नयी शक्ति पैदा होती है जिसे ही साधारण
बोलचाल की भाषा में अवचेतन मन की शक्ति कहते है .

अर्थात सब कुछ शक्ति ही है पर तंत्र इसे अलग अलग रूपों में
व्यक्त करता है .

अब यदि किसी व्यक्ति के मेडुला में इस प्रकार से कोडिंग है
की वह अब मेडुला के मुख से परम चेतना को ग्रहण नहीं करता है और शरीर रुपी तंत्र के
किसी भी भाग से इस परम चेतना को ग्रहण नहीं करता है (अर्थात इस परम चेतना को जीवन
का धन भी कहते है ) तो ऐसे व्यक्ति का शरीर तंत्र इसमें जमा शक्ति से तब तक काम
चलाता है जब तक भीतर जमा यह धन खर्च नहीं हो जाता है . जैसे ही इस शरीर रुपी तंत्र
में जमा सभी संस्कार एक एक करके अलग अलग रूपों में बदल जाते है तो अंत में एक
संस्कार बचता है . जब यह अंतिम संस्कार शेष बचता है तो इस शरीर रुपी तंत्र में
गतिमान प्राण धन की अनुपस्थित के कारण यह शरीर रुपी तंत्र अब चल नहीं सकता
, सुन नहीं सकता , बोल नहीं सकता
अर्थात एक निर्जीव वस्तु की भाति एक स्थान पर ही पड़ा रहता है . जिसे हम हमारे रीती
रिवाजों के अनुसार इस अंतिम संस्कार रुपी शरीर यंत्र को या तो जला देते है या दफना
देते है या कुछ और तरीका अपनाते है ताकि प्रकृति का चक्र सुचारु रूप से चल सके .

पर यदि मेडुला की कोडिंग इस प्रकार से है की यह शरीर रुपी
यन्त्र परम चेतना को अनंत काल तक भीतर ग्रहण करता रहेगा और फिर साकार रूप में
बदलता रहेगा तो यह शरीर रुपी यंत्र कार्य करता ही रहेगा . यह अवतारी पुरुषो के
लक्षण होते है . वे जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर निकल जाते है .

 

मेडुला में यह कोडिंग कौन लिखता है ?

हमारे कर्म . जब आप के शरीर की
इन्द्रियाँ कुछ भी अनुभव करती है तो यह अनुभव मेडुला में अंकित हो जाता है . पर
यदि आप के कर्म पहले से ही ऐसे है या आप लगातार परम चेतना के अनुभव में है अर्थात
आप जाग्रत है तो आप को पता रहता है की अब इस इन्द्रिये अनुभव को किस रूप में
मेडुला में अंकित कराना है ताकि आप परम चेतना की तरफ और तेजी से आगे बढ़ सके.

क्या मेडुला की इस डीएनए कोडिंग को बदला जा सकता
है
?

हां शत प्रतिशत . कैसे ? .

क्रियायोग ध्यान के पूर्ण मनोयोग , सच्ची भक्ति और
पूर्ण विश्वास के साथ निरंतर अभ्यास से.

पर आप तो कहते है सबकुछ पहले से तय है फिर
डीएनए कोडिंग को कैसे बदल सकते है
 ?

जो व्यक्ति इस डीएनए कोडिंग को बदलता है परमात्मा उसी के यह
बदलने का विचार मन में डाल देते है . अर्थात जो व्यक्ति इस डीएनए कोडिंग को नहीं
बदलेगा उसके मन में यह प्रश्न ही नहीं आयेगा की क्या डीएनए कोडिंग को बदला जा सकता
है . अर्थात प्रभु के इस लेख तक वे व्यक्ति ही अपनी पहुंच बना पायेंगे जो कण कण
में परमात्मा को देखने का अभ्यास कर रहे है अर्थात जो सत्य और अहिंसा के मार्ग पर
चलने का अभ्यास कर रहे है वे ही इस डीएनए कोडिंग को बदलेंगे .

इस प्रकार से हमने समझा की जब पूर्ण रूप से परमात्मा के
समक्ष समर्पण कर देते है तो फिर हमे सबकुछ मिल जाता है अर्थात लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन का
कार्य अपने आप हो जाता है . हमे फिर चीजे मैनिफेस्ट करने की जरुरत नहीं होती है .

धन्यवाद जी . मंगल हो जी .

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